Parshuram Jayanti 2025 : परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) हर साल अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन मनाई जाती है और यह दिन भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान परशुराम को हिंदू धर्म में सप्त चिरंजीवी (Seven Immortals) में गिना जाता है, जिनका उल्लेख महाभारत (Mahabharata) और रामायण (Ramayana) दोनों महाकाव्यों में मिलता है। वे महान योद्धाओं जैसे भीष्म पितामह (Bhishma Pitamah), द्रोणाचार्य (Dronacharya) और कर्ण (Karna) के गुरु भी थे। उनकी शिक्षा और शौर्य के कारण ये योद्धा युद्धकला में निपुण बने।
भगवान परशुराम का स्वभाव क्रोधित और उग्र था, जिसके चलते देवता भी उनसे भयभीत रहते थे। उनकी वीरता, अनुशासन और तपस्या ने उन्हें एक अनोखी पहचान दी। परशुराम जयंती पर भक्तजन उनकी पूजा कर उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं, ताकि जीवन में शांति और सफलता प्राप्त की जा सके।
परशुराम द्वारा मां का वध – सबसे कठिन परीक्षा
भगवान परशुराम के जीवन की एक घटना आज भी लोगों को चौंकाती है, जब उन्होंने अपने पिता ऋषि जमदग्नि (Rishi Jamadagni) के आदेश पर अपनी ही मां रेणुका (Renuka) का वध कर दिया था। यह घटना केवल उनके आज्ञाकारी पुत्र होने का प्रमाण नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसी घटना थी जिसने परशुराम के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया।
क्या था मां के वध का कारण?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन माता रेणुका नदी में स्नान के लिए गई थीं। उसी दौरान राजा चित्ररथ (King Chitrarath) वहां नौका विहार कर रहे थे। उन्हें देखकर माता रेणुका का मन कुछ समय के लिए विचलित हो गया। महर्षि जमदग्नि ने अपनी दिव्य दृष्टि (Divine Vision) से यह देख लिया और क्रोधित होकर अपने पुत्रों को मां को मारने का आदेश दे दिया।
तीनों बड़े पुत्रों ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया, लेकिन परशुराम ने बिना किसी सवाल के अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का सिर काट दिया। यह घटना दर्शाती है कि परशुराम अपने पिता के प्रति कितने आज्ञाकारी और समर्पित थे।
तीन वरदानों ने बदल दी परशुराम की कथा
जब ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से प्रसन्न हुए, तो उन्होंने परशुराम को वरदान देने का वचन दिया। भगवान परशुराम ने तीन वरदान मांगे:
माता रेणुका को फिर से जीवित कर दिया जाए।
उनके चारों भाइयों को भी पुनर्जीवित कर दिया जाए।
उन्हें कभी किसी से पराजित न होना पड़े और दीर्घायु जीवन प्राप्त हो।
महर्षि ने पुत्र के सभी वरदान स्वीकार किए, जिससे यह घटना एक करुण लेकिन प्रेरणादायक मोड़ पर समाप्त हुई।
भगवान परशुराम की यह कथा न केवल उनकी वीरता और शक्ति को दर्शाती है, बल्कि उनके त्याग, आज्ञा पालन और धर्म के प्रति समर्पण को भी उजागर करती है। यही कारण है कि परशुराम जयंती का दिन एक विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है और देशभर में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।