पटना, 19 अगस्त (The News Air) लोकसभा चुनाव में महज सात से आठ महीने बचे हैं और सत्तारूढ़ भाजपा विपक्षी दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित करके उन्हें कमजोर करना चाहती है।
चारा घोटाले में राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव की जमानत रद्द करने के लिए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस मामले की सुनवाई इस महीने के अंत में होनी है। ऐसा लगता है कि मुख्य विचार यह है कि लालू प्रसाद को सलाखों के पीछे डाल दिया जाए ताकि आम लोगों से उनका सीधा संपर्क खत्म हो जाए क्योंकि वह संभवत: बिहार में भीड़ खींचने वाले नंबर एक नेता हैं।
भाजपा की रणनीति का मुकाबला करने के लिए, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेता भी अडाणी मुद्दे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के घोटाले से संबंधित हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मुद्दों को उठाकर इसी तरह का दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
अब यह बिहार में एनडीए और ‘इंडिया’ के बीच धारणा का खेल है।
पिछले कुछ महीनों में भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों ने बिहार के संदर्भ में गलतियां की हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि दरभंगा एम्स का निर्माण केंद्र ने कराया है। उनका बयान गलत था क्योंकि कोई एम्स नहीं बना है। इस मुद्दे पर मोदी और भाजपा नेताओं को अजीब स्थिति का सामना करना पड़ा। दरअसल यह केंद्र सरकार के अधिकारियों की विफलता थी जिन्होंने पीएम को सही जानकारी नहीं दी।
तेजस्वी यादव, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे ‘इंडिया’ के नेताओं ने उनके बयान के लिए पीएम की आलोचना की।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 22 सितंबर 2022 को पूर्णिया रैली के दौरान दावा किया कि वहां हवाई अड्डे का 95 प्रतिशत निर्माण केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय की मदद से किया गया था। यह बात भी गलत निकली क्योंकि सिर्फ जमीन चिह्नित की गई है, कोई निर्माण नहीं हुआ है।
नवादा रैली के दौरान अमित शाह ने हिसुआ में थर्मल पावर प्लांट खोलने का भी दावा किया। वह दावा भी सही नहीं था क्योंकि नवादा में कोई थर्मल पावर प्लांट नहीं है।
भाजपा लोकसभा चुनाव में जा रही है लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व अपने राज्य के नेताओं से जमीनी हकीकत के बारे में नहीं पूछ रहा है। ऐसा लगता है कि यह एक संवादहीनता है जिसके परिणामस्वरूप भगवा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा तथ्यात्मक गलतियाँ हो रही हैं।
ऐसी गलतियों से लोगों में गलत संकेत जा रहे हैं।
भाजपा बिहार इकाई के एक पदाधिकारी के मुताबिक, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने बिहार के नेताओं को राज्य में अपराध के मामलों को उठाने का निर्देश दिया है। विचार यह है कि बिहार के अपराध मामलों की तुलना शासन के योगी मॉडल से की जाए और जनता का समर्थन मांगा जाए।
‘इंडिया’ की छत्रछाया में विपक्षी दलों के नेता 2020 में विधानसभा चुनावों के दौरान किए गए वादों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव ‘करो या मरो’ की स्थिति है। वे समझते हैं कि अगर वे 2024 की लड़ाई हार गए तो राज्यों में भी ख़त्म हो जायेंगे।
उन्होंने हाल ही में देखा जब दिल्ली सेवा संशोधन विधेयक संसद में पारित हुआ जिसके माध्यम से केंद्र वहां चुनाव हारने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी पर शासन कर रहा है। विपक्षी नेताओं का मानना है कि 2024 के बाद गैर-भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ भी ऐसी कार्रवाई की जाएगी।
विपक्षी नेता पहले से ही कह रहे हैं कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आएगी तो संविधान बदल देगी।
इसी को देखते हुए बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने पर फोकस कर रही है।
नीतीश कुमार ने 15 अगस्त को अपने भाषण के दौरान दावा किया था कि उनकी सरकार ने 55,000 सरकारी नौकरियां दी हैं और विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 3.5 लाख रोजगार के अवसर पैदा किये हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही 1.70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की जायेगी। बिहार में शिक्षक भर्ती के लिए परीक्षा 24 से 27 अगस्त तक होगी।
बिहार में महागठबंधन के नेता एकजुट रहना चाह रहे हैं। जद-यू के लिए, नीतीश कुमार, ललन सिंह, विजय कुमार चौधरी, अशोक चौधरी, संजय कुमार झा पार्टी के थिंक टैंक हैं और वे लोकसभा चुनाव से पहले रणनीति और नीतियां बना रहे हैं। नीतीश कुमार ने दावा किया है कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है लेकिन लोग जानते हैं कि वह कितने सख्त सौदेबाज हैं।
राजद के लिए सबकुछ लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द घूमता है. उनके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द चारा घोटाले और आईआरसीटीसी घोटाले में उनके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले हैं। लालू प्रसाद को चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया है जबकि तेजस्वी यादव आईआरसीटीसी जमीन के बदले नौकरी मामले में फंसे हुए हैं।
अदालती मामलों के बावजूद, पिता और पुत्र जानते हैं कि वे बिहार में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत हैं। उन्होंने इसे 2015 में साबित किया है जब उन्होंने विधानसभा चुनाव में 80 सीटें जीतीं और 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 75 सीटें जीतीं। बिहार में उनका मुस्लिम-यादव समीकरण बरकरार है और भाजपा के लिए उस समीकरण को बिगाड़ना बेहद कठिन है।
भाजपा अतीत में उन पार्टियों के साथ खेल रही थी जो महागठबंधन के लिए वोट कटवा बन गईं। इस बार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने इस अंतर को भर दिया है क्योंकि वे चिराग या औवेसी कारक के माध्यम से वोटों के नुकसान को कम करने के लिए एक सीट एक उम्मीदवार फॉर्मूला लेकर आए हैं।