जिस आजादी का ख्वाब सजा फाँसी के फंदो पर शहीद झूल गए, गुलामी की गोली को आजाद सीने पर झेल सदा सदा के लिए सो गए, उसी आजाद भारत की आजाद संसद में सांसदों की पिटाई कुटाई हाथापाई हंगामा हुडदंग सियासत का वह खौफनाक चेहरा है जो लोकतंत्र के मंदिर में सजाने, बसाने, समाने की काबिलियत शायद खो चुका है। सवाल यही उठता है इस घटिया गैर जिम्मेदार सियासत से आजादी कब? सवाल यही उठता है कि दुनिया सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में देश के जिन सियासतदानों को देख रही है वो सच मायने में संविधान की आजादी को संभाल पाने में सक्षम हैं क्या? क्या वो सच में संविधान के मान सम्मान से खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं? वो सफेदपोश संविधान की धज्जियां लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर में नहीं उड़ा रहे हैं क्या? मार्शल के हाथों कूटे, पीटे, धकेले जा रहे इन संसद के सूरमाओं की सूरत देख क्या सियासत शर्मसार नहीं हुई होगी।
जिस सदन ने देश को एक सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल के संबोधन को सुना हो, जिस सदन के पटल पर भारत के निर्माण का खाका तैयार कर उसे सजाने संवारने संभालने वाले पंडित नेहरू के स्वर गूंजे हो, जिस सदन के गलियारे में शिक्षा को सम्मान बनाने वाले अबुल कलाम आजाद की आवाज पर मेजें थपथपाई गई हो, जिस सदन में कानून मंत्री बन संविधान से समाधान की राह वतन को देने वाले समूचे राष्ट्र को संविधान के रूप में सुरक्षा का छाता दे जन जन के अधिकार को सुरक्षित करने वाले बाबा साहब अंबेडकर के नाम से पूरे विश्व में पहचान मिली हो, जिस सदन में कवि हृदय शब्दों के जादूगर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान नेता ने लौह नारी इंदिरा गांधी को शक्ति का रूप स्वरूप मान माँ दुर्गा की संज्ञा से संबोधित कर अनुपम उदाहरण पेश किया हो। आज उसी सदन में हाय मार डाला मार्शल ने पीट डाला की चीख पुकार क्या मंजर लोकतंत्र के कलेजे पर खंजर से कम है क्या? इस कूट कुटाई और मार पिटाई को देख देश सन्न है और विश्व भौचक्का। राजेंद्र बाबू के सदन में मारपीट का यह रंग किसने, किस अधिकार, किस जिद्द के कारण चढ़ा दिया यह अपमानित करने वाला सवाल देश नहीं आज पूरी दुनिया पूछ रही है।
सरकार पर विपक्ष हमलावर है राहुल गाँधी ने आरोप लगाया और जोर देकर कहा कि सदन में बाहर से लोग बुला कर सांसदों को पीटा गया, अपमानित किया गया, उन्होंने कहा कि किराए के लोग मार्शल के भेष में बुलाकर सांसदों की पिटाई कराई गई। मनोज झा ने कहा मार्शल लॉ भी हमने देख लिया पहले यह पड़ोस के देशों में लागू हुआ करता था। डोला बनर्जी ने कहा लोकतंत्र को मोदी शाह ने फाँसी पर लटका दिया, उसकी हत्या कर दी, संजय राउत ने कहा हमें ऐसा लगा कि हम पाकिस्तान के सरहद पर खड़े हैं और दुश्मन हमें धक्के मार मार कर बाहर निकाल रहा है। छाया वर्मा ने बताया संसद में सांसदों का इतना अपमान संसद में पहले कभी नहीं हुआ, फूला देवी ने हाथ पैर कमर में चोट और दर्द को बयां किया तो प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि संसद में ऐसा अपमान ऐसी अराजकता होगी सोचा भी नहीं जा सकता था। इन सवालों के जवाब में सरकार ने अपने आठ चहेते चेहरे सामने उतारे, इन आठ मंत्रियों ने मारपीट में मार्शल की चोट का अलाप गाया और विपक्ष पर अराजकता करने का रटा रटाया आरोप लगा विपक्ष को अराजक बता ठीकरा विरोधियों के सिर फोड़ आपने दामन को बेदाग और सामने वालों को दागदार, अराजक, हमलवार, आरोपी बता सियासत की दुनिया में दोनों ही खेमे के बयानबाज लौट गए। पीटने वालों और पिटने वालों का आरोप सबके सामने है सब अपने-अपने सफाई में खुद को बेकसूर दूसरों को दागदार बता वापस अपने काम में मशगूल हो गए। इस सवाल का जवाब अभी शेष है संसद के मंदिर को क्यों दागदार किया गया? यह घिनौनी घटना क्यों घटी? संसद को कलंकित करने वालों पर कार्यवाही क्या होगी, यह जवाब न विपक्ष के पास है न सरकार के पास है। यही सियासत है तो ऐसे सियासत से तौबा करने का अब वक्त आ गया है।
इसी सियासत ने संसद को बदनाम कर के रख दिया, इसी सियासत ने संसद को दागदार कर के रख दिया, इसी सियासत ने संसद को शर्मसार कर के रख दिया, इसी सियासत ने संविधान के परखच्चे उड़ा के रख दिए, इसी सियासत ने सदन के सम्मान की ईंट से ईंट बजा दी, इसी सियासत ने देश को बदनाम कर दिया। अगर ऐसी ही सियासत होगी तो लोग लाजिम है पूछेंगे ही इस दागदार सियासत से आजादी कब?
किसने सोचा होगा कि वतन की नेतागिरी एक दिन मार्शल गिरी के दम पर आवाज दबाने का हथियार बन जाएगी। ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि बोलने पर बोलने देने वाले मार्शल बिठा देंगे। आजद वतन में लब बोल सकें यही तो आजादी के मायने हैं, पर लोगों को खामोश रखने और आजाद होठों की पहरेदारी को मार्शल का पहरा, यह कहर है लोकतंत्र पर, यह तमाचा है संविधान पर, यह साजिश है सियासत की जिसकी गिरफ्त में जकड़ा भारत छटपटाता सा महसूस करने लगा है आजादी के पवित्र महीने में आजाद भारत की आजाद संसद में मार्शल के हाथों मारपीट, सांसदों की ठुकाई पिटाई की तस्वीरें क्या कहती हैं? यह सियासत है तो सियासत से तौबा, यही राजनीति है तो ऐसी राजनीति किस काम की और अगर यही नेतागिरी है तो राम बचाए इन नेताओं से जो ना संविधान बचा पाए, न संसद की गरिमा, यह हमला महज कुछ जिस्म तक ही सीमित नहीं, यह खौफनाक हमला संसद की आत्मा पर हुआ है, भारत के मान सम्मान गौरव पर हुआ है, जितने जिम्मेदार इस नाटक के किरदार नेता हैं उतने ही जिम्मेदार यकीनन हम मतदाता भी हैं, हमने ही ऐसे लोगों को विश्व के सबसे बड़े सदन में चुन कर भेजा है, संविधान की मर्यादा संसद की गरिमा, देश की लाज, नेहरू, पटेल, अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, अटल बिहारी की विरासत बचाने की काबिलियत ही नहीं रखते।