नई दिल्ली, 30 मार्च (The News Air) : दल-बदल क़ानून एक मार्च 1985 में अस्तित्व में आया, ताकि अपनी सुविधा के हिसाब से पार्टी बदल लेने वाले विधायकों और सांसदों पर लगाम लगाई जा सके. नेताओं के दल बदलने का कारण उनका खुद का वोटबैंक होता है जिसे कोई दूसरा दल टक्कर नही दे सकता है आसानी से। इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए। हम पहले जिस पर भरोसा करते हैं, उसे ही चुनकर देते हैं। पार्टी कौन-सी भी हो,व्यक्ती और पार्टी महत्वपूर्ण है। अगर खासदार,आमदार चुनने के बाद अगर वह पार्टी बदल देता है और वह भी सत्ता और पैसों के लिए तो वह निश्चित रूप से गद्दार है। उसे बर्खास्त करना चाहिए। ऐसा इंसान देश के लिए और समाज के लिए कलंक है, एक मानव जाति के लिए धंब्बा है। ऐसा इंसान देश को भी बेच सकता है। ऐसे लोगों से देश को ज्यादा खतरा है। इससे देश को और जनता को आर्थिक नुक्सान होता है। आज देश में एमएलए और एमपी की खरीदारी बहोत तेजी से तेजी के साथ चल रही है। और खरीदार एक ही पार्टी कर रही है। और मजे एक बात और कानूनन इस्तीफा देकर पहले सरकार गिराई जाती है और बाद में चुनाव कराकर जिताया जाता है। इतना कैसा विश्वास की मै ही जितकर आऊंगा। क्या इसमें धांधली नहीं है? अगर पहले चुनकर आने के लिए सारी कवायद की जाती है और एकाएक इस्तीफा दिया जाता है, यह समज के बाहर है। यह तो कोई सतयुग नहीं है, इंसान इमानदार हो, लेकिन दिखाने के दांत अलग और खाने के दांत अलग होते हैं नेताओं के, जनता सब जानती है लेकिन मजबुर है। नेता सत्ता के लिए अपना ईमानधर्म बेच रहे हैं। देश को, जनता को इनसे और ऐसे नेताओं से बचना बहोत जरुरी है। यह काम जनता ही कर सकती हैं।
विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राज्यों में विधायकों और मंत्रियों के पार्टी बदलने का सिलसिला भी शुरू हो गया है.
भारतीय राजनीति आज पूरी तरह से सत्ता केन्द्रीत हो गई है। राजनीति में समाज और देश सेवा की भावना दिनों-दिन कम होती जा रही है। स्वतंत्रता आंदोलन में जिन लोगों ने शिरकत किया उनलोगो का उद्देश्य देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था। इन लोगों में कुछ ने शांति एवं अहिंसा का मार्ग अपनाया तो कुछ लोगों क्रांतिकारी मार्ग को चुना। जिन लोगों ने क्रांतिकारी रास्ते को अपनाया उन में से अनेक क्रांतिकारीयो को फांसी के फंदे को भी चुमना पड़ा था। हजारों लोगों के बलिदान के उपरांत देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ। आजादी के बाद देश की राजनीति में विचारधारा के प्रति निष्ठा के भाव में गिरावट आती गई। जिसके परिणामस्वरूप अवसरवादी राजनीति को बढ़ावा मिलने लगा। इसके साथ ही राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश भी सम्मान्य बात हो गई है। जो राजनीति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। वर्तमान राजनीति में अवसरवादीता एवं अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को प्रवेश करने पर कठोरता से नियंत्रण करने की जरुरत है। राजनीति क्षेत्र में यदि उपर्युक्त बदलाव किए जा सके तो यह देश के हित में होगा। तभी जाकर के गौरवशाली देश का नवनिर्माण हो सकता है।
दल-बदल का साधारण अर्थ एक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होना है । संविधान के अनुसार भारत में निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं जिसमें
किसी विधायक या सांसद का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना।
मौलिक सिद्धांतों के आधार पर विधायक या सांसद का अपनी पार्टी की नीति के विरुद्ध योगदान करना।
किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक या सांसद का निर्दलीय रहना।
परन्तु पार्टी से निष्कासित किए जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा।
सारी स्थितियों पर यदि विचार करें तो दल बदल की स्थिति तब होती है जब किसी भी दल के सांसद या विधायक अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ते हैं या पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हैं। इस स्थिति में उनकी सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है और उन पर दल बदल निरोधक कानून भी लागू किया जा सकता है।
पर यदि किसी पार्टी के एक साथ दो तिहाई सांसद या विधायक (पहले ये संख्या एक तिहाई थी) पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर ये कानून लागू नहीं होगा पर उन्हें अपना स्वतन्त्र दल बनाने की अनुमति नहीं है वो किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं।
दल बदल के लिए एक प्रसिद्ध जुमला प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है “आया राम गया राम”
भारतीय इतिहास में यह जुमला हेय की दृष्टि से देखा जाता है इस स्लोगन का प्रतिपादन चौथे आम चुनावों के बाद हुआ था वर्तमान में भारतीय राजनीति में बहुत से दलों का निर्माण हो चुका है जो एक चिंता का विषय है अगर सभी लोग राजनीति में अपनी भागीदारी दिखाने लगेंगे तो जनता का विकास संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि राजनीति में शिक्षित लोगों का होना आवश्यक है। दल छोड़कर गए सदस्य के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार सदन के अध्यक्ष के पास होता है।
दल बदल कानून लोकसभा या विधान सभा अध्यक्ष पर लागू नहीं होता अर्थात यदि लोकसभा या विधान सभा का कोई सदस्य अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अपने दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दे या फिर दल के व्हिप के विरुद्ध जाकर मतदान कर दे तो उस पर ये कानून लागू नहीं होता। राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के दौरान दल के व्हिप का उल्लंघन करने पर भी सदस्यों पर दल बदल कानून लागू नहीं होता|
दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित व्यक्ति तब तक मंत्री बनने के लिए अयोग्य रहता है जब तब वह दुबारा चुन कर सदन का सदस्य न बन जाए|
52वें संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा, सांसदों या विधायकों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में दल परिवर्तन करने पर उन्हे अयोग्य ठहराने का प्रावधान किया गया है।इसके लिए संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गयी है।
अधिनियम के कुछ प्रमुख उपबंध –
- यदि कोई राजनेता सदन में अपने दल के विपरीत कार्य करता है,या मतदान में अनुपस्थित रहता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।
- यदि कोई निर्दलीय सदस्य चुनाव जीतने के 6 महीने के भीतर किसी दल में सम्मिलित हो जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है।
- यदि कोई मनोनीत सदस्य 6 महीने बाद कोई दल ज्वाइन करता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।
- अपवाद – यदि दो तिहाई सदस्य किसी पार्टी से अलग होकर नया दल बनाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द नही होगी।पहले यह संख्या एक तिहाई थी,लेकिन जिन राज्यों के पास कम सीटें थी वहां सरकार गिराना आसान हो गया था,अतः इसे दो तिहाई करना पड़ा।