Blind Judges in India – सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि देश में दृष्टिहीन (Visually Impaired) लोग भी जज बन सकते हैं। यह फैसला उन लाखों लोगों के लिए एक बड़ी राहत है, जो न्यायिक सेवा (Judiciary) में अपना करियर बनाना चाहते हैं, लेकिन दृष्टिहीनता के कारण अवसरों से वंचित थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्त किए जाने का पूरा अधिकार है। इसके साथ ही, अदालत ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) न्यायिक सेवा नियम को रद्द कर दिया, जो दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में प्रवेश करने से रोकता था।
न्यायपालिका में भेदभावपूर्ण नियम खारिज
जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और जस्टिस आर महादेवन (Justice R Mahadevan) की पीठ ने इस ऐतिहासिक निर्णय को सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह दृष्टिहीन लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा कि संविधान (Constitution) समानता और अवसर की गारंटी देता है, और किसी भी व्यक्ति को उसकी शारीरिक अक्षमता के कारण न्यायिक सेवा से वंचित नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तब उठा जब एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर बताया कि उसका दृष्टिहीन बेटा न्यायिक सेवा में शामिल होना चाहता है, लेकिन मध्य प्रदेश के भेदभावपूर्ण नियमों के कारण वह इस प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकता। इस पत्र के आधार पर अदालत ने स्वत: संज्ञान (Suo Moto) लिया और इस मामले पर सुनवाई की।
दृष्टिहीन लोगों के लिए बड़ा अवसर
इस फैसले के बाद, अब दृष्टिहीन उम्मीदवार भी न्यायिक परीक्षाओं (Judicial Exams) में भाग ले सकेंगे और जज बनने का सपना पूरा कर सकेंगे। यह फैसला न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश में दृष्टिहीन लोगों के लिए न्यायिक सेवा का द्वार खोलने वाला साबित होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दृष्टिहीन लोगों के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल न्यायपालिका में विविधता बढ़ेगी, बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि योग्यता किसी भी शारीरिक अक्षमता पर निर्भर नहीं होती। अब दृष्टिहीन उम्मीदवार भी न्यायिक परीक्षाओं में भाग लेकर न्यायाधीश बनने का अवसर प्राप्त कर सकेंगे।