नई दिल्ली (The News Air): वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल के बजट में ऐलान किया है कि अगले तीन साल तक 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती करने में मदद दी जाएगी। इसके लिए 10 हजार बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर खोले जाने हैं। पारंपरिक किसानों के लिए यह जानना जरूरी है कि प्राकृतिक खेती क्या है? इससे उन्हें क्या फायदा होगा और सरकार इस पर इतना जोर क्यों दे रही है? वास्तव में जिस खेती में किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता है उसे प्राकृतिक खेती कहते हैं। जैविक खेती के लिए जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों के साथ अन्य प्राकृतिक चीजों का प्रयोग किया जाता है।
प्राकृतिक खेती में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है। प्रकृति में आसानी से पाए जाने वाले जीवाणुओं और अवयवों का उपयोग करके इसकी खेती की जाती है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है। साथ ही प्राकृतिक खेती में किसानों का खर्च भी कम आता है। इसमें केवल प्राकृतिक खाद, पौधों और पत्तों की खाद, गाय के गोबर और जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
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ये राज्य कर रहे हैं प्राकृतिक खेती
मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण में सुधार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को खत्म करने या कम करने के लाभों को प्राप्त करने के लिए रासायनिक मुक्त खेती यानी प्राकृतिक खेती की शुरुआत की गई है। पूरी दुनिया में, जैविक खेती को पृथ्वी को बचाने वाली कृषि पद्धति के रूप में माना जाता है। भारत में इस कृषि प्रणाली को अपनाने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और अब उत्तर प्रदेश शामिल हैं। इसे केंद्र प्रायोजित योजना पारंपरिक कृषि विकास योजना के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि प्रणाली के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
ये है प्राकृतिक खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती के प्रथम वर्ष में उपज में कोई कमी नहीं होती है। वहीं, केमिकल और फर्टिलाइजर पर होने वाला हजारों रुपये का खर्च भी बच जाता है। इतना ही नहीं, रसायनों से मुक्त होने के कारण प्राकृतिक खेती से उत्पादित सब्जियां बाजार में तेजी से और ऊंचे दामों पर बिक जाती हैं। जिससे किसानों को कम लागत में अधिक आय प्राप्त होती है। फसलों पर रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग का लोगों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन प्रभाव देखा गया है।