The News Air- अमृतसर समाज जिस वस्तु को सामाजिक तौर पर नकारता है, अमृतसर के मजीठा में आस्था उसे ही प्रसाद बना देती है। ऐसा हर साल होता है। मजीठा से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव भोमा में बाबा रोडे शाह की समाधि है। यहां हर साल मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग मन्नत पूरी होने के बाद आते हैं और शराब चढ़ाते हैं। यही शराब बाद में भक्तों को प्रसाद के तौर पर बांट दी जाती है। कोविड खत्म हो जाने के चलते दो दिन चलने वाले इस मेले में इस साल 3 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के माथा टेकने का अनुमान है।
शराब का बंटता प्रसाद।
बाबा रोडे शाह की दरगाह पर शुरू हुए मेले में बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचकर आशीर्वाद ले रहे हैं। मेले के दौरान खास बात यह भी थी कि महिलाएं भी प्रसाद लेने में पीछे नहीं रहीं। बेझिझक महिलाएं शराब का प्रसाद ले रही हैं और उसे ग्रहण भी कर रही हैं। महिला श्रद्धालुओं का मानना था कि यह बाबा जी का आशीर्वाद है और इसे लेने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।
वहीं आयोजकों का मानना है कि दो दिन के मेले में 2 लाख लीटर से भी अधिक शराब चढ़ती है और उसे प्रसाद के तौर पर बांट भी दिया जाता है। प्रसाद के तौर पर शराब चढ़ाने वाले यहां मूल्य नहीं देखते। आस्था के अनुसार, महंगी से महंगी शराब भी चढ़ाई जाती है और देसी भी। लेकिन इसका जो प्रसाद बंटता है, वह सभी का मिक्सचर होता है। भक्तों का मानना है कि इसे शराब के तौर पर न समझकर प्रसाद के रूप में लेना चाहिए।
लोग यहां शराब चढ़ाते भी हैं और साथ भी ले जाते हैं।
घंटों लाइनों में लगकर लोग करते हैं बारी का इंतजार
हजारों लोग लंबी लाइनों में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। कई तो मदहोश बाबा रोडे शाह के जयकारे लगाते नजर आते हैं। हाथों में शराब की कैनियां, विदेशी-देसी शराब की महंगी बोतलें लहराते हुए परिजनों के साथ लोग ढोल की थाप पर नाचते हैं। शराब का प्रसाद लेने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी कुछ कम नहीं होती। जिस तरह लोग बोतलें व कैन भरकर यहां प्रसाद चढ़ाने आते हैं, वैसे ही लोग बोतलें व कैन लेकर प्रसाद लेने भी पहुंच जाते हैं।
कैसे हुई यहां शराब चढ़ाने की शुरुआत
यहां शराब का प्रसाद कैसे बंटना शुरू हुआ, यह एक बड़ा सवाल है। लेकिन इसके पीछे की कहानी भी काफी रोचक है। यहां सेवा कर रहे एक सेवक ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि एक बार गांव का उजागर सिंह, जिसकी औलाद नहीं थी। बाबा जी के पास आया और पुत्र की दात मांगी। इसके बाद उनके यहां एक बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम रवेल सिंह रखा।
पुत्र की दात पूरी होने के बाद उजागर सिंह ने बाबा जी को खेत या 500 रुपए देने की बात कही, लेकिन बाबा जी ने मना कर दिया। बाबा जी ने उन्हें कहा कि यहां जो संगत बैठी है, उनके लिए शराब ही ले आओ, जिसके बाद यहां शराब का भोग लगने लगा। यहां भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। भक्त अपनी इच्छा से शराब चढ़ाता है। बाबा जी तो शराब को हाथ भी नहीं लगाते थे।