The News Air- राजस्थान के दौसा में 29 अप्रैल काे प्रसूता की मौत के बाद लापरवाही का केस दर्ज़ होने पर महिला डॉक्टर अर्चना शर्मा ने ख़ुदकुशी कर ली। सुप्रीम कोर्ट के पिछले फ़ैसलों के मुताबिक़, हर मरीज़ की मौत को डॉक्टर की लापरवाही से जोड़ना ग़लत है। इस मुद्दे पर दैनिक भास्कर के पवन कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता से बातचीत की
सवाल: चिकित्सीय लापरवाही की परिभाषा क्या है?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ग़लत इलाज, देखरेख में कमी, ग़लत तरीक़े से सर्जरी, ख़तरों के बारे में पूरी जानकारी नहीं देना, अयोग्य डॉक्टर द्वारा जानलेवा इलाज लापरवाही के दायरे में आते हैं।
सवाल: ऐसे मामलों में क़ानून क्या है?
जवाब: पुलिस FIR, सिविल कोर्ट में में मुक़दमा या उपभोक्ता संरक्षण क़ानून के तहत मुआवज़ा का केस दायर कर सकते हैं।
सवाल: डॉक्टरों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के तीन फ़ैसले क्या हैं?
जवाब: 1. कोई डॉक्टर अपने मरीज़ को जीवन का आश्वासन नहीं दे सकता: नवंबर, 2021 के फ़ैसले में कहा- डॉक्टर पूरी कैपेसिटी के साथ मरीज़ का इलाज कर सकता है। किसी कारण से मरीज़ की मृत्यु होती है तो लापरवाही का दोष नहीं लगाया जा सकता।
- सर्जरी में मौत चिकित्सीय लापरवाही नहीं कही जा सकती: अगस्त, 2021 के फ़ैसले के अनुसार सर्जरी के दौरान मरीज़ की मौत हो ज़ाती है तो उसे स्वाभाविक रूप से डॉक्टर की लापरवाही नहीं माना जा सकता। इसके लिए चिकित्सा साक्ष्य ज़रूरी हैं।
- बिना डॉक्टर को सुने आरोपों पर निर्णय नहीं दे सकती अदालत: मार्च, 2022 के फ़ैसले के अनुसार डॉक्टर को अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिए बिना अदालत कोई एकतरफा निर्णय नहीं सुना सकती। ये मामला डेंगू की दवा से मरीज़ की मौत से जुड़ा था।
डॉक्टर्स ख़िलाफ़ 3 अहम फ़ैसले कौन से हैं?
1 .क़ानून मरीज़ केंद्रित होने चाहिए: जनवरी, 2019 के फ़ैसले के अनुसार में एक अहम फ़ैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारे क़ानूनों को चिकित्सीय लापरवाही के मामले में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मरीज़ केंद्रित दृष्टिकोण अपनाए।
- इलाज के तय मानकों का पालन ज़रूरी है: 2013 के एक फ़ैसले के मुताबिक़, डॉक्टर को उपचार के मानकों व निर्देशों का पालन करना ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो वह लापरवाही है।
- डिलीवरी के बाद देखभाल के बारे में न समझाना लापरवाही: राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने फरवरी 2022 में अपने फ़ैसले में कहा, डिलीवरी के बाद देखभाल के बारे में न समझाना लापरवाही के दायरे में।
मेडिकल स्टाफ़ व डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों में क्या व्यवस्था दी गई है?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2021 में बॉम्बे अस्पताल के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मरीज़ की मौत के हर मामले को चिकित्सीय लापरवाही से जोड़ना ग़लत है। लापरवाही है भी तो भी परिजनों को डॉक्टरों के साथ ग़लत व्यवहार और हिंसा करने का हक़ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में निर्देश दिए हैं।
सरकारी अस्पताल में कम से कम एक पुलिसकर्मी की मौजूदगी।
- डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ़ पर काम के दौरान कोई हमला होता है तो संबंधित आरोपी के ख़िलाफ़ तुरंत मुक़दमा दर्ज़ कराया जाए।
- यह केस दर्ज़ कराने की ज़िम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की होगी।
- प्राइवेट अस्पतालों में उचित सिक्योरिटी रखना अनिवार्य है।
क्या डॉक्टरों व मेडिकल स्टाफ़ को हमलों से बचाने के लिए हमारे क़ानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं?
जवाब: डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ़ की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में एक बिल ड्रॉफ्ट किया था, लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली। हालांकि, प्रोटेक्शन ऑफ़ मेडिकेयर सर्विस पर्सन एंड मेडिकेयर सर्विस इंस्टीट्यूशन एक्ट क़ानून को 23 राज्यों ने लागू किया है, लेकिन IPC (इंडियन पीनल कोड) के साथ इसका तालमेल न होने पर इस क़ानून में प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती।
सरकारी अस्पतालों में तोड़-फोड़, हिंसा या कार्य में बाधा डालने का केस कड़ी धाराओं में दर्ज़ किया जा सकता है। मगर प्राइवेट अस्पतालों को ऐसी सुरक्षा नहीं है।
अक्सर अस्पतालों में कुछ मामलों में मरीज़ डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं और डॉक्टर इनकार करता है। ऐसे मामलों में लापरवाही की जांच का मैकेनिज्म क्या है?
जवाब: चिकित्सा में लापरवाही का मामला एक्सपर्ट नेस का विषय है। जिसकी जांच अन्य स्वतंत्र ओर एक्सपर्ट डॉक्टरों की ओर से ही की जा सकती है। पुलिस, अदालत या सरकार ऐसे मामलों में जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करती है या एम्स जैसे बड़े चिकित्सा संस्थानों से जांच करवाती है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की ज़ाती है।