टीसीएस (TCS) से क़रीब आधा दशक के बाद टाटा समूह की सबसे मूल्यवान कंपनी का ताज छिन गया है। इस समूह की सबसे पुरानी कंपनी टाटा स्टील (Tata Steel) ने TCS की जगह ले ली है। टीसीएस टाटा समूह की सबसे ज़्यादा कमाई वाली कंपनी भी रही है।
पिछले वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाही में टाटा स्टील ने 31,914 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कमाया है। यह टीसीएस के 28,490 करोड़ रुपये के प्रॉफिट के मुक़ाबले ज़्यादा है। इस ट्रेंड के आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। टाटा स्टील के बोर्ड की बैठक 3 मई को होने वाली है। इसमें कंपनी के कंसालिडेटेड रिजल्ट पर विचार होगा। कंपनी का बोर्ड डिविडेंड का एलान कर सकता है। मीटिंग में शेयर स्पिल्ट पर भी फ़ैसला हो सकता है।
टाटा स्टील की स्थिति में सिर्फ़ पांच साल में बड़ा बदलाव आया है। पांच साल पहले कंपनी लॉस उठा रही थी। उस पर क़र्ज़ का बोझ बहुत बढ़ गया था। कमोडिटी की क़ीमतों में आई गिरावट ने कंपनी की हालत और खस्ती कर दी थी। लेकिन, अब वह टाटा समूह की सबसे मूल्यवान कंपनी बन गई है। इसका श्रेय टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन को जाता है। उनकी नियुक्ति टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने की थी। वह मिस्त्री द्वारा नियुक्त होने वाले एकमात्र एग्जिक्यूटिव हैं, जो अब भी टाटा समूह के साथ हैं।
नरेंद्रन ने न सिर्फ़ टाटा स्टील के घरेलू कारोबार को मुनाफ़े में लाया है बल्कि उन्होंने कंपनी के यूरोपीय कारोबार में भी बड़ा सुधार लाया है। ख़ास बात यह है कि टाटा स्टील ऐसे वक़्त समूह की ताज बन गई है, जब टाटा ग्रुप का ज़ोर डिजिटल बिजनेस पर है। इससे यह साफ़ हो गया है कि भले ही प्रॉफिट के लिए कंपनियां वर्चुअल वर्ल्ड पर ज़्यादा दांव लगा रही हैं, लेकिन ओल्ड इकोनॉमी कंपनियों की अहमियत ख़त्म होने वाली नहीं है। इसकी वजह यह है कि अब भी कंज्यूमर को वास्तविक ज़िंदगी में बुनियादी चीज़ों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
टाटा स्टील ने जो उदाहरण पेश किया है, वह कंपनियों की टॉप लीडरशिप को अपनी स्ट्रैटेजी पर फिर से विचार करने को मजबूर कर सकता है। टाटा समूह के चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखर को भी यह बात दिमाग़ में रखनी होगी। ख़ासकर तब जब वह टाटा समूह के फ्यूचर का रोडमैप तैयार कर रहे हैं। टाटा समूह देश का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट हाउस है। इसमें क़रीब तीन दर्ज़न सूचीबद्ध कंपनियां शामिल हैं।
टीसीएस लंबे समय से टाटा समूह की दुधारू गाय रही है। टाटा समूह के रेवेन्यू में इसकी सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी रही है। टाटा समूह को पिछले साल टीसीएस से क़रीब 22,500 करोड़ रुपये मिले थे। 11,371 करोड़ रुपये डिविडेंड के रूप में मिले थे। बाक़ी 11,121 करोड़ रुपये टीसीएस के अपने शेयरों को बायबैक करने से मिले थे।
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