नई दिल्ली, 15 मार्च (The News Air) चुनाव आयोग ने अंत में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी वेबसाइट पर प्रकाशित कर दी है। यह जानकारी आने से पहले एसबीआई ने 13 मार्च को इसे चुनाव आयोग को प्रस्तुत किया था। एसबीआई ने एक बंद लिफाफे में एक पेनड्राइव भेजी, जिसमें दो पासवर्ड प्रोटेक्टेड पीडीएफ फ़ाइलें थीं। इनमें से एक फ़ाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी और दूसरी फ़ाइल में इन बॉन्ड्स को कैश कराने वाली राजनीतिक पार्टियों की जानकारी थी।
अब जब डेटा सार्वजनिक हो गया है, तो पता चला है कि इलेक्टोरल बॉन्ड किसने खरीदा है। एक व्यक्ति या कंपनी ने किस पार्टी को कितने रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड दिए हैं, यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि दोनों डेटा में मेचिंग नहीं है। इसके साथ ही, बहुत से प्रश्न उठते हैं जिनके उत्तर आवश्यक हैं। क्या कोई इन दोनों डेटा को लिंक कर सकता है? बॉन्ड किसने खरीदा और कैश करवाने वाली पार्टी कौन है? इस परिस्थिति में, एसबीआई ने खरीदारों और राजनीतिक पार्टियों के डेटा को अलग-अलग प्रदान किया है।
एसबीआई द्वारा दिए गए डेटा के अनुसार, पहले डेटा में खरीदार का नाम, खरीदने की तारीख, और बॉन्ड का डेनोमिनेशन, यानी कीमत, शामिल है। दूसरी फ़ाइल में, बॉन्ड को कैश करने वाली राजनीतिक पार्टियों का नाम, राशि, और कैश कराने की तारीख शामिल है। ये दोनों डेटा अलग-अलग हैं और सवाल उठता है कि क्या इन्हें लिंक किया जा सकता है।
बॉन्ड्स अलग-अलग फेज में बिकते हैं, और बिक्री की तारीखें तय की जाती हैं। बॉन्ड खरीदने के 15 दिनों के भीतर कैश किया जाना चाहिए। इससे हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला है।
बॉन्ड की राशि 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये की हो सकती है। इसलिए, पता लगाना सरल होगा। अगर बॉन्डों की डेटा लिंक नहीं होती, तो सुप्रीम कोर्ट में चिंता जागरूकता बढ़ती। फाइनेंसियल एक्सपर्ट्स का कहना है कि बॉन्डों पर ऑडिटिंग की आवश्यकता है ताकि गलती न हो।
बॉन्ड का यूनिक नंबर महत्वपूर्ण है, जिससे पहचान की जा सके कि किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है। आने वाले दिनों में, इलेक्टोरल बॉन्ड्स की डिटेल्स को लेकर क्लियरिटी चाहिए।