Bateshwar Temple Complex: मध्य प्रदेश के ग्वालियर से बातेश्वर (Bateshwar) सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है। लेकिन, यह मंदिर परिसर दशकों से गुमनामी के अंधेरे में रहा है। यहां स्थित करीब 200 मंदिर इस सदी की शुरुआत तक सिर्फ मलबे का ढेर थे। Archaeological Survey of India (ASI) को भी इनकी कोई सुध नहीं थी। जबकि वह 1924 में ही इन्हें संरक्षित स्मारक घोषित कर चुका था।
निर्भय सिंह गुज्जर जैसे डकैतों का गढ़ रहा बातेश्वर
दरअसल, बातेश्वर कुख्यात चंबल घाटी का हिस्सा है। यह इलाका निर्भय सिंह गुज्जर जैसे डकैतों का गढ़ रहा। इस वजह से लोग इस इलाके में आने से कतराते थे। गुर्जर और प्रतिहार वंश के राजाओं के बनाए गए ये मंदिर पिछले कई दशकों से लोगों की नजरों से दूर रहे। इन्हें 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। ये खजुराहों से पहले बनाए गए थे।
इस सदी की शुरुआत से बदलने लगी सूरत
इस सदी की शुरुआत में एएसआई के आर्कियोलॉजिस्ट के के मुहम्मद की इस इलाके में तैनाती के बाद बातेश्वर के मंदिरों के दिन बदलने शुरू हुए। वह बताते हैं कि डकैतों के डर से उनकी टीम यहां आने से कतराती थी। उन्होंने महसूस किया कि अगर उन्हें इन मंदिरों की सूरत बदलनी है तो पहले डकैतों का दिल जीतना होगा। फिर, उन्होंने डकैतों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश शुरू कर दी।
मुश्किल था डकैतों को अपनी बात समझाना
गुज्जर उनकी बात समझ गए। वे कुछ समय के लिए अपना बेस दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए तैयार हो गए। जब एएसआई की टीम यहां पहुंची तो मंदिर मलबे में तब्दील हो रहे थे। कई मंदिरों में बड़े पेड़ उग आए थे और पूरे मंदिर को ध्वस्त कर चुके थे। मुहम्मद का कहना है कि उन्होंने आज तक किसी स्मारक को ऐसी हालत में नहीं देखा था। इसका आकर्षण और गौरव लौटाना बहुत चैलेंजिंग था।
निर्भय गुज्जर ने दिया साथ
आखिरकार 2005 में इसे पुनर्स्थापित करने का काम शुरू हुआ। मुहम्मद बताते हैं कि गुज्जर डैकतों के लोग वेश बदलकर मंदिर के काम की प्रगति देखने के लिए यहां आते थे। वे खुशकर यहां से लौटते थे। इस बीच एक-एक प्रतिमा की पहचान करना और उसे सही जगह स्थापित करना बहुत मुश्किल था।
मुहम्मद बताते हैं कि एक शाम वह काम का सर्वे कर रहे थे। तब उन्हें मैले-कुचैले कपड़े पहने एक व्यक्ति दिखा जो मंदिर के बाहर बैठ बीड़ी पी रहा था। वह मंदिर के पास बीड़ी पीते देख उस व्यक्ति को डांटने लगे। तभी कुछ दूरी से भागते हुए उनकी टीम का एक सदस्य आया और उन्हें चुप रहने का इशारा किया। मुहम्मद तुरंत माजरा समझ गए और गुज्जर के पैर पर गिर पड़े। दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई। उन्होंने गुज्जर को वहां चल रहे काम की प्रगति के बारे में बताया।
मदद के लिए सिर्फ एक मांग रखी
सिनेमाई अंदाज में गुज्जर ने मुहम्मद से पूछा कि उन्हें किस चीज की जरूरत है। कुछ मांगने की बजाय मुहम्मद ने गुज्जर को गुज्जर वंश के इतिहास के बारे में बताया। यह भी समझाने की कोशिश की की वह (निर्भय गुज्जर) गुज्जर वंश का ही वंशज है। गुज्जर इससे प्रभावित हुआ और इस इलाके से हमेशा के लिए दूर चले जाने के लिए मुहम्मद के सामने एक शर्त रखी। उसने कहा कि उसे यहां के हनुमान मंदिर में पूजा की इजाजत दी जाए। दरअसल गुज्जर का गैंग हर डकैती से पहले हनुमान मंदिर में पूजा किया करता था। मुहम्मद ने वादा किया कि वे शाम 6 बजे के बाद मंदिर परिसर से दूर चले जाएंगे।
चंदेरी से राजमिस्त्री बुलाए गए
मुहम्मद ने बातेश्वर के लोकल लोगों के साथ मिलकर पुनर्निर्माण पूरा किया। इसके लिए चंदेरी के कई राजमिस्त्री बुलाए गए थे। कई साल तक यह काम चलता रहा। इस बीच गुज्जर और दूसरे डकैत कानून की गिरफ्त में आ गए। हालांकि, उनकी जगह लोकल माफिआयों ने ले ली। वे बातेश्वर के आसपास खनन का काम करने लगे। इससे मंदिर के पुनर्निर्माण कार्य को नुकसान पहुचंने लगा।
संघ ने की मदद
राज्य और केंद्र सरकार से कई बार शिकायतें करने का फायदा नहीं हुआ। आखिरकर मुहम्मद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से मदद मांगी। हालांकि, एक सरकारी नौकर के रूप में उन्हें किसी बाहरी संस्था या संगठन की मदद लेने की इजाजत नहीं थी। लेकिन, उन्होंने किसी तरह अपना मकसद पूरा कर लिया।
फिर से जीवित हो चुके हैं मंदिर
आज बातेश्वर के 80 मंदिर अपने पुराने गौरव को हासिल कर चुके हैं। मंदिर परिसर को देखने से पता चलता है कि अब भी पुनर्स्थापना का काम चल रहा है। अगर एक मुस्लिम अधिकारी और एक डकैत ने कोशिश नहीं की होती तो एक हजार से ज्यादा पुराने ये मंदिर फिर सी जीवित नहीं हो पाते।