Bihar Lok Sabha Chunav विकास चन्द्र पाण्डेय, पटना। बिहार में कांग्रेस की सियासत मुश्किलों के दौर से गुजर रही है। बीते कुछ दशकों में कांग्रेस लोकसभा चुनाव खुद के दम पर लड़ी हो या लालू यादव की अगुवाई वाली राजद के साथ दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस को कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। इस चुनाव में भी कांग्रेस की राह आसान नजर नहीं आ रही है।
दरअसल, कांग्रेस ने भले ही इंडी अलायंस के साथ गठबंधन किया है, लेकिन बिहार में लालू यादव के तेवर कांग्रेस के लिए मुश्किल हालात पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस की सहमति के बगैर ही वामपंथी दलों की सीटें तय कर दी है, तो वहीं राजद प्रत्याशियों को सिंबल भी बांटे जा रहे हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब लालू यादव खुद फैसले ले रहे हो। कांग्रेस ने जब पहली बार राजद के साथ गठबंधन किया, तब भी कांग्रेस को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था।
1998 में हुआ था पहला गठबंधन : कांग्रेस ने साल 1998 में पहली बार राजद के साथ गठबंधन किया। उसके बाद 1999 में चुनाव हुए। तब बिहार-झारखंड एक थे और उस समय 54 लोकसभा सीटें हुआ करती थी। गठबंधन के चलते कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ 13 सीटें ही मिली। इनमें से 5 पर दोस्ताना मुकाबला हुआ और कांग्रेस सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी। इसके बाद से कांग्रेस बिहार में कभी नहीं उठ पाई।
2009 में खुद के दम पर लड़ा चुनाव : कांग्रेस ने साल 2009 का चुनाव खुद के दम पर लड़ा। दरअसल, राजद ने इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटें ही देने का फैसला किया। इसमें सासाराम, औरंगाबाद और मधुबनी लोकसभा सीटें थी, यहां कांग्रेस के पहले से ही सांसद थे, ऐसे में कांग्रेस ने राजद से गठबंधन तोड़ दिया, लेकिन कांग्रेस सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई और दो सीटों पर निकटम प्रतिद्वंदी रही। यहां तक की राजद भी दो सीटों पर सिमट कर रह गई।
2010 में राजद की हुई दुर्गति : साल 2010 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। इस बार भी दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। यहां राजद बुरी तरह पीट गई। जबकि कांग्रेस के वोट में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
2019 में सिर्फ एक सीट ने बचाई लाज : 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद ने फिर एक साथ आने का फैसला किया और महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ा। बिहार में राजद को एक भी सीट नहीं मिली, सिर्फ कांग्रेस एक ही सीट किशनगंज जीत सकी।
लालू की रणनीति में फंसी कांग्रेस : कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा बताते हैं कि लालू यादव बिहार में अपनी सरकार बनाना चाहते थे, इसके लिए उन्हें कांग्रेस का साथ चाहिए था, एक बार कांग्रेस उनके पाले में आई तो लालू यादव ने उसके आधार मतों में सेंधमारी चालू कर दी और कांग्रेस को बिहार में विकल्प के तौर पर उभरने नहीं दिया। इसके लिए उन्होंने यादवों और मुसलमानों को अपनी ओर कर लिया, जबकि सवर्ण भाजपा की तरफ होते चले गए। वहीं अन्य जातियां राजद के साथ हो गई। लिहाजा कांग्रेस का सवर्ण और अनुसूचित जाति को मिलाकर जो जनाधार था, वह खिसकते चला गया।
यहां राजद ने मुसलमान और यादवों यानी माई के समीकरण दम पर बिहार शानदार राजनीतिक पारी खेली और अब लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव इस समीकरण का विस्तार कर इसे माई से बाप की ओर यानी बहुजन, अगड़ा व पिछड़ा की ओर ले जा रहे हैं। जबकि अब तक कांग्रेस अपना कोई समीकरण नहीं बना पाई और अब ये हालात है कि कांग्रेस पूरी तरह राजद पर आश्रित है।