The News Air- कोटकपूरा- पंजाब के फरीदकोट जिले में कोटकपूरा के साथ लगते छोटे से गांव संधवां की मिट्टी ही ऐसी है कि यहां से निकलने वाले लोग राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्री, मंत्री और विधानसभा स्पीकर तक बने। तकरीबन 10 हजार की आबादी और चार हजार वोटरों वाले संधवां गांव से ताल्लुक रखने वाले कुलतार सिंह संधवां ही पंजाब की 16वीं विधानसभा के स्पीकर बनने जा रहे हैं। ऑटोमोबाइल इंजीनियर कुलतार सिंह इसी गांव से ताल्लुक रखने वाले देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह के छोटे भाई के पोते हैं।
रियासतों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बाद 1962 में फरीदकोट विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद ज्ञानी जैल सिंह ने पहली बार यहां से चुनाव लड़ा था। वह विधायक बनकर पंजाब विधानसभा में पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा अपने सियासी सफर के दौरान वह पंजाब के मुख्यमंत्री, देश के गृहमंत्री बनने के बाद राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद तक पहुंचे।
1994 में ज्ञानी जैल सिंह के निधन के बाद परिवार में से उनकी सियासी पारी को आगे उनके पोते कुलतार सिंह संधवा ने आगे बढ़ाया। 2017 में भी कुलतार संधवा ने कोटकपूरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। पार्टी को आगे ले जाने में भी संधवां की अहम भूमिका रही है। एक कुशल प्रवक्ता के रूप में उन्होंने पिछले कांग्रेस सरकार में हर मुद्दे पर सरकार को घेरा इसके अलावा वह पहले विधायक थे जिन्होंने भगवंत सिंह मान के घर पर जाकर एलान किया था कि उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए।
गांव के सरपंच से शुरू हुआ सियासी सफर
ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग कुलतार सिंह संधवां का जन्म 16 अप्रैल 1975 को गांव संधवां में जगतार सिंह व गुरमेल कौर के घर हुआ था। उनके दादा जगीर सिंह व पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह सगे भाई थे। कर्नाटक की यूनिवर्सिटी से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग करने के बाद कुलतार सिंह संधवां ने 2003 में पहली बार अपनी पंचायत में सरपंची का चुनाव लड़ा। वह 2003 से 2008 तक संधवां की पंचायत के प्रधान रहे। 2011-12 में आम आदमी पार्टी ने जब पंजाब में सदस्यता अभियान चलाया तो उन्होंने पार्टी जॉइन कर ली। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कोटकपूरा से टिकट दी तो उन्होंने पहली बार में ही कांग्रेस और अकाली दल के दिग्गजों को पछाड़ते हुए जीत हासिल की थी।
ज्ञानी जैल सिंह के कारण बनी पहचान
कोटकपूरा से चुनाव जीते कुलतार सिंह संधवां की राजनीति में पहचान पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पारिवारिक सदस्य के तौर पर है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के किसान विंग के प्रांतीय अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने किसान आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनकी वजह से ही पार्टी की छवि किसान हितैषी बनी थी। वह खुद भी किसान परिवार से आते हैं और आज भी उनका सारा परिवार गांव में ही रहता है।
बेअदबी मामले पर विवादों में घिरे तो मांगी माफी
बरगाड़ी गांव में हुई श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पावन स्वरूपों की हुई बेअदबी मामले में डेरा प्रेमियों की संलिप्तता पर सवाल उठाकर विधायक कुलतार सिंह संधवा इसमें बुरी तरह से उलझ गए थे। इसके बाद उन्होंने बरगाड़ी में चल रहे मोर्चे में पहुंच माफी मांगी और अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया था। दरअसल संधवां ने बरगाड़ी बेअदबी कांड पर आई जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए चंडीगढ़ में एक कान्फ्रेंस के दौरान बरगाड़ी बेअदबी कांड में एसआईटी द्वारा काबू किए गए डेरा प्रेमियों को निर्दोष बताया था। विधायक का यही बयान ही उनके गले की फांस बन गया था। इस बयान के बाद सिख संगत की कड़ी प्रतिक्रिया को देखते हुए विधायक ने बरगाड़ी मोर्चे में जाकर माफी मांगने की इच्छा जताई, लेकिन दो बार की कोशिश के बाद भी सिख संगत के जोरदार विरोध के चलते वह मंच पर नहीं जा सके थे। इसके बाद श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के हस्तक्षेप के बाद मंच पर पहुंचे और अपने बयान पर खेद जताते हुए संगत से माफी मांगी थी।
गांव से और भी रहे हैं मंत्री
छात्र संगठन आल इंडिया सिख स्टूूडेंट फेडरेशन के अध्यक्ष पद के बाद सक्रिय राजनीति में आए संधवां के जसविंदर सिंह ने 1972 में कोटकपूरा सीट पर शिअद प्रत्याशी के तौर पर पहली बार चुनाव जीता था। वह 1977 में दोबारा चुनाव जीतकर शिअद की सरकार में सहकारिता मंत्री बने। 1980 में फरीदकोट मध्यावधि चुनाव में वह आजाद प्रत्याशी जसमत ढिल्लों से हार गए।
1993 में उनकी मृत्यु हो गई। उनके सियासी उत्तराधिकारी उनके पुत्र मनतार सिंह बराड़ ने 1997 में प्रथम बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा, जीते और अकाली दल में शामिल हो गए। वह 2002 में शिअद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2007 के चुनाव में हारने के बाद 2012 में जीते और मुख्य संसदीय सचिव बने।