नई दिल्ली, 14 दिसंबर (The News Air) जाति, धर्म , या भाषा के अर्थ वाले नामों या तिरंगे से मिलते-जुलते झंडे वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि ऐसे मामले विधायिका के क्षेत्राधिकार में आते हैं और अदालत का काम कानून बनाना नहीं है।
कार्यवाही के दौरान याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने तर्क दिया कि हालांकि व्यक्ति धर्म या जाति के आधार पर वोट नहीं मांग सकते, लेकिन राजनीतिक दल ऐसे अर्थों का उपयोग करके बनाये जा सकते हैं, जे अस्वीकार्य होना चाहिए।
उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि कानूनी समाधान होने तक इस मुद्दे के समाधान के लिए निर्देश जारी किए जाएं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की खंडपीठ ने हालांकि, इस स्तर पर कोई भी निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि नामकरण का मुद्दा एक गंभीर मामला है जिसमें विधायी कार्रवाई की आवश्यकता है।
पीठ ने एक निर्धारित परीक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि केवल नाम ही निर्णायक नहीं हो सकता, निर्णय अंततः संसद पर निर्भर करता है।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने 17 अक्टूबर का एक पत्र प्रदान किया, जिसमें उठाई गई चिंताओं को संबोधित करने वाले निर्देश शामिल थे। इस पत्र के आलोक में केंद्र सरकार ने मामले में जवाब दाखिल नहीं करने का विकल्प चुना।
इसके बाद अदालत ने अगली सुनवाई 7 मई 2024 के लिए तय की। उसने दोहराया कि नामकरण का मुद्दा एक जटिल मुद्दा है जिस पर संसदीय विमर्श की आवश्यकता है।
अगस्त में कोर्ट ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का और समय दिया था।
उपाध्याय की जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसे राजनीतिक दलों के नाम किसी उम्मीदवार की चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जो कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए), 1951 के तहत एक भ्रष्ट आचरण है।
याचिका में हिंदू सेना, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दलों का जिक्र करते हुए कहा गया कि यह आरपीए और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है।
इसमें कहा गया है: “इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल हैं, जो राष्ट्रीय ध्वज के समान झंडे का उपयोग करते हैं, जो आरपीए की भावना के भी खिलाफ है।”
भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के 2019 के जवाब के अनुसार, 2005 में उसने धार्मिक अर्थ वाले नाम वाले किसी भी राजनीतिक दल को पंजीकृत नहीं करने का नीतिगत निर्णय लिया था और तब से उसने ऐसी किसी भी पार्टी को पंजीकृत नहीं किया है।
इसमें कहा गया है कि 2005 से पहले पंजीकृत ऐसी कोई भी पार्टी धार्मिक अर्थ वाले नाम के कारण अपना पंजीकरण नहीं खोएगी।