Wakf Amendment Act Supreme Court : वक्फ संशोधन अधिनियम (Wakf Amendment Act) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) और ओबेरॉय होटल (Oberoi Hotel) जैसे प्रतिष्ठानों के वक्फ ज़मीन (Wakf Land) पर बने होने की जानकारी ने अदालत को भी चिंतित कर दिया। सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना (Chief Justice Sanjiv Khanna), जस्टिस संजय कुमार (Justice Sanjay Kumar) और जस्टिस के वी विश्वनाथन (Justice KV Viswanathan) की बेंच के सामने हुई, जिसमें कोर्ट ने दो अहम बिंदुओं पर पक्षकारों से स्पष्टीकरण मांगा।
सीजेआई खन्ना ने कहा कि हमें दो प्रमुख पहलुओं पर पक्षकारों से विचार जानना है – क्या इस मामले को उच्च न्यायालय को भेजा जाए? और दूसरा, याचिकाकर्ता वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमें जानकारी दी गई है कि दिल्ली हाई कोर्ट और ओबेरॉय होटल वक्फ की भूमि पर बने हैं। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी वक्फ बाय यूजर संपत्तियों को गलत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन कुछ गंभीर चिंताओं की अनदेखी भी नहीं की जा सकती।
अयोध्या फैसले से लेकर अनुच्छेद 32 तक, दलीलों की बौछार
वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी (A.M. Singhvi) ने अयोध्या फैसले का हवाला देते हुए कहा कि फैसले की मूल अवधारणा को यूं हटाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि “अगर संसद वक्फ है, तो आपका आधिपत्य स्वीकार नहीं किया जाएगा, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वक्फ की अवधारणा ही गलत है।” उन्होंने अनुच्छेद 25, 26 और 32 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का ही है, इसे हाई कोर्ट भेजना उचित नहीं।
वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने भी वक्फ बाय यूजर को धर्म का अभिन्न अंग बताते हुए इसे हटाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि कोई भी संपत्ति अगर धार्मिक उपयोग में ली जा रही है और पंजीकरण नहीं करवाया गया, तो क्या उसे वक्फ नहीं माना जाएगा? उन्होंने चिंता जताई कि सरकार तीन हज़ार साल पुराने वक्फ पर भी डीड मांग रही है, जो व्यावहारिक नहीं है।
केंद्र सरकार का पक्ष और जेपीसी की प्रक्रिया
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने अदालत को बताया कि संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) ने इस विधेयक पर गहन समीक्षा की है। उन्होंने बताया कि समिति की 38 बैठकें हुईं, और 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की गई। कानून को संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया – लोकसभा (Lok Sabha) में 232 और राज्यसभा (Rajya Sabha) में 128 वोट इसके पक्ष में पड़े। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) की मंजूरी मिली और 8 अप्रैल से लागू कर दिया गया।
इस अधिनियम के खिलाफ कांग्रेस (Congress), एआईएमआईएम (AIMIM), डीएमके (DMK), आप (AAP), वाईएसआरसीपी (YSRCP) जैसी विपक्षी पार्टियों ने याचिकाएं दायर की हैं। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) और अन्य संगठनों ने भी शीर्ष अदालत का रुख किया है।
सुनवाई में उठे सवालों और गूंजती दलीलों से यह साफ है कि वक्फ संशोधन अधिनियम अब केवल कानूनी बहस नहीं, बल्कि एक संवैधानिक विचार विमर्श का केंद्र बन चुका है।