The News Air- लुधियाना सूबे में 29.68 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। हर साल पराली प्रबंधन की समस्या खड़ी हो जाती है। पराली को खेतों से हटाने के लिए किसान सबसे आसान तरीका अपनाते हुए आग लगा देते हैं। इससे न सिर्फ हवा प्रदूषित होती है बल्कि इंसानों, पशुओं की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आग लगाने का सबसे बड़ा कारण पराली प्रबंधन के दूसरे तरीके काफी खर्चीले और नजदीक सुविधाएं भी न मिल पाना है। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों के दौरान 202826 आग लगने की घटनाएं हुईं हैं।
इसमें सबसे ज्यादा 2020 में 76592 घटनाएं पराली को आग लगाने की हुईं और 17.96 लाख हेक्टेयर इलाके को आग के हवाले किया गया। 2021 में 71024 आग लगने की घटनाएं हुईं। जिसमें 12.9 लाख हेक्टेयर इलाके को आग लगाई गई। गुरु अंगद देव वेटरनरी व एनीमल साइंसेस यूनिवर्सिटी(गडवासू) के माहिरों ने दुधारु पशुओं को फीड के तौर पर इस्तेमाल करने का तरीका अपनाया है। इसका एक्सपेरिमेंट माहिरों ने कैंपस के दुधारु पशुओं पर किया। इससे न सिर्फ पराली प्रबंधन आसान हो सकता है बल्कि जो खर्च यूरिया या अन्य पोषक तत्वों को पूरा करने को पशुओं पर करते हैं वो भी काफी सीमित हो जाएगा।
पराली में यूरिया-मोलासिस मिलाकर तैयार किया जाता है फीड
पशुओं को पराली खिलाने से रिसर्च में दिखे अच्छे नतीजे
पराली ट्रीट कर पशुओं और अभी दूध न देने वाले पशुओं में दिया गया। इससे इनका अच्छा विकास हुआ। ये फीड विकसित हो रहे पशुओं को दे सकते हैं। इससे जरूरी फीड मिलेगी और पराली प्रबंधन भी होगा।
ऐसे पराली को बनाएं पशुओं के लिए खाने योग्य
गडवासू के माहिर डॉ आरएस ग्रेवाल ने बताया कि बेलर के जरिए खेत से पराली को इकट्ठा किया जाता है। 2 क्विंटल पराली में 1 फीसदी यूरिया और 3 फीसदी मोलासिस और 30 फीसदी पानी डाल कर मिलाया जाता है। इसके बाद वेगन मशीन में डाल कर 15 मिनट मिक्स किया जाता है। मिश्रण को 5 महीने से ऊपर के दुधारु पशुओं को दे सकते हैं।
इस फीड में वो सभी पोषक तत्व मौजूद हैं जो पशुओं के लिए जरूरी हैं। अगर ट्रीट कर पराली दी जाए तो पशु इसे आसानी से पचा सकते हैं उन्हें जरूरी नाइट्रोजन भी मिलती है।
-डॉ. इंद्रजीत सिंह, वाइस चांसलर गडवासू