दि न्यूज एयर, 4 जुलाई (The News Air)
देश की आधी आबादी राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान की कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। महिलाएं आज समय के साथ अपने आपको भी बदल रही हैं और विकास की अहम कड़ी साबित हो रही हैं। यही वजह है कि आज ये किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। फिर चाहे वह दूर-देहात में बसने वाली ग्रामीण महिलाएं ही क्यों न हों। जी हां, इसका बेहतरीन उदाहरण पेश कर रही हैं झारखंड में तोरपा प्रखंड की महिलाएं…
20 साल पहले गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की एक पहल –दरअसल, यहां स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। झारखंड में तोरपा के गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जोड़कर वर्ष 2002 में ब्रायलर मुर्गी पालन का कार्य स्वयं सेवी संस्था ‘प्रदान’ ने प्रारंभ किया था। 20 वर्षों के बाद ऐसी कई महिलाएं हैं, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनी हैं और मुर्गीपालन जैसी आजीविका की गतिविधि से जुड़कर खुद का एवं अपने परिवार का भरण पोषण कर रहीं हैं। आदिवासी कल्याण विभाग के मार्गदर्शन में इन कार्यों की शुरुआत झारखंड में हुई थी, जिसमें स्वयं सेवी संस्था द्वारा आजीविका के कई प्रोटोटाइप विकसित किए गए।
महिलाओं को दिया गया मुर्गी पालन का प्रशिक्षण –इनमें ब्रायलर मुर्गी पालन भी एक था। मुर्गी पालन की तकनीकी जानकारी, प्रबंधन, बाजार व्यवस्था एवं शेड की देखभाल जैसी कई बारीकियों को सहज प्रशिक्षण एवं मीटिंग के माध्यम से महिला सदस्यों को सिखाया गया। स्वावलंबी सहकारी समिति के रूप में पंजीकृत होने के बाद महिलाओं की यह सोसाइटी पिछले 20 वर्षों से तोरपा प्रखंड में कार्यरत हैं। तोरपा के बारकुली, झटनीटोली, जागु, जारी, कसमार, कुदरी, ओकड़ा डोड़मा, गुड़िया, कोरला, चंद्रपुर बोतलो सहित प्रखंड के कई गांवों में स्वयं सहायता समूह की उत्पादक सदस्यों के स्वाबलंबन के लिए कार्य किये जा रहे हैं।
आज 15 से अधिक गांवों में 20 वर्षों से हो रहा है कुक्कुट पालन-पिछले 20 वर्षों में बर्ड फ्लू, महामारी, बाजार की समस्या और कोरोना महामारी आदि से जूझते हुए यह सहकारी समिति आज भी अपने सदस्यों की उन्नति के लिए संघर्षरत है। तोरपा ग्रामीण पोल्ट्री सहकारी समिति की अध्यक्ष फुलमनी भेंगरा कहती हैं कि यह कोऑपरेटिव महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का प्रतीक है। को-ऑपरेटिव का संचालन महिलाओं की बोर्ड सदस्यों द्वारा किया जाता है। महिलाओं के कार्यों में सहयोग के लिए वेटनरी डॉक्टर एवं प्रोडक्शन मैनेजर रहते हैं, जो बेहतर उत्पादन एवं बाजार व्यवस्था में मदद करते हैं।
गांव की दीदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृतसंकल्पित-को-ऑपरेटिव की मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी प्रीति श्रीवास्तव का कहना है कि गांव की दीदियों को आत्मनिर्भर बनाना एवं उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए हम लोग कृत संकल्पित हैं। राज्य स्तर पर सहकारी समितियों का फेडरेशन बना है, जो बाजार व्यवस्थाएं चूजा उत्पादन दाना उत्पादन एवं इसकी खरीद में सहयोग प्रदान करता है। समिति के प्रोडक्शन मैनेजर अरूप रॉय कहते हैं कि झारखण्ड में ब्रायलर मुर्गी का स्वयं ब्रांड के नाम से तैयार मुर्गी का विपणन होता है। तोरपा से उत्पादित मुर्गी की स्थानीय बाजारों के अलावा सिमडेगा, पोकला, रांची, राउरकेला आदि जगहों पर बिक्री होती है। प्रदान संस्था उत्पादक सदस्यों एवं इनके समूहों को आवश्यक प्रशिक्षण देने का कार्य करती है, ताकि ये सतत रूप से मुर्गी उत्पादन का काम कर सकें।
मुर्गी उत्पादन से ग्रामीण महिलाएं लाभ कर रही अर्जित-वर्तमान में मुर्गी उत्पादन से करीब 350 महिलाएं सक्रिय उत्पादक के रूप में लाभार्जन कर रही हैं। जागु गांव की उत्पादक एवं समिति की उपाध्यक्ष सोनी तिर्की बताती हैं कि कोरोना के कारण मांग एवं बाजार प्रभावित होने से सक्रिय सदस्यों की संख्या में कमी आई है। समिति को नुकसान का सामना भी करना पड़ा है, लेकिन तोरपा ग्रामीण पोल्ट्री सहकारी समिति पुनः अपने लक्ष्य में लगी है और सदस्यों और ग्रामीणों को कोरोना के संक्रमण से बचने के उपाय के साथ-साथ उत्पादन को भी आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है। मुर्गी पालन के कार्य ने ग्रामीण युवकों को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है। आज कई ऐसे नौजवान हैं, जो सुपरवाइजर, पैरा वेटरनरी के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं और आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। कुदरी के बिपिन तिग्गा व मेरी तिग्गा जो मुर्गी पालन के कार्य से आत्मनिर्भरता और सफलता की ओर अग्रसर हैं, पूरे क्षेत्र के लिए मिसाल हैं।