नई दिल्ली, 30 जुलाई (The News Air)
तालाबों, भूमि जल और नदियों के जलस्तर में लगातार कमी हो रही है। इससे खेतों में सिंचाई की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर रूप लेती जा रही है। किसानों और लोगों की समस्या को दूर करने के लिए बिहार की बेटी ने सिंचाई की नई तकनीक का विकास की है।
दरअसल, परंपरागत सिंचाई की बदहाल होती व्यवस्था से खेती-किसानी में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। किसानों की इस समस्या का तोड़ नालंदा की बेटी प्रियम्वदा प्रकाश ने निकाल लिया है। वर्तमान में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के केमिकल विषय से एमटेक कर रही प्रियम्वदा प्रकाश और दीपांकर दास दोनों ने मिल कर हाइड्रो जैल अर्थात पानी की गोली बनाने में सफलता पाई है।
हाइड्रो जैल से होगी खेत की सिंचाई
जीबी पंत (गोविंद बल्लभ पंत) राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण, सतत विकास संस्थान कोसी-कटारमल के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत त्रिपुरा विश्वविद्यालय ने हाइड्रो जैल अर्थात पानी की गोली बनायी है। चार किलो हाइड्रो जैल से एक हेक्टेयर खेत की सिंचाई हो सकती है। जैल की गोलियां मिट्टी में आठ माह से एक साल तक कारगर हो सकती है। इसके प्रयोग से कृषि में 30 प्रतिशत तक उत्पादन वृद्धि का भी अनुमान है। सेल्यूलोज नैनोक्रिस्टल निकालने में सफलता अर्जित की है। अब इन हाइड्रो जैल गोलियों की अवशोषण क्षमता को 600 फीसदी तक बढ़ाने में सफलता मिल गयी है। यह अनुसंधान प्रयोगशाला से बाहर आते ही कृषि क्षेत्र के लिए क्रांतिकारी क़दम होगा।
पर्यावरण मंत्रालय ने शोध परियोजना को दी थी स्वीकृति
बता दें कि वर्ष 2018-19 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत भूमि की सिंचाई में पानी की बर्बादी को रोकने, सूखे की मार को कम करने, उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से यह शोध परियोजना स्वीकृत की गयी थी।
क्या है तकनीक?
जीबी पंत संस्था की ओर से प्रयोगशाला अनुसंधान पर आधारित इस परियोजना पर त्रिपुरा विश्वविद्यालय में अनुसंधान कराया गया। गहन अनुसंधान के बाद विश्वविद्यालय के केमिकल और पॉलीमर इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. सचिन भलाधरे के नेतृत्व में प्रियम्वदा प्रकाश और दीपांकर दास की टीम ने हाइड्रो जैल बनाने में सफलता अर्जित की है। अनुसंधान में हाइड्रो जैल से निर्धारित मात्रा में पानी विवरण के कारण पृथ्वी में पानी का ठहराव 50 से 70 प्रतिशत बढ़ जाता है।
मिट्टी का घनत्व भी दस फीसदी तक कम होता है। जैल देने से अर्ध शुष्क और शुष्क भागों में खेती पर चमत्कारी प्रभाव आने की संभावना है। यह मिट्टी में वाष्पीकरण, बनावट आदि को भी प्रभावित करता है। साथ ही बीज, फूल और फलों की गुणवत्ता के साथ सूक्ष्म जीवों की गतिविधियां भी बढ़ जायेंगी। सूखे से भी खेती बची रहेगी। फसल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने में कारगर होगी।
हाइड्रो जैल से नहीं होता पर्यावरण प्रदूषण
प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले सेल्यूलोज आधारित हाइड्रो जैल आसानी से प्रकृति में सूर्य के प्रकाश से क्षय हो जाते हैं और इनसे कोई पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है। यह आसानी से पानी को सोखता है और भूमि में पानी का रिसाव भी करता है। 35 से 40 सेल्सियस में यह हाइड्रो जैल प्रभावी ढंग से कारगर है।
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