NOTA : लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) में नोटा (NOTA) को लेकर नए आंकड़े सामने आए हैं। चुनाव आयोग (Election Commission) के मुताबिक, इस बार के चुनाव में नोटा पर मतदान पिछले दो आम चुनावों की तुलना में कम हुआ है। हालांकि, बिहार (Bihar) में सबसे ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया है।
लोकसभा चुनाव 2024 में नोटा का कितना रहा प्रतिशत?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (NOTA) विकल्प को 2013 में पहली बार पेश किया गया था। चुनाव आयोग की ‘एटलस-2024’ (Atlas-2024) रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनाव में नोटा को 1.08% वोट मिले थे, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 1.06% पर आ गया। 2024 के चुनाव में यह प्रतिशत और गिरकर 0.99% हो गया। भले ही यह आंकड़ा छोटा लगे, लेकिन कई सीटों पर जहां जीत का अंतर कम था, वहां नोटा वोटों की संख्या ने अहम भूमिका निभाई।
बिहार में सबसे ज्यादा नोटा, नागालैंड में सबसे कम
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2024 लोकसभा चुनाव में:
बिहार (Bihar) में सबसे ज्यादा 2.07% मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।
दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव (Dadra & Nagar Haveli and Daman & Diu) में 2.06% वोट नोटा को गए।
गुजरात (Gujarat) में 1.58% मतदाताओं ने नोटा पर वोट किया।
वहीं, नागालैंड (Nagaland) में नोटा को सबसे कम मात्र 0.21% वोट मिले।
किन कारणों से लोग नोटा का इस्तेमाल करते हैं?
राज्यों में नोटा के अलग-अलग प्रतिशत होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: जहां कड़े मुकाबले होते हैं, वहां मतदाता अक्सर किसी न किसी पार्टी को वोट देते हैं।
स्थानीय दलों की प्रमुखता: कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल इतने प्रभावी होते हैं कि नोटा का विकल्प ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता।
जनता में जागरूकता: बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में नोटा के प्रति जागरूकता अधिक हो सकती है।
प्रत्याशियों से असंतोष: कई बार जब मतदाताओं को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता, तो वे नोटा का विकल्प चुनते हैं।
क्या नोटा का कोई प्रभाव पड़ता है?
नोटा का इस्तेमाल 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2014) से किया जा रहा है। चुनाव आयोग ने इसे इसलिए लागू किया ताकि मतदाता अपनी असहमति व्यक्त कर सकें और चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बनी रहे। हालांकि, भारत में नोटा को चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की शक्ति नहीं दी गई है, यानी यदि किसी सीट पर नोटा को सबसे ज्यादा वोट भी मिलते हैं, तब भी दूसरे नंबर का उम्मीदवार ही विजेता घोषित किया जाएगा।
लोकसभा चुनाव 2024 में नोटा का कुल प्रतिशत भले ही कम रहा हो, लेकिन बिहार और कुछ अन्य राज्यों में इसके इस्तेमाल में बढ़ोतरी देखी गई है। इससे यह साफ होता है कि कुछ राज्यों में मतदाता अभी भी अपने क्षेत्रीय उम्मीदवारों से संतुष्ट नहीं हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी यह डेटा भारत के लोकतांत्रिक तंत्र को और बेहतर समझने में मदद करता है।