तेज़ी से बढ़ती महंगाई (Inflation) ने RBI और सरकार को बड़ा झटका दिया है। इसे कंट्रोल में करने के लिए दोनों मिलकर बड़े क़दम उठा रहे हैं। इनफ्लेशन इकोनॉमिक ग्रोथ (Economic Growth) के लिए भी ख़तरा बन रहा है। अगर यूक्रेन क्राइसिस (Ukraine Crisis) इतना लंबा नहीं चला होता तो महंगाई भी इतनी नहीं बढ़ी होती। महंगाई की सबसे ज़्यादा मार ग़रीब लोगों पर पड़ रही है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च में कोर एनालिटिकल ग्रुप के डायरेक्टर सौम्याजीत नियोगी ने कहा, “अगर आप बॉटम ऑफ़ पिरामिड को देखें तो उनका इनकम लेवल बहुत कम है। इन लोगों के पास महंगाई के झटके का सामना करने के लिए किसी तरह की गुंजाइश नहीं बची है।”
बढ़ती महंगाई ने सिर्फ़ इंडिया में लोगों को मुसीबत में नहीं डाला है। दुनिया के कई विकसित और विकासशील देश इनफ्लेशन की प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं। रूस और यूक्रेन में चल रही लड़ाई की वजह से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई पर असर पड़ा है। इसके चलते कई चीज़ों की क़ीमतें बढ़ गई हैं। अब देश कई चीज़ों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रहे हैं।
कई देशों में केंद्रीय बैंकों ने कोरोना की महामारी के दौरान दिए राहत पैकेज वापस लेने शुरू कर दिए हैं। वे अपनी बैलेंसशीट को भी घटा रहे हैं। उधर, सरकारें टैक्स में कमी कर रही हैं। कई चीज़ों पर सब्सिडी बढ़ा रही हैं। इंडिया में ग़रीब लोगों का जीना महंगाई की वजह से मुश्किल हो गया है।
इंडिया में कम इनकम वाले लोगों पर खाने-पीने की चीज़ें और पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें बढ़ने का ज़्यादा असर पड़ता है। क्रिसिल रिसर्च (CRISIL Research) ने इस महीने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि शहरों में लोग तो महंगाई का सामना कोरोना की महामारी शुरू होने के बाद से ही कर रहे हैं, लेकिन अब ग्रामीण इलाक़ों के लोगों पर भी इसका असर पड़ रहा है।
क्रिसिल रिसर्च (CRISIL Research) के चीफ़ इकोनॉमिस्ट धर्म कीर्ति जोशी ने कहा, “खाने-पीने की चीज़ों की बढ़ती क़ीमतें और महंगा फ्यूल फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में ग़रीब लोगों को ज़्यादा सताएगा।” नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (NSSO) के सर्वे के मुताबिक़, सबसे ग़रीब 80 फ़ीसदी लोगों के कुल ख़र्च में खाने-पीने की चीज़ों की ज़्यादा हिस्सेदारी होती है।
सबसे ग़रीब 20 फ़ीसदी लोगों के कुल ख़र्च में भी फ्यूल पर होने वाला ख़र्च अपेक्षाकृत ज़्यादा है। रिटेल इनफ्लेशन लंबे समय से RBI के तय लक्ष्य से ऊपर बना हुआ है। अप्रैल में रिटेल इनफ्लेशन आठ साल के सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंच गया। होलसेल प्राइसेज में भी बीते 30 साल में सबसे तेज़ वृद्धि देखने को मिली है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि महंगाई को बढ़ने से रोकने के लिए और क़दम उठाने की ज़रूरत है। इसकी वजह यह है कि इनफ्लेशन के असर को कैलकुलेट करने के बाद लोगों की सैलरी में कोई वृद्धि नहीं हुई है। कोरोना की वजह से ग़रीब लोगों और निम्न मध्यम वर्ग की बचत का बड़ा हिस्सा पहले ही इलाज पर ख़र्च हो गया है।
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