Tooth Regeneration : एक वयस्क दांत का टूटना या गिरना हमेशा से एक स्थायी क्षति मानी जाती रही है। इसके बाद हमारे पास नकली दांत (dentures) या डेंटल इम्प्लांट्स जैसे कृत्रिम समाधानों के अलावा कोई चारा नहीं बचता 1। लेकिन क्या हो अगर विज्ञान इस सच्चाई को बदल दे? क्या हो अगर आपका शरीर खुद ही एक नया, असली दांत उगा सके? यह अब केवल विज्ञान-कथा का विषय नहीं रहा। जापान में, यह एक हकीकत बनने की दहलीज पर है।
ओसाका के मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट किटानो हॉस्पिटल में, डॉ. कात्सु ताकाहाशी और उनकी टीम ने दशकों के शोध के बाद एक ऐसी क्रांतिकारी दवा विकसित की है, जो शरीर की दांत उगाने की सोई हुई क्षमता को फिर से जगा सकती है 3। यह दवा एक खास प्रोटीन, USAG-1 को निशाना बनाती है, जो प्राकृतिक रूप से दांतों के विकास को रोकता है 4। जानवरों पर सफल परीक्षणों के बाद, इस अभूतपूर्व दवा का मानव क्लिनिकल परीक्षण शुरू हो चुका है। यदि यह सफल रहा, तो 2030 तक यह उपचार आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकता है, जो दंत चिकित्सा के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत करेगा 3।
एक दंत चिकित्सक का सपना: दशकों की खोज और एक ‘यूरेका’ क्षण : हर महान वैज्ञानिक खोज के पीछे एक लंबा और अथक संघर्ष छिपा होता है। दांत उगाने वाली इस दवा की कहानी भी डॉ. कात्सु ताकाहाशी के तीन दशक लंबे जुनून और दृढ़ संकल्प का परिणाम है। डॉ. ताकाहाशी, जो वर्तमान में किटानो हॉस्पिटल में दंत चिकित्सा और ओरल सर्जरी विभाग के प्रमुख हैं, ने इस सपने को अपनी आंखों में तब से संजोया था जब वे एक स्नातक छात्र थे। उनका यह विश्वास अटूट था कि एक दिन वे इसे संभव कर दिखाएंगे 3।
उनकी यह यात्रा 1991 में क्योटो विश्वविद्यालय में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करने के साथ शुरू हुई 4। उस समय, वैज्ञानिक उन जीनों की पहचान करने की शुरुआत कर रहे थे, जिन्हें हटाने पर चूहों में दांतों की संख्या कम हो जाती थी। यहीं डॉ. ताकाहाशी को वह ‘यूरेका’ क्षण मिला, जब उन्हें यह एहसास हुआ कि यदि जीनों में हेरफेर करके दांतों की संख्या घटाई जा सकती है, तो शायद बढ़ाई भी जा सकती है 3। यह विचार उनके जीवन का मिशन बन गया।
इस खोज में सबसे बड़ा मील का पत्थर 2007 में आया, जब उनकी शोध टीम ने एक ऐसे चूहे की खोज की, जिसके मुंह में सामान्य से अधिक दांत थे, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘सुपरन्यूमररी’ दांत कहते हैं 8। गहन जांच से पता चला कि इस चूहे में USAG-1 नामक एक जीन की कमी थी। यह एक निर्णायक खोज थी, जिसने सीधे तौर पर इस जीन को दांतों के विकास को रोकने वाली प्रक्रिया से जोड़ दिया 9। यह वह कुंजी थी जिसने दांतों को फिर से उगाने के रहस्य का ताला खोल दिया।
केवल अकादमिक शोध से यह दवा मरीजों तक नहीं पहुंच सकती थी। इस विज्ञान को प्रयोगशाला से क्लिनिक तक लाने के लिए, मई 2020 में क्योटो विश्वविद्यालय से जुड़ी एक स्टार्टअप कंपनी ‘टोरेगेम बायोफार्मा’ (Toregem BioPharma) की स्थापना की गई 5। इस कंपनी का नेतृत्व सीईओ डॉ. होनोका किसो कर रही हैं, जो खुद हड्डी संबंधी एक ऐसी बीमारी से पीड़ित थीं जिसने उनके दांतों को प्रभावित किया था 6। इस कंपनी का मिशन स्पष्ट और प्रेरणादायक है: “एक ऐसे समाज का निर्माण करना जहां लोगों को अपने दांत खोने का डर न हो” 8। यह कदम इस बात का प्रमाण था कि यह शोध अब केवल एक सैद्धांतिक संभावना नहीं, बल्कि एक ठोस चिकित्सीय वास्तविकता बनने की राह पर है।
प्रकृति के गुप्त कोड को खोलना: USAG-1 प्रोटीन का विज्ञान : हमारे दांतों का विकास एक बेहद जटिल और सटीक जैविक प्रक्रिया है, जिसे कई मॉलिक्यूल मिलकर नियंत्रित करते हैं। इनमें दो सिग्नलिंग पाथवे सबसे महत्वपूर्ण हैं: बोन मॉर्फोजेनेटिक प्रोटीन (BMP) और Wnt सिग्नलिंग 12। ये मॉलिक्यूल न केवल दांतों, बल्कि शरीर के कई अन्य अंगों के विकास के लिए भी आवश्यक हैं। यही कारण है कि सीधे तौर पर इन्हें बढ़ाने वाली कोई भी दवा पूरे शरीर पर खतरनाक दुष्प्रभाव डाल सकती है, इसलिए वैज्ञानिक ऐसे तरीकों से बचते हैं 12।
यहीं पर डॉ. ताकाहाशी की टीम की प्रतिभा सामने आती है। उन्होंने सीधे BMP या Wnt को बढ़ाने के बजाय उस मॉलिक्यूल को निशाना बनाया जो प्राकृतिक रूप से इन्हें रोकता है। यह मॉलिक्यूल है USAG-1 प्रोटीन। USAG-1 हमारे शरीर में एक प्राकृतिक “ब्रेक” की तरह काम करता है, जो स्थायी दांतों का सेट पूरा हो जाने के बाद BMP और Wnt दोनों सिग्नलिंग को दबा देता है, जिससे आगे दांतों का विकास रुक जाता है 12। जिन चूहों में यह जीन नहीं होता, उनमें अतिरिक्त दांत उग आते हैं, जो इसकी निरोधात्मक भूमिका को साबित करता है 1।
इस टीम का समाधान बेहद सटीक और सुरक्षित था। उन्होंने एक विशेष मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा (जिसका कोडनेम TRG-035 है) विकसित की, जो सीधे USAG-1 प्रोटीन को निष्क्रिय कर देती है 12। शुरुआती परीक्षणों में, कुछ एंटीबॉडीज ने गंभीर दुष्प्रभाव दिखाए क्योंकि वे Wnt और BMP दोनों के साथ USAG-1 के इंटरेक्शन को प्रभावित कर रहे थे। लेकिन टीम ने अंततः एक ऐसी एंटीबॉडी खोजने में सफलता हासिल की जो विशेष रूप से केवल USAG-1 और BMP के बीच के बंधन को तोड़ती है, जबकि Wnt पाथवे पर इसका असर बहुत कम होता है। यह सटीकता ही इस थेरेपी की सुरक्षा और व्यवहार्यता की कुंजी है 12।
यह विज्ञान एक और आकर्षक जैविक अवधारणा से जुड़ता है – मनुष्यों में एक निष्क्रिय “तीसरे दांतों के सेट” (Third Dentition) की मौजूदगी 4। शार्क और मगरमच्छ जैसे जीव पॉलीफ़ायोडॉन्ट होते हैं, यानी उनके दांत जीवन भर लगातार बदलते रहते हैं 22। मनुष्य डायफ़ायोडॉन्ट होते हैं, यानी हमारे केवल दो सेट (दूध के और स्थायी) दांत होते हैं। हालांकि, यह शोध बताता है कि हमारे अंदर तीसरे सेट के दांतों के लिए आवश्यक “टूथ बड्स” (tooth buds) या जेनेटिक मशीनरी अभी भी मौजूद है, लेकिन USAG-1 प्रोटीन इसे निष्क्रिय रखता है। यह दवा अनिवार्य रूप से इस खोई हुई विकासवादी क्षमता को फिर से जगाती है 2। यह थेरेपी खरोंच से दांत नहीं बनाती, बल्कि पहले से मौजूद, सोए हुए दांत के कीटाणुओं को विकसित होने के लिए उत्तेजित करती है 10।
प्रयोगशाला से जीवंत प्रमाण तक: जानवरों पर सफल परीक्षण : किसी भी नई दवा को इंसानों पर आज़माने से पहले, उसे जानवरों पर अपनी प्रभावशीलता और सुरक्षा साबित करनी होती है। USAG-1 एंटीबॉडी ने इस चरण को शानदार परिणामों के साथ पार किया।
पहला निर्णायक प्रमाण 2018 में चूहों पर किए गए प्रयोगों से मिला। जन्मजात रूप से दांतों की कमी (congenital tooth agenesis) से पीड़ित चूहों को जब इस एंटीबॉडी की एक खुराक दी गई, तो यह एक पूरा, कार्यात्मक दांत उगाने के लिए पर्याप्त थी 4। हिस्टोलॉजिकल जांच ने पुष्टि की कि ये नए दांत सामान्य दांतों जैसी ही संरचना वाले थे 14।
चूहों पर सफलता के बाद, टीम ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया – फेरेट्स (ferrets) पर परीक्षण। फेरेट्स को इसलिए चुना गया क्योंकि वे, मनुष्यों की तरह, डायफ़ायोडॉन्ट जानवर हैं और उनके दांतों का पैटर्न इंसानों से काफी मिलता-जुलता है। यह उन्हें चूहों की तुलना में मानव प्रतिक्रिया का अनुमान लगाने के लिए एक बेहतर मॉडल बनाता है 12। यह चुनाव वैज्ञानिकों की उस गहरी समझ को दर्शाता है जिसके तहत उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि परिणाम केवल कृंतक जीव विज्ञान तक ही सीमित न रहें।
फेरेट्स पर परिणाम और भी अधिक उत्साहजनक थे। दवा ने उनके मौजूदा सामने के दांतों के बीच एक अतिरिक्त, सातवां कृंतक दांत (incisor) उगा दिया 3। माइक्रो-सीटी स्कैन से पता चला कि इन नए दांतों की बनावट स्थायी दांतों जैसी ही थी और उनमें सक्रिय पल्प (pulp) भी मौजूद था, जो उनके जैविक रूप से जीवित और एकीकृत होने का संकेत था। हालांकि उनकी जड़ें थोड़ी छोटी थीं, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे अभी भी विकास की प्रक्रिया में हैं 14। यह दर्शाता है कि दवा सिर्फ अनियंत्रित विकास को ट्रिगर नहीं करती, बल्कि एक व्यवस्थित, प्राकृतिक विकास प्रक्रिया को फिर से शुरू करती है। इन शानदार परिणामों को 2021 में प्रतिष्ठित जर्नल
Science Advances में प्रकाशित किया गया, जिसने दुनिया भर का ध्यान इस शोध की ओर खींचा 4।
अंतिम पड़ाव – मानव परीक्षण: क्या यह इंसानों के लिए सुरक्षित और प्रभावी है? : जानवरों पर मिली सफलता ने इस क्रांतिकारी दवा के लिए अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण का मार्ग प्रशस्त किया: मानव क्लिनिकल परीक्षण। जापान की फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेज एजेंसी (PMDA) ने 25 मार्च, 2024 को इस परीक्षण योजना को अपनी मंजूरी दे दी, जो इस शोध के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था 27।
चरण 1: सुरक्षा सर्वोपरि : इस दवा का पहला चरण (Phase 1) का क्लिनिकल ट्रायल सितंबर/अक्टूबर 2024 में प्रतिष्ठित क्योटो विश्वविद्यालय अस्पताल में शुरू हुआ 27। इस चरण का प्राथमिक उद्देश्य दवा की प्रभावशीलता को जांचना नहीं, बल्कि इंसानों में इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और सही खुराक का निर्धारण करना है।
- प्रतिभागी: इस परीक्षण में 30 से 64 वर्ष की आयु के 30 स्वस्थ पुरुष शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का कम से कम एक दाढ़ का दांत गायब है 6।
- प्रक्रिया: दवा (TRG-035) को एक बार अंतःशिरा इंजेक्शन (intravenous injection) के माध्यम से दिया जाता है 20।
- लक्ष्य: मुख्य लक्ष्य यह देखना है कि क्या दवा का कोई अप्रत्याशित दुष्प्रभाव तो नहीं है। हालांकि इस चरण में दांतों का उगना अपेक्षित नहीं है, लेकिन डॉ. ताकाहाशी ने कहा है कि यदि ऐसा होता है तो उन्हें “बेहद खुशी” होगी 2।
भविष्य के चरण: जरूरत को लक्षित करना : यदि चरण 1 सफलतापूर्वक पूरा हो जाता है, तो परीक्षण अगले चरणों में प्रवेश करेगा, जो सीधे उन रोगियों को लक्षित करेगा जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
- चरण 2a (अनुमानित 2025): यह चरण दवा की प्रभावशीलता का आकलन करेगा। इसे 2 से 7 वर्ष की आयु के उन बच्चों पर केंद्रित किया जाएगा जो जन्मजात एनोडोन्शिया (congenital anodontia) से पीड़ित हैं, एक ऐसी स्थिति जिसमें छह या अधिक दांत जन्म से ही गायब होते हैं 3।
- चरण 3 और आगे: इसके बाद बड़े पैमाने पर परीक्षण होंगे, और अंततः इसका विस्तार उन वयस्कों तक किया जाएगा जिन्होंने चोट, सड़न या बीमारी के कारण अपने दांत खो दिए हैं 6।
यह पूरी प्रक्रिया डॉ. ताकाहाशी के नेतृत्व में मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट किटानो हॉस्पिटल, परीक्षण स्थल के रूप में क्योटो विश्वविद्यालय अस्पताल और विकास को आगे बढ़ाने वाली कंपनी टोरेगेम बायोफार्मा के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है 2।
तालिका 1: दांत उगाने वाली दवा (TRG-035) का क्लिनिकल ट्रायल रोडमैप

दंत चिकित्सा में एक नया सवेरा: भविष्य पर प्रभाव : यदि यह दवा सफल होती है, तो यह दंत चिकित्सा के परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल देगी। डॉ. ताकाहाशी इसे “डेन्चर और इम्प्लांट्स के साथ एक तीसरे विकल्प” के रूप में देखते हैं 3। यह सिर्फ एक और उपचार नहीं, बल्कि उपचार की एक पूरी नई श्रेणी होगी, जो कृत्रिम प्रतिस्थापन के बजाय जैविक पुनर्जनन पर आधारित है।
जन्मजात एनोडोन्शिया: एक जीवन बदलने वाला समाधान : इस दवा का सबसे गहरा और तत्काल प्रभाव जन्मजात एनोडोन्शिया से पीड़ित रोगियों पर पड़ेगा। यह स्थिति लगभग 0.1% आबादी को प्रभावित करती है। इन बच्चों को चबाने, बोलने में कठिनाई होती है और अक्सर सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे कई बार अपना मुंह छिपाने के लिए मास्क पहनते हैं। चूंकि जब तक जबड़े का विकास पूरा नहीं हो जाता, तब तक इम्प्लांट नहीं लगाया जा सकता, इन बच्चों के लिए वर्तमान में कोई स्थायी समाधान नहीं है। यह दवा उनके लिए एक “गेम-चेंजर” हो सकती है, जो उन्हें एक स्थायी, जैविक और प्राकृतिक समाधान प्रदान करेगी ।
एक विशाल बाजार: अधिग्रहित दांतों का नुकसान : जन्मजात मामलों से परे, इस दवा का बाजार बहुत बड़ा है। दुनिया भर में करोड़ों वयस्क सड़न, मसूड़ों की बीमारी या चोट के कारण दांत खो देते हैं। विशेष रूप से वृद्ध आबादी में यह समस्या गंभीर है। उदाहरण के लिए, जापान में 75 वर्ष से अधिक आयु के 90% से अधिक लोगों का कम से कम एक दांत गायब है 2। इन सभी लोगों के लिए, यह दवा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान करती है।
आर्थिक और नैदानिक तुलना : इस उपचार की अनुमानित लागत लगभग 1.5 मिलियन येन (लगभग $9,800 USD) है, और उम्मीद है कि भविष्य में इसे स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत लाया जाएगा 36। इसकी तुलना में, एक सिंगल डेंटल इम्प्लांट की लागत $3,000 से $6,000 तक हो सकती है, और पूरे जबड़े के समाधान की लागत $15,000 से $30,000 या उससे भी अधिक हो सकती है 37। हालांकि प्रारंभिक लागत अधिक लग सकती है, लेकिन एक प्राकृतिक दांत को फिर से उगाने के दीर्घकालिक लाभ कहीं अधिक हैं। यह इम्प्लांट की सर्जरी से बचाता है, डेन्चर की असुविधा को दूर करता है, और जबड़े की हड्डी के स्वास्थ्य को बनाए रखता है, जो एक बेहतर कार्यात्मक और सौंदर्य परिणाम प्रदान करता है 2। यह बहु-अरब डॉलर के डेंटल इम्प्लांट और प्रोस्थेटिक्स उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है, जो मैकेनिकल समाधानों पर आधारित है।
यथार्थ की कसौटी: चुनौतियां और विशेषज्ञ दृष्टिकोण : इस क्रांतिकारी खोज को लेकर दुनिया भर में उत्साह है, लेकिन विज्ञान की दुनिया में हर सफलता को सावधानीपूर्वक परखा जाता है। इस दवा को आम जनता तक पहुंचने से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। दुनिया भर के विशेषज्ञ इस शोध को लेकर सतर्क आशावाद व्यक्त कर रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
- प्रोफेसर एंग्रे कांग (क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन): उन्होंने इस काम को “रोमांचक और आगे बढ़ाने योग्य” बताया है, लेकिन साथ ही यथार्थवादी उम्मीदों पर जोर देते हुए कहा कि यह यात्रा “एक छोटी दौड़ नहीं, बल्कि एक के बाद एक कई अल्ट्रा-मैराथन” जैसी है। उन्होंने यह भी सकारात्मक रूप से नोट किया कि ऑस्टियोपोरोसिस के लिए एक समान एंटीबॉडी दवा पहले से मौजूद है, जो इसके नियामक अनुमोदन की राह को आसान बना सकती है ।
- प्रोफेसर चेंगफेई झांग (हांगकांग विश्वविद्यालय): उन्होंने इस पद्धति को “अभिनव और क्षमता से भरपूर” लेकिन साथ ही “क्रांतिकारी और विवादास्पद” भी कहा है। उन्होंने महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं: क्या जानवरों पर मिले परिणाम इंसानों पर भी उसी तरह लागू होंगे? और क्या फिर से उगाए गए दांत प्राकृतिक दांतों के कार्य और सौंदर्य से पूरी तरह मेल खा पाएंगे?
पुनर्योजी दंत चिकित्सा की बाधाएं : विशेषज्ञों की यह राय उन व्यापक चुनौतियों को उजागर करती है जिनका पुनर्योजी दंत चिकित्सा (regenerative dentistry) को सामना करना पड़ता है।
- नियामक अनुमोदन: किसी भी नई दवा को सुरक्षा और प्रभावकारिता के हर संदेह से परे साबित करने के लिए एक कठोर, बहु-वर्षीय और बहु-चरणीय परीक्षण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यह एक लंबा और महंगा रास्ता है।
- दीर्घकालिक व्यवहार्यता: क्या नए उगे दांत जीवन भर चलेंगे? क्या वे भी सड़न और बीमारी के प्रति उतने ही संवेदनशील होंगे जितने कि मूल दांत? इन सवालों का जवाब केवल दीर्घकालिक फॉलो-अप अध्ययनों से ही मिल सकता है।
- विनिर्माण और पहुंच: एक जटिल मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना और इसे विश्व स्तर पर सुलभ और किफायती बनाना एक बड़ी लॉजिस्टिक और आर्थिक चुनौती होगी।
- जीव विज्ञान की जटिलता: जैसा कि प्रोफेसर झांग ने उल्लेख किया है, मानव जीव विज्ञान जटिल है। दवा को न केवल एक दांत उगाना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि उसका आकार, रंग और संरेखण सही हो, और वह जबड़े की हड्डी और विपरीत दांतों के साथ पूरी तरह से एकीकृत हो। यही वह “अल्ट्रा-मैराथन” है जिसका सामना वैज्ञानिकों को करना है।
भविष्य जो उग रहा है : डॉ. कात्सु ताकाहाशी की तीन दशकों की अटूट लगन, USAG-1 प्रोटीन के रहस्य को सुलझाने, जानवरों पर सफल परीक्षण और अब मानव परीक्षणों के शुभारंभ तक की यात्रा विज्ञान की शक्ति का एक अद्भुत प्रमाण है। यह दंत चिकित्सा में एक नए युग का सूत्रपात करने की क्षमता रखता है, जहां जैविक पुनर्जनन यांत्रिक सुधारों की जगह ले सकता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए आशा की किरण बनकर जो जन्मजात दंत विसंगतियों के साथ जी रहे हैं।
हालांकि, जैसा कि विशेषज्ञ हमें याद दिलाते हैं, आगे की राह लंबी और चुनौतियों से भरी है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और शुरुआती कदम उठाए जा चुके हैं। अपने खोए हुए दांतों को फिर से उगाने का सपना अब विज्ञान-कथा नहीं है; यह एक ठोस वैज्ञानिक लक्ष्य है, और उस भविष्य के पहले बीज क्योटो की एक प्रयोगशाला में अंकुरित होने लगे हैं।






