The News Air- पंजाब में ग्रुप सी और ग्रुप डी के 35 हज़ार कर्मचारियों को पक्का करने के ऐलान को अमली जामा पहनाने में रुकावट आ सकती है। हाल ही में पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह ऐलान किया था। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के वकील हेमंत कुमार के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा 16 वर्ष पूर्व दिया एक फ़ैसला इस ऐलान के आड़े आ सकता है। 10 अप्रैल 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने वह फ़ैसला दिया था।
हेमंत कुमार के मुताबिक़, 8 वर्ष पूर्व हरियाणा की तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार द्वारा भी राज्य में कच्चे कर्मियों को पक्का करने के लिए नीतियां बनाई गई थीं। जून 2014 और जुलाई 2014 में कच्चे और अनुबंध आदि के आधार पर विभिन्न विभागों में तैनात ग्रुप बी, सी और डी वर्ग के सैकड़ों कर्मचारियों को सरकारी सेवा में पक्का करने हेतु यह नीतियां बनाई गई थीं।
इस पर 31 मई 2018 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की डबल बेंच ने योगेश त्यागी बनाम हरियाणा सरकार नामक केस के फ़ैसले में नियमितीकरण नीतियों के अंतर्गत पक्के किए गए सरकारी कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया था।
कच्चे कर्मियों को पिछले दरवाज़े से नियमित करना गैर-संवैधानिक
इस आधार पर उन नीतियों को रद्द कर दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2006 के एक संवैधानिक बेंच के निर्णय (सचिव, कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी) के मुताबिक़, कच्चे कर्मचारियों को इस प्रकार पिछले दरवाज़े से नियमित करना गैर-संवैधानिक है। देश में कोई भी सरकार ऐसे कच्चे कर्मचारियों का सरकारी सेवा में नियमितीकरण नहीं कर सकती। हालांकि हाईकोर्ट द्वारा हरियाणा राज्य के ऐसे कर्मचारियों को छह माह तक उनकी सरकारी सेवा में बने रहने की अनुमति दी गई थी। वहीं हरियाणा सरकार को निर्देश दिया गया था कि इन पदों पर नियमित भर्ती प्रारंभ करे।
हरियाणा के कर्मियों का केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित
उपरोक्त नीतियों के रद्द होने के फलस्वरूप सरकार द्वारा नौकरी से हटाए जा रहे कर्मचारियों को चयन प्रक्रिया में कुछ हद तक वरीयता प्रदान की जा सकती है। इसके बाद हाईकोर्ट के उपरोक्त निर्णय के फलस्वरूप हरियाणा के प्रभावित सरकारी कर्मचारियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी। यह मामला क़रीब 4 वर्ष से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हालांकि मौजूदा राज्य सरकार इस विषय पर हर पहलु से विचार-विमर्श कर रही है, ताकि हाईकोर्ट के फ़ैसले की भी अवमानना न हो एवं संबंधित कर्मचारियों से सहानुभूति भी रखी जा सके।