Karnataka High Court, Waqf Board, Muslim Marriage Certificate: संसद में वक्फ बिल पर चर्चा की तैयारी के बीच कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने पूछा कि कैसे वक्फ बोर्ड (Waqf Board) मुस्लिम दंपतियों को शादी और तलाक के प्रमाण पत्र जारी कर सकता है।
इस मामले में हाई कोर्ट ने कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) के उस सरकारी आदेश पर रोक लगा दी थी, जो 30 अगस्त 2023 को जारी किया गया था। इस आदेश के तहत वक्फ बोर्ड और उसके जिला अधिकारी मुस्लिम दंपतियों को मैरिज और तलाक सर्टिफिकेट जारी कर सकते थे। अब कोर्ट ने सरकार को इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए थोड़ा और समय दिया है, और 19 फरवरी को अगली सुनवाई तय की गई है।
HC ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर उठाए सवाल
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया (NV Anjaria) और न्यायमूर्ति एमआई अरुण (MI Arun) की पीठ ने कर्नाटक सरकार से सख्त लहजे में पूछा –”क्या वक्फ अथॉरिटी को शादी और तलाक के प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है? आपके पास ऐसा कोई कानूनी आधार नहीं है।”
दरअसल, इस मामले में आलम पाशा (Alam Pasha) नाम के याचिकाकर्ता ने एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर इस सरकारी आदेश को अदालत में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया कि कैसे वक्फ बोर्ड के अधिकारी शादी और तलाक के लिए सरकारी मान्यता वाले प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं।
कर्नाटक सरकार ने फैसले को बताया मुस्लिम कपल्स की सुविधा
राज्य सरकार का तर्क है कि यह आदेश मुस्लिम दंपतियों की सुविधा के लिए दिया गया था। सरकार के मुताबिक, कई मुस्लिम कपल शादी के बाद विदेश यात्रा या दूसरे राज्यों में स्थानांतरण के लिए प्रमाण पत्र की आवश्यकता महसूस करते हैं। ऐसे में उन्हें बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने से बचाने के लिए यह आदेश जारी किया गया।
“मुस्लिम दंपतियों को शादी के बाद प्रमाण पत्र प्राप्त करने में परेशानी होती थी। हमने उनकी सुविधा के लिए यह आदेश दिया था।” – कर्नाटक सरकार
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को ठोस कानूनी आधार न मानते हुए सरकार से स्पष्ट जवाब की मांग की है।
कर्नाटक सरकार ने पुराने कानून का दिया हवाला, HC ने किया खारिज
याचिका में कहा गया कि सरकार ने इस आदेश के लिए काजी ऐक्ट 1988 (Qazi Act 1988) का हवाला दिया, लेकिन यह 2013 में ही रद्द कर दिया गया था। इसके बावजूद राज्य सरकार ने इस कानून के आधार पर आदेश जारी कर दिया।
वक्फ ऐक्ट (Waqf Act) मुख्य रूप से चल और अचल संपत्तियों के प्रबंधन के लिए बनाया गया है। यह शादी और तलाक से जुड़े मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
“कर्नाटक सरकार ने एक गैर-कानूनी आदेश जारी किया है, जो वक्फ बोर्ड को ऐसे अधिकार देता है जो उसके दायरे से बाहर हैं।” – याचिकाकर्ता
सरकार ने आज सुनवाई टालने की मांग की, HC नाराज
जब सोमवार को इस मामले की सुनवाई हुई, तो कर्नाटक सरकार ने मामले को आगे बढ़ाने की अपील की। सरकार का कहना था कि उनका सरकारी वकील मौजूद नहीं है, इसलिए सुनवाई को टाल दिया जाए।
इस पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा –
“हम आपको और समय नहीं देंगे। सरकार को इस मामले में जवाब देना ही होगा।”
राजनीतिक विवाद में फंसी कर्नाटक सरकार
इस मामले ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार (Congress Government) को कटघरे में खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों ने इसे संविधान विरोधी निर्णय करार देते हुए सरकार पर वक्फ बोर्ड को अनावश्यक शक्ति देने का आरोप लगाया है।
“यह सरकार तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। वक्फ बोर्ड को शादी-तलाक सर्टिफिकेट जारी करने की शक्ति देना कानून के खिलाफ है।” – बीजेपी नेता
दूसरी ओर, कांग्रेस सरकार ने इस आरोप को खारिज करते हुए इसे सिर्फ मुस्लिम समुदाय के हित में उठाया गया कदम बताया है।
अगली सुनवाई 19 फरवरी को
अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी, जहां सरकार को हाई कोर्ट के समक्ष अपने फैसले का कानूनी आधार पेश करना होगा। अगर अदालत सरकार के आदेश को अवैध करार देती है, तो यह फैसला पूरे देश में वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने की दिशा में अहम कदम साबित हो सकता है।