जम्मू कश्मीर बीते 5 साल में काफी बदल चुका है

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Jammu Kashmir Elections: जम्मू कश्मीर बीते 5 साल में काफी बदल चुका है. अब ये राज्य नहीं, केंद्र शासित प्रदेश है. राज्य में 10 साल पहले विधानसभा चुनाव हुए थे. तब इसके पास दो झंडे थे. एक अपना और एक देश का. इसके पास अनुच्छेद 370 था, जो विशेष अधिकार देता था. पर एक कसक हर देशवासी को थी. वो ये कि एक देश में किसी एक राज्य का अपना अलग झंडा और विधान कैसे. खैर अब जम्मू-कश्मीर का ये अलग विधान खत्म हो चुका है. अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित है. ये बदलाव 5 अगस्त 2019 को हुआ था, जब अनुच्छेद-370 और 35-ए हटाया गया.

अब यहां 3 चरण में चुनाव होंगे, जो कई वजहों से दिलचस्प हैं. कुछ नेताओं के लिए कश्मकश है. इसकी वजह उनके कसमें-वादे हैं. जो अगस्त 2019 के आगे-पीछे किए गए थे. इन नेताओं में पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला हैं. उमर की कसम का तोड़ तो उनके पिता और पार्टी मुखिया फारूक अब्दुल्ला ने निकाल लिया है. मगर, पीडीपी मुखिया कश्मकश में हैं. आइए जानते हैं किस नेता के क्या वचन-वादे हैं, जिन्होंने उनको मझधार में डाल रखा है. उनका हाल ‘न खाया जा रहा, न उगला जा रहा…’ जैसा क्यूं है.

कसम तोड़कर जनता की अदालत में कैसे जाएंगे!

अनुच्छेद-370 हटाया गया तो कई नेताओं को नजरबंद किया गया. इसमें फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी थीं. रिहाई के बाद उमर और महबूबा मुफ्ती दोनों ने कसम खाई कि तब तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, जब तक जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य नहीं बनाया जाएगा.

ये कसमें किसी बंद कमरे में नहीं बल्कि जनता के बीच खाई गई थीं. मतलब जनता इन नेताओं के शब्दों की साक्षी थी. अब इसी जनता की अदालत में उतरने का समय आ चुका है. चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है. इस ऐलान से पहले उमर अब्दुल्ला के पिता जो कि पार्टी के मुखिया हैं, उन्होंने बीते दिनों कहा था कि चुनाव लड़ूंगा.

फारूक अब्दुल्ला का ये ऐलान उमर की कसम का तोड़ भी है, क्योंकि पार्टी मुखिया चुनाव तो लड़ ही रहे हैं. इससे ये भी संकेत जाएगा कि उमर अपने वादे के पक्के हैं. साथ ही फारूक अब्दुल्ला के चुनाव लड़ने से पार्टी कार्यकर्ताओं और उनके वोट बैंक को खास कमी नहीं खलेगी. बल्कि पार्टी तो चिल्ला-चिल्लाकर उमर के वादे के लिए भी वोट मांग सकती है.

महबूबा मुफ्ती वादा तोड़ती हैं तो क्या नुकसान

दूसरी तरफ, महबूबा मुफ्ती के सामने स्थिति कश्मकश वाली है. वो वादा तोड़कर चुनाव लड़ती हैं तो उमर चुनावी सभाओं में भारी पड़ सकते हैं. वादे पर कायम रहती हैं तो पार्टी में उस जोश की कमी रहेगी जो पार्टी के मुखिया के चुनाव लड़ने पर होती है. अब महबूबा भी फारूक की तरह दांव फेंक दें तो कोई हैरानी नहीं. वो अपनी बेटी इल्तिजा को चुनाव लड़ा सकती हैं. बीते कुछ समय से इल्तिजा काफी सक्रिय भी हैं. एलजी प्रशासन की कार्यशैली को लेकर अक्सर सवाल उठाती रहती हैं.

हालांकि, अभी तक तो पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती की सियासी स्थिति पर ‘न खाया जा रहा न उगला जा रहा’ वाली कहावत सटीक बैठ रही है. घाटी की सियासत के जानकारों का मानना है कि महबूबा इस कश्मकश वाली स्थिति से जल्द बाहर आएंगी. अगर वो ज्यादा देर करती हैं तो उन्हें ही नुकसान होगा. इसका उन्हें भी भान है. कसम के चक्रव्यूह से निकलने पर मंथन चल रहा है. जल्द ही वो निर्णय लेंगी.

जम्मू-कश्मीर का चुनावी शेड्यूल

जम्मू-कश्मीर की 90 सीटों पर तीन चरण में चुनाव होंगे. इसमें 18 सितंबर को पहले, 25 सितंबर को दूसरे और 1 अक्टूबर को तीसरे चरण की वोटिंग होगी. 20 अगस्त को अधिसूचना जारी हो जाएगी. 27 अगस्त तक उम्मीदवार अपना नामांकन करा सकेंगे. नाम वापसी की आखिरी तारीख 30 अगस्त होगी. इसके बाद चरण के हिसाब से वोटिंग फिर 4 अक्टूबर को नतीजे आएंगे. बहुमत का आंकड़ा 46 है.

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