राज एक स्टार्टअप में काम करते हैं। कंपनी ने उन्हें ईसॉप्स (Esops) दिया है। इसके तहत 4 साल बाद राज स्टॉक ऑप्शन (Stock Options) के हकदार हो जाएंगे। इसका मतलब है कि वह कंपनी की तरफ से फिक्स किए गए प्राइस पर शेयर खरीद सकेंगे। दरअसल, कंपनियां एंप्लॉयीज को एनुअल पैकेज के अलावा इसलिए ईसॉप्स देती हैं ताकि उन्हें कंपनी में बनाया रखा जा सके।
एंप्लॉयी का रोल बढ़ता है तो कंपनी उसे एडिशनल शेयर ग्रांट करती है। कई एंपलॉयीज कंपनी छोड़ देते हैं, जिससे वे स्टॉक ऑप्शन प्लान, रिवार्ड और रेस्ट्रिक्टेड स्टॉक यूनिट्स का फायदा नहीं उठा पाते हैं।
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अब हम राज के मामले पर आते हैं। अगर राज नौकरी छोड़ते हैं तो उनका ईसॉप्स इस पर निर्भर करेगा कि उन्होंने कंपनी में कितना समय काम किया है और उनका ईसॉप्स किस तरह का है। अगर राज चार साल काम करने के बाद कंपनी छोड़ते हैं तब तक उनका स्टॉक ऑप्शंस वेस्टेड हो चुका होगा। वह स्टॉक ऑप्शंस को एक्सरसाइज कर ईसॉप्स का फायदा उठा सकते हैं।
आम तौर पर वेस्टेड स्टॉक्स दो तरह के होते हैं-नॉन-क्वालिफायड स्टॉक ऑप्शंस (NQSOs) और इनसेंटिव स्टॉक ऑप्शंस (ISOs)। अगर राज के पास एनक्यूएसओएस है तो वह कंपनी की पॉलिसी के मुताबिक स्टॉक ऑप्शंस को एक्सरसाइज कर सकते हैं। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि ईसॉप्स का फायदा तभी है जब इंप्लॉयी को उसे बेचने का भी मौका मिले।
ईसॉप्स में मिले शेयरों को मार्केट प्राइस पर बेचा जा सकता है। शेयर बेचने का फैसला एंप्लॉयी को लेना होगा। कंपनी शेयरों को मार्केट प्राइस पर वापस इंप्लॉयी से खरीद सकती है। ज्यादातर कंपनियों के पास फेयर मार्केट वैल्यू होती है। यह अंतिम फंडिंग राउंड या किसी दूसरी वैल्यूएशन से लिंक होता है। कई कंपनियां एंपलॉयी के कंपनी छोड़ने के 30 से 90 दिन के अंदर शेयर खरीद लेती हैं।
अब हम दूसरी स्थिति पर विचार करते हैं। मान लीजिए कि राज ने कंपनी में चार साल पूरे नहीं किए हैं। उनका ऑप्शन अभी वेस्टेड नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में वह अनवेस्टेड पोर्शन गंवा देंगे। अगर वेस्टिंग शिड्यूल में हर साल 25 फीसदी वेस्टिंग की शर्त है और राज 2 साल 5 महीने के बाद नौकरी छोड़ते हैं तो वह 50 फीसदी स्टॉक ग्रांट गंवा देंगे।