अयोध्या, 11 जनवरी (The News Air) श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े ढेर सारे कारसेवकों और घटनाओं की चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन इसकी शुरुआत को लेकर शायद ही कोई चर्चा है। इस बीच विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के पूर्व केंद्रीय सचिव पुरुषोत्तम नारायण सिंह से इस आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बातचीत हुई।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1984 में आठ अक्टूबर को श्रीराम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए पहला सफल प्रयास हुआ। अयोध्या से गुजरने वाली सरयू तट के किनारे संकल्प कार्यक्रम किया गया। यहां सबने इकट्ठा होकर अपने अपने हाथों में सरयू का जल लेकर मन्दिर का ताला खुलवाने का संकल्प लिया। इसके बाद से ही रामजन्मभूमि आंदोलन को गति मिलनी शुरू हो गयी।
उन्होंने कहा कि संकल्प कार्यक्रम में बाधायें भी आई। कार्यक्रम को करने के लिए बनाये जाने वाले मंच को लेकर प्रशासन और विहिप के बींच तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। हालांकि यह कुछ देर के लिए ही थी और तत्कालीन एसएसपी कर्मवीर सिंह की मौन स्वीकृति मिलने के साथ ही आयोजन आसान हो गया। फिर, नदी के रेत पर 100 लोगों के बैठने वाला मंच तैयार हुआ और संकल्प लिया गया।
उन्होने बताया कि ‘संकल्प कार्यक्रम’ के लिए सैकड़ों साधु संतों के साथ हजारों की संख्या में यहाँ आये लोग ‘संकल्पित भाव’ से पहुंचे थे। फिर कार्यक्रम का सफल होना स्वाभाविक था। उन्होंने बताया कि संकल्प कार्यक्रम के बाद अचानक जनजागरण का विचार आया। बिना किसी पूर्व तैयारी के ही जनजागरण यात्रा निकल गयी। शुरुआत, बिहार के सीतामढ़ी से हुई। बिना किसी तैयारी के निकली यह रथ यात्रा दैवीय प्रेरणा से बढ़ चला, लेकिन बीच-बीच में पड़ने वाली मुस्लिम आबादी चिंता का कारण बनने लगी। रथ पर ईट पत्थर चलने की आशंका से इसकी रक्षा के लिए युवाओं की टीम बनी। इसे कोई नाम नहीं दिया गया था।सुरक्षा करने वाले युवाओं के दल को अलग अलग नामों जैसे ‘राम दल’, ‘बजरंग दल’ ‘वीर वाहिनी’ आदि नामों की संज्ञा मिलती रही। बाद में इन युवाओं के दल को ‘बजरंग दल’ का नाम दिया गया। विनय कटियार इसके मुखिया बनाये गये।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह यात्रा, बिना योजना के चल रही थी। यात्रा गाज़ियाबाद तक पहुंच चुकी थी, लेकिन 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी और यात्रा को रोक दी गयी।
बता दें कि विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के पूर्व केंद्रीय सचिव रहे पुरुषोत्तम नारायण सिंह अब 90 वर्ष की आयु को पूर्ण कर चुके हैं। यह संगठन के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक हैं। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से जुड़ी विभिन्न यात्राओं और उनकी सफलता की पटकथा लिखने के लिए इन्हें जाना जाता है। जनजागरण और हिंदू जनमानस को प्रेरित करने में भी इन्हें महारत हासिल रही। फिलहाल, अभी अयोध्या में रहते हुए मंदिर निर्माण कार्य को मौन रूप से देख रहे हैं।