Ayodhya Ram Mandir Case: Why Justice DY Chandrachud Prayed Before the Verdict? – भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) DY Chandrachud ने हाल ही में एक बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि अयोध्या राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) केस पर ऐतिहासिक फैसला देने से पहले वह भगवान के सामने बैठे थे और ध्यान किया था।
उनके इस बयान के बाद विपक्षी दलों (Opposition Parties) ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने साफ किया कि यह उनकी व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा था और इससे उनके न्याय देने के तरीके पर कोई असर नहीं पड़ा।
“मैं धार्मिक व्यक्ति हूं, लेकिन न्याय हमेशा निष्पक्ष दिया”
बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में पूर्व सीजेआई DY Chandrachud ने कहा: “अगर आप सोशल मीडिया पर जाकर जज के शब्दों की व्याख्या करेंगे, तो आपको गलत जवाब मिलेगा। मैं इनकार नहीं करता कि मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं। लेकिन भारत का संविधान यह नहीं कहता कि एक स्वतंत्र न्यायाधीश को नास्तिक होना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि उनकी आस्था उन्हें यह सिखाती है कि धर्म की सार्वभौमिकता को समझा जाए और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
उन्होंने यह भी कहा: “जो भी मेरी अदालत में आया, उसे निष्पक्ष न्याय मिला। फिर चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हो। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) के सभी जज भी इसी सिद्धांत का पालन करते हैं।”
न्यायाधीशों के लिए ध्यान और प्रार्थना का महत्व
पूर्व CJI Chandrachud ने बताया कि एक जज का काम बहुत संघर्षपूर्ण होता है। ऐसे में कई जज अलग-अलग तरीके से मानसिक शांति प्राप्त करते हैं। “मेरे लिए ध्यान और प्रार्थना बहुत जरूरी है। लेकिन यह ध्यान और प्रार्थना मुझे यह सिखाते हैं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ निष्पक्ष रहना है।”
PM Modi के घर जाने पर क्या बोले चंद्रचूड़?
जब जस्टिस चंद्रचूड़ से यह पूछा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) उनके घर गणेश पूजा के लिए आए थे, तो इसका न्यायपालिका के फैसलों पर कोई प्रभाव पड़ा क्या? इस पर उन्होंने कहा: “हमारी न्यायपालिका इतनी परिपक्व है कि वह समझ सकती है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के बीच शिष्टाचार का मामलों से कोई लेना-देना नहीं होता।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) जैसे मामलों पर फैसले PM Modi के आने से पहले भी दिए थे और बाद में भी दिए। “लोकतांत्रिक समाज में न्यायपालिका की भूमिका संसद में विपक्ष की तरह नहीं होती। हमारा काम संविधान और कानून के हिसाब से न्याय देना है।”
अयोध्या केस पर फैसला क्यों था ऐतिहासिक?
अयोध्या राम मंदिर विवाद (Ayodhya Ram Mandir Case) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों में से एक था।
यह विवाद सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाया जाएगा और सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन दी जाएगी। CJI DY Chandrachud उस 5-न्यायाधीशों की बेंच का हिस्सा थे, जिसने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
विपक्ष क्यों कर रहा है आलोचना?
जब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने अयोध्या फैसले से पहले भगवान के सामने ध्यान किया था, तो विपक्षी दलों ने इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए “संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ” बताया।
हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और कहा कि उनकी निजी आस्था कभी भी उनके न्यायिक फैसलों पर असर नहीं डालती।
क्या कहती है न्यायपालिका की स्वतंत्रता?
भारत का संविधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence) को सर्वोपरि मानता है। किसी भी न्यायाधीश की व्यक्तिगत धार्मिक आस्था को उसके निर्णय लेने की क्षमता से अलग माना जाता है। CJI Chandrachud के बयान से यह साफ होता है कि उन्होंने निष्पक्ष और संवैधानिक रूप से सभी मामलों में न्याय दिया।
क्या आगे कोई विवाद बढ़ेगा?
विपक्षी दलों की आलोचना के बावजूद, पूर्व CJI Chandrachud के बयान से कोई संवैधानिक विवाद खड़ा होने की संभावना कम है। अयोध्या केस का फैसला पहले ही लागू किया जा चुका है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर किसी प्रकार का सीधा प्रभाव नहीं पड़ा। चंद्रचूड़ अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, और अब नए CJI संजीव खन्ना (Sanjiv Khanna) कार्यभार संभाल चुके हैं।
क्या सीख मिलती है?
न्यायपालिका की निष्पक्षता जरूरी है, लेकिन जज भी इंसान होते हैं और उनकी अपनी आस्थाएं होती हैं। संविधान हर नागरिक को धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है, फिर चाहे वह जज ही क्यों न हो। सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला व्यक्तिगत आस्था से नहीं, बल्कि कानून और तर्कों के आधार पर लिया जाता है।