The News Air- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। कृषि क़ानून लाए जाने के बाद एग्रीकल्चर सेक्टर में इसका क्या असर दिखा और क़ानून वापसी के बाद किसानों के जीवन में इससे क्या फ़र्क आएगा। कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब जानने के लिए हमने बात की एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देविंदर शर्मा से।
सवाल: इन क़ानूनों के आने के बाद एग्रीकल्चर सेक्टर में क्या असर दिखा?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कृषि क़ानूनों को होल्ड करने के लिए कहा था। इसलिए सरकार क़ानूनों को लागू नहीं कर पाई। यही वजह है कि कृषि क़ानूनों का ज़्यादा असर दिखाई नहीं दिया। हालांकि, कुछ प्रदेशों में मंडियां बंद होना शुरू हो गई थीं। इसमें मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।
सवाल: क़ानून वापसी से छोटे किसानों के जीवन में क्या फ़र्क आएगा?
जवाब: क़ानून को वापस लेने का मतलब पहले जहां थे वहीं वापस लौटना है। यानी, खेती का संकट बरक़रार है। अब सवाल है कि किसानों को संकट में कैसे निकाला जाए? इसका समाधान गारंटीड इनकम और मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) है। अगर MSP के लिए क़ानून बना दिया जाए और सभी 23 फ़सलों पर अनिवार्य हो जाए कि MSP से नीचे ख़रीद नहीं होगी तो किसान खेती के संकट से बाहर निकल आएंगे।
सवाल: क्या इसका देश की GDP पर कोई फ़र्क दिखेगा?
जवाब: देविंदर शर्मा ने कहा कि अगर MSP को क़ानूनी अधिकार बना दिया जाएगा तो ये दावा है कि देश की GDP 15% तक पहुंच जाएगी। इसे समझाने के लिए उन्होंने एक उदाहरण दिया। शर्मा ने कहा कि जब 7वां वेतन आयोग आया था तो बिजनेस इंडस्ट्री ने कहा था कि ये बूस्टर डोज़ की तरह है।
बूस्टर डोज़ का मतलब है लोगों के पास ज़्यादा पैसा आना और मार्केट में भी पैसा बढ़ना। ऐसे में डिमांड जनरेट होने से इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन बढ़ेगा। अगर 4% आबादी की सैलरी को हम बूस्टर डोज़ कहते हैं तो आप समझ सकते हैं कि 50% आबादी के पास ज़्यादा इनकम होने से कितनी ज़्यादा डिमांड जनरेट होगी। शर्मा ने कहा कि ये संकट अर्थशास्त्रियों का बनाया हुआ है जो क़िताबों से बाहर नहीं निकलना चाहते।
सवाल: क्या दूसरे देशों में इस तरह के रिफॉर्म सक्सेसफुल रहे हैं?
जवाब: मोदी सरकार जिन मार्केट रिफार्म्स को लाने की कोशिश कर रही थी वो पूरी दुनिया में फेल हो चुके हैं। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा सभी जगह किसानों की दुर्दशा है। अमेरिका में किसानों के ऊपर 425 अरब डॉलर का क़र्ज़ है। वहाँ शहरों की तुलना में गांवों में सुसाइड रेट 45% ज़्यादा है। वहाँ किसानों के पास ज़मीन की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी खेती संकट से गुज़र रही है।
किसानों की ज़िंदगी बदलने का था दावा
भारत में क़रीब 70% ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं, जिसमें 82% किसान छोटे और सीमांत हैं। इन क़ानूनों को लाते हुए सरकार का दावा था कि ये किसानों की ज़िंदगी बदल देंगे। ख़ासकर छोटे और मझोले किसानों की।
ये भी दावा किया गया था कि क़ानून ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ताक़त देंगे। हालांकि, किसानों का एक धड़ा शुरुआत से ही इन क़ानूनों का विरोध कर रहा था। इसमें MSP और APMC मंडी ऐसे दो पॉइंट हैं, जिन पर किसानों के जेहन में शंकाएं हैं। क़ानून वापसी के ऐलान के बाद अब जल्द ही आंदोलन के ख़त्म होने की उम्मीद है।
कृषि मंत्री बोले- हम किसानों को समझाने में असफल रहे
इन क़ानूनों की वापसी पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘इन सुधारों से PM ने कृषि में बदलाव लाने की कोशिश की थी, लेकिन कुछ किसानों ने इसका विरोध किया। जब हमने चर्चा का रास्ता अपनाया और समझाने की कोशिश की, तो हम इसमें सफल नहीं हो सके। इसलिए प्रकाश पर्व पर PM ने कृषि क़ानूनों को निरस्त करने का फ़ैसला किया। यह एक स्वागत योग्य क़दम है।’
ज़ीरो बजट फार्मिंग, MSP के लिए बनेगी कमेटी
उन्होंने यह भी कहा कि ज़ीरो बजट फार्मिंग, MSP, क्रॉप डायवर्सिफिकेशन से जुड़े मुद्दों पर एक कमेटी बनाई जाएगी। कमेटी में केंद्र, राज्य सरकारें, किसान, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री शामिल होंगे। यह MSP को प्रभावी और पारदर्शी बनाने और अन्य मुद्दों पर रिपोर्ट पेश करेगा।
तीनों कृषि क़ानून, जिनके ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे थे किसान
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
इस क़ानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है, जहां किसानों और कारोबारियों को मंडी के बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी। क़ानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का ख़र्च कम करने की बात भी इस क़ानून में है। - कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक 2020
इस क़ानून में कृषि क़रारों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है। इसके साथ किसानों को क्वालिटी वाले बीज की आपूर्ति करना, फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, क़र्ज़ की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा देने की बात इस क़ानून में है। - आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इस क़ानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज़ और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। सरकार के मुताबिक़, इससे किसानों को उनकी फ़सल की सही क़ीमत मिल सकेगी, क्योंकि बाज़ार में कॉम्पिटिशन बढ़ेगा।