नई दिल्ली (The News Air): यदि केंद्र दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद पर भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी. एन. कृपाल के पुत्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (Saurabh Kripal) की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम की दोबारा भेजी गयी सिफारिश मंजूर कर लेता है, तो वह देश की किसी संवैधानिक अदालत के पहले समलैंगिक न्यायाधीश हो सकते हैं। पचास-वर्षीय कृपाल अपनी समलैंगिक स्थिति के बारे में काफी खुले विचार के हैं और वह उस कानूनी टीम का हिस्सा थे, जिसने एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समूह के कुछ याचिकाकर्ताओं का शीर्ष अदालत में प्रतिनिधित्व किया था।
शीर्ष अदालत ने दो समलैंगिक वयस्कों के बीच आपसी सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। कृपाल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ली है और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद भारत लौटने से पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ‘मास्टर ऑफ लॉ (एलएलएम)’ किया। वह दो दशक से अधिक समय से उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे हैं।
कृपाल ने एक पुस्तक ‘‘सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट: हाउ द लॉ इज अपहोल्डिंग द डिग्निटी ऑफ द इंडियन सिटीजन” का भी संपादन किया है, जिसमें यौन, कामुकता और लिंग के विभिन्न पहलुओं पर कानून के प्रभाव की व्याख्या और पड़ताल करने का प्रयास किया गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उन्हें पदोन्नत करने के लिए 2017 में सिफारिश की गई थी। उच्च न्यायालय की कॉलेजियम की अध्यक्षता कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने की थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के सभी 31 न्यायाधीशों के वोट प्राप्त करने के बाद उन्हें मार्च 2021 में वरिष्ठ अधिवक्ता पद से सुशोभित किया गया था।
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर जारी एक बयान में कहा गया है, ‘‘इस पृष्ठभूमि में, कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल की नियुक्ति के लिए 11 नवंबर, 2021 की अपनी सिफारिश को दोहराया है, जिस पर तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता है।” इसमें कहा गया, ‘‘13 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा सर्वसम्मति से की गई सिफारिश और 11 नवंबर, 2021 को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुमोदित इस सिफारिश को पुनर्विचार के लिए 25 नवंबर, 2022 को हमारे पास वापस भेज दिया गया।”
बयान में कहा गया कि सौरभ कृपाल के पास ‘‘क्षमता, सत्यनिष्ठा और मेधा” है और उनकी नियुक्ति से उच्च न्यायालय की पीठ में विविधता आएगी। बयान में कहा गया, ‘‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के 11 अप्रैल, 2019 और 18 मार्च, 2021 के पत्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस अदालत के कॉलेजियम द्वारा 11 नवंबर, 2021 को सौरभ कृपाल के नाम को लेकर की गई सिफारिश पर दो आपत्तियां हैं : पहला कि सौरभ कृपाल का साथी स्विट्जरलैंड का नागरिक है, और दूसरा यह कि वह घनिष्ठ संबंध में हैं और अपने यौन रुझान को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं।”
आपत्तियों को लेकर कॉलेजियम ने कहा कि रॉ के पत्रों में कृपाल के साथी के व्यक्तिगत आचरण या व्यवहार के संबंध में ऐसी किसी भी आशंका की ओर ध्यान आकर्षित नहीं किया गया है, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है। दूसरी आपत्ति के बारे में कॉलेजियम ने कहा कि यह ध्यान देने की जरूरत है कि उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति यौन रुझान के आधार पर अपनी गरिमा और व्यक्तित्व बनाए रखने का हकदार है।