Fake Advertisements : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आयुर्वेदिक (Ayurvedic), सिद्ध (Siddha) और यूनानी (Unani) दवाओं के गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर सख्ती दिखाते हुए दिल्ली (Delhi), आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) समेत कई राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया है।
जस्टिस अभय एस. ओका (Justice Abhay S. Oka) और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां (Justice Ujjal Bhuyan) की बेंच ने राज्यों को फटकार लगाते हुए कहा कि कोर्ट के आदेशों का सही से पालन नहीं किया जा रहा।
राज्यों को कोर्ट में पेश होने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया और उनसे यह स्पष्ट करने को कहा कि वे नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं।
वरिष्ठ वकील शादान फरासात (Shadan Farasat), जो इस मामले में न्यायमित्र के रूप में कोर्ट में उपस्थित थे, उन्होंने बताया कि ज्यादातर राज्यों ने उल्लंघन करने वालों को माफ कर दिया है, जिससे इस तरह के गुमराह करने वाले विज्ञापन लगातार जारी हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर सभी राज्य 1945 के औषधि एवं प्रसाधन नियम (Drugs and Cosmetics Rules, 1945) के नियम 170 (Rule 170) का सही से पालन करें, तो इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।
किन राज्यों को कोर्ट में जवाब देना होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh), दिल्ली (Delhi), गोवा (Goa), गुजरात (Gujarat) और जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) को आदेश दिया कि वे इस मामले में शपथ पत्र (Affidavit) दाखिल करें और नियम 170 लागू न करने का कारण स्पष्ट करें।
कोर्ट ने कहा, “हम इन राज्यों को इस महीने के अंत तक जवाब दाखिल करने का समय देते हैं।” इस मामले की अगली सुनवाई 7 मार्च 2025 को होगी।
आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर सख्ती क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2023 में आयुष मंत्रालय के आदेश को किया था रद्द
अगस्त 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने आयुष मंत्रालय (Ayush Ministry) द्वारा जारी एक अधिसूचना (Notification) को रद्द कर दिया था, जिसमें 1945 के औषधि एवं प्रसाधन नियमों (Drugs and Cosmetics Rules, 1945) से नियम 170 को हटा दिया गया था।
नियम 170 उन विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता था जो आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं को लेकर भ्रामक या गुमराह करने वाली जानकारी देते थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आयुष मंत्रालय का यह आदेश उसके 7 मई 2024 के फैसले के खिलाफ था।
7 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?
सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2024 को अपने आदेश में कहा था कि किसी भी गुमराह करने वाले विज्ञापन को जारी करने से पहले, विज्ञापनदाता से एक स्व-घोषणा पत्र (Self-Declaration Form) लिया जाना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम (Cable Television Network Rules, 1994) के तहत किया जाता है।
यह फैसला भ्रामक दवाओं के विज्ञापन रोकने के लिए लिया गया था, ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके और वे झूठे दावों के जाल में न फंसे।
गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर क्यों बढ़ी चिंता?
हाल ही में कई कंपनियां और ब्रांड आयुर्वेदिक और हर्बल दवाओं के नाम पर भ्रामक दावे कर रही हैं, जिसमें दावा किया जाता है कि उनकी दवाएं कैंसर (Cancer), डायबिटीज (Diabetes) और अन्य गंभीर बीमारियों को पूरी तरह ठीक कर सकती हैं।
इन भ्रामक विज्ञापनों के कारण लोग इन उत्पादों को खरीदते हैं और कई बार इससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
सरकार और कोर्ट की सख्ती जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती को सही से लागू किया जाए, तो गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई जा सकती है।
हालांकि, इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य सरकारों और ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट्स (Drug Control Departments) की होगी कि वे इस नियम को कड़ाई से लागू करें।
क्या होगा अब आगे?
अब सभी की निगाहें 7 मार्च 2025 की सुनवाई पर टिकी हैं। इस सुनवाई में राज्यों से पूछा जाएगा कि उन्होंने गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
अगर राज्य सरकारें संतोषजनक जवाब नहीं देती हैं, तो सुप्रीम कोर्ट और सख्त कार्रवाई कर सकता है।