9 जुलाई (The News Air)
औषधीय पौधों में शुमार नींबू घास या लेमन ग्रास की खेती भी किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सेहत के लिए गुणकारी लेमन ग्रास कई दवाइयों को बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। झारखंड के कई जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
झारखंड के कई जिलों में हो रही खेती- राज्य के खूंटी जिले के किसानों के लिए लेमन ग्रास की खेती काफी लाभकारी साबित हो रही है। यही कारण है कि आज खूंटी ही नहीं झारखंड के कई जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। वैसे तो खूंटी जिले में लेमन ग्रास की खेती का इतिहास पुराना नहीं है क्योंकि इसकी खेती की शुरुआत जिले में 2019-20 में शुरू हुई। इस समय जिले के 250 एकड़ से अधिक खेत में नींबू घास की खेती की गयी है। नींबू घास की खेती में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक है।
एक एकड़ खेत से दो से तीन लाख रुपये की आमदनी- किसान बताते हैं कि पहले उन्हें लेमन ग्रास की खेती के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसायटी ने उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया। दो साल पहले जिले में इसकी खेती प्रायोगिक रूप से की गयी, पर इससे होने वाले मुनाफे को देखते हुए अन्य किसान भी इसकी ओर आकर्षित हुए और खेती करने लगे। बताया गया कि एक एकड़ खेत से दो से तीन लाख रुपये की आमदनी आसानी से की जा सकती है, जिन खेतों में पहले अफीम की खेती की जाती थी, वहां अब नींबू घास उगाकर किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर जीवन स्तर बेहतर बना रहे हैं।
लेमन ग्रास की पत्तियों और इसके तेल की है मांग- किसान बताते हैं कि नींबू घास की मांग भी काफी अच्छी है। इसकी मांग लेमन ग्रास की पत्तियों और इससे निकलने वाले तेल के कारण है। बाजार में लेमन ग्रास तेल की कीमत 15 सौ से दो हजार रुपये प्रति लीटर है। बताया गया कि पांच क्विंटल लेमन ग्राम से 75 से 80 किलोग्राम तेल निकलता है। मात्र चार महीने में फसल तैयार हो जाती है। खूंटी जिले में तीन जगहों मुरहू प्रखंड के सुरूंदा, अनिगड़ा और कपरिया में लेमन ग्रास से तेल निकालने के लिए आसवन केंद्र भी बनाए गए हैं, जहां तेल के लिए मशीनें लगायी गयी हैं।
अफीम के विकल्प में आदिवासियों ने शुरू की खेती- लेमन ग्रास की खेती के जानकार और सेवा वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष अजय शर्मा बताते हैं कि अफीम की खेती से किसानों को तत्कालिक कुछ लाभ तो हो जाता था, पर खेत बर्बाद हो रहे थे। अफीम की खेती पर रोक के बावजूद किसान मजबूरी में इसकी खेती करते थे और मुनाफा का 90 फीसदी हिस्सा दलाल ले जाते थे। जिला प्रशासन के सहयोग से सोसायटी के कार्यकर्ता ग्राम सभाओं में जाकर ग्रामीणों के बीच जागरुकता अभियान चलाने लगे और आदिवासियों को अफीम के विकल्प के रूप में औषधीय और सगंध पौधों की खेती करने के लिए प्रेरित करने लगे।
जिला प्रशासन का इसमें भरपूर सहयोग मिला। अजय शर्मा ने बताया कि अभियान का शुभारंभ राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने 15 जून 2019 को कुंजला, खूंटी में आयोजित सेमिनार में किया था। मंत्री ने भी समाज के लोगों से अपील की थी कि कोई ऐसी खेती न करें, जिससे समाज की बदनामी और बर्बादी हो।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने दिया था प्रशिक्षण- सेमिनार के तुरंत बाद लेमन ग्रास की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की सुमन बारला और बरदानी लकड़ा ने किसानों को प्रशिक्षण दिया। इसका परिणाम है कि जिले के कई गांवों में लेमन ग्रास की फसलें लहलहा रही हैं। वहीं केंद्रों में लेमन ग्रास से तेल निकालने का काम सितंबर महीने से शुरू हो जायेगा।
लेमन ग्रास सेहत के लिए फायदेमंद- लेमन ग्रास को सेहत के लिए किसी वरदान की तरह माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें, तो आज कई तरह की दवाइयों में इसका उपयोग किया जा रहा है। इसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटी-फंगल जैसे गुण पाए जाते हैं। दवाइयों के अलावा कई तरह की अन्य वस्तुओं जैसे कॉस्मेटिक और डिटर्जेंट आदि बनाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।