Budget 2023: यूनियन बजट (Union Budget 2023) आने में एक महीना से कम समय बचा है। इस साल इंडियन शेयर बाजार का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है। बाजार का मानना है कि ग्लोबल इकोनॉमी में मुश्किल के बावजूद इंडियन इकोनॉमी का प्रदर्शन आगे अच्छा रहेगा। इसलिए मार्केट को फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के अगले बजट से काफी उम्मीदें हैं। उसका मानना है कि इससे इस साल शेयर बाजार की दिशा तय होगी। सरकार का खर्च बढ़ाना प्राइवेट सेक्टर के लिए भी काफी मायने रखता है। इससे इकोनॉमी में डिमांड बढ़ेगी। स्टॉक मार्केट से जुड़े लोगों को अगले बजट से चार बड़ी उम्मीदें हैं। वे चाहते हैं कि सरकार इंफ्रास्ट्रकचर जैसे सेक्टर पर अपना खर्च बढ़ाए। सरकार रूरल डिमांड और कंजम्प्शन बढ़ाने के लिए कदम उठाए। फिस्कल डेफिसिट को कम करने के उपाय करे। अंतिम यह कि सरकार टैक्स सिस्टम में किसी तरह का बदलाव नहीं करे।
सरकार को पूंजीगत खर्च में वृद्धि जारी रखनी होगी
इंडियन मार्केट्स के लिए यह फाइनेंशियल ईयर (2022-23) उतार-चढ़ाव वाला रहा है। लेकिन दुनिया के दूसरे बाजारों से तुलना करने पर इसका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। इस फाइनेंशियल ईयर में Sensex और Nifty 50 ने करीब 3 फीसदी रिटर्न दिया है। इसके मुकाबले अमेरिकी शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक S&P 21 फीसदी गिर चुका है। हांगकांग से लेकर ब्राजील जैसे दूसरे उभरते बाजारों में भी बड़ी गिरावट आई है।
दुनियाभर में केंद्रीय बैंकों के इंटरेस्ट रेट्स बढ़ाने, हाई इनफ्लेशन और इकोनॉमिक ग्रोथ सुस्त पड़ने की आशंकाओं ने इनवेस्टर्स की फिक्र बढ़ाई है। ग्लोबल इकोनॉमी पर मंदी के मंडराते खतरे ने निराशा बढ़ाई है। लेकिन, इंडिया उम्मीद की एक किरण के रूप में नजर आया है। इसमें इकोनॉमिक ग्रोथ का सबसे बड़ा हाथ है।
जेफरीज इंडिया के एनालिस्ट्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “हमें नहीं लगता कि विकसित देशों में बढ़ते इंटरेस्ट रेट्स का असर इंडिया में ग्रोथ रेट पर पड़ेगा। कॉर्पोरेट सेक्टर लिवरेज साइक्लिकल लो पर है। कॉर्पोरेट स्पेंडिंग बढ़ने की उम्मीद है। इंटरेस्ट रेट बढ़ने की वजह से ज्यादा से ज्यादा इंडिया की ग्रोथ थोड़ी सुस्त पड़ सकती है।”
मार्केट का मानना है कि मौद्रिक नीति में सख्ती बढ़ने के बीच फिस्कल पॉलिसी बड़ी मददगार साबित होगी। कोरोना की महामारी का असर अब करीब खत्म हो जाने के बाद सरकार को फिर से इकोनॉमिक ग्रोथ 6-8 फीसदी तक लाने की कोशिश करनी चाहिए। प्राइवेट कैपेक्स साइकिल भी बढ़नी चाहिए। क्रेडिट ग्रोथ बढ़ी है। कैपेसिटी यूटिलाइजेशन तीन साल के सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंच गया है। ऐसे में सरकार को तेज इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए पूंजीगत खर्च बढ़ानी चाहिए।
सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए पूंजीगत खर्च के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये का टारगेट तय किया था। यह फाइनेंशियल ईयर 2021-22 के मुकाबले 35 फीसदी ज्यादा है। मार्केट से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकार को अगले वित्त वर्ष के लिए पूंजीगत खर्च के टारगेट को बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये करना चाहिए। बार्कलेज में चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट राहुल बजोरिया ने कहा, “पूंजीगत खर्च के मामले में हम जो कदम उठा रहे हैं, उसमें सबसे अच्छी बात यह है कि हर साल इसमें वृद्धि हो रही है। ज्यादा आवंटन के साथ ही कैपेसिटी बनाने पर हमारा फोकस बने रहना चाहिए।”
डिमांड बढ़ाने के उपाय करने होंगे
जब डिमांड को लेकर तस्वीर साफ नहीं होगी तब इंडियन कंपनियां फैक्ट्रीज बनाने और पूंजीगत खर्च बढ़ाने को लेकर उत्साहित नहीं होंगी। रूरल डिमांड अब भी कमजोर बनी हुई है। इस साल एफएमसीजी कंपनियों की वॉल्यूम ग्रोथ से इसके संकेत मिले हैं। इफ्लेशन बढ़ने का असर ग्रामीण इलाकों में लोगों की खर्च करने की क्षमता पर पड़ा है। ग्रामीण इलाकों में संकट का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार ने पिछले तीन साल में ग्रामीण रोजगार की अपनी सबसे बड़ी स्कीम पर बजट प्रस्ताव से ज्यादा खर्च किए हैं।
शेयर मार्केट सरकार से चाहता है कि वह कंजम्प्शन बढ़ाने के लिए अपनी कोशिशें जारी रखे। इसका एक तरीका डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर को बढ़ाना हो सकता है। इससे ग्रामीण इलाकों में लोगों के हाथ में ज्यादा पैसे उपलब्ध होंगे। दूसरा तरीका इनकम टैक्स की दरों में कमी हो सकती है। लेकिन, यह तरीका बहुत जटिल है।