RSS BJP Conflict Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है लेकिन इस ऐतिहासिक मोड़ पर संघ ऐसे संकट से गुजर रहा है जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया। सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान खुलेआम कहा कि लोगों को बीजेपी के चश्मे से संघ को समझने की गलती नहीं करनी चाहिए और यह बयान अपने आप में एक बड़ा राजनीतिक संदेश है जो बताता है कि संघ और उसके अपने प्रचारक की सरकार के बीच वैचारिक दूरियां बढ़ती जा रही हैं।
100 साल में पहली बार ऐसा संकट
यह सवाल बेहद अहम है कि जो काम नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी नहीं कर पाए क्या वह राहुल गांधी कर देंगे। संघ पर दो बार प्रतिबंध लगे लेकिन तब भी कभी सरसंघचालक को यह कहने की जरूरत नहीं पड़ी कि उनके राजनीतिक संगठन के चश्मे से संघ को मत देखिए। पहली बार ऐसी परिस्थिति आई है जब संघ को अपने ही प्रचारक के प्रधानमंत्री बनने के बाद खुद को अलग दिखाने की मजबूरी आ पड़ी है।
मोहन भागवत का कोलकाता वाला बड़ा बयान
कोलकाता में आयोजित कार्यक्रम में मोहन भागवत ने साफ शब्दों में कहा कि संघ के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों में काम कर रहे हैं और कुछ लोग राजनीति और सत्ता में भी हैं इसलिए बहुत लोगों की यह प्रवृत्ति रहती है कि संघ को बीजेपी के द्वारा समझना। उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी गलती होगी क्योंकि संघ को समझना है तो संघ को ही देखना पड़ता है और देखने से समझ में न आए तो अनुभव करना पड़ता है।
संविधान पर चौंकाने वाला रुख
सबसे बड़ा बयान संविधान को लेकर आया जब सरसंघचालक ने कहा कि संविधान में हिंदू राष्ट्र जोड़ने का फैसला अगर संसद कभी करती है या नहीं करती है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने साफ किया कि हम तो सिर्फ और सिर्फ हिंदू राष्ट्र के तौर पर ही खुद को मानते हैं और देश को भी इसी नजरिए से देखते हैं। यह बयान एक झटके में मोदी सरकार से खुद को अलग करने जैसा था क्योंकि संविधान को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच जो टकराव चल रहा है उसमें संघ अब कहीं अलग खड़ा दिखना चाहता है।
बंगाल की राजनीति पर राजनीतिक बयान
मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की राजनीति पर भी खुलकर बात की और कहा कि अगर हिंदू समाज एकजुट हो जाए तो बंगाल में परिस्थिति बदलने के लिए कोई समय नहीं लगेगा। यह एक राजनीतिक बयान है और एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करने वाले संघ की तरफ से ऐसा बयान पहली बार सामने आया है। जब उनसे राजनीतिक परिवर्तन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि राजनीतिक परिवर्तन के बारे में सोचना उनका काम नहीं है लेकिन हिंदू एकता से सत्ता परिवर्तन की बात उन्होंने खुद ही कही।
राहुल गांधी के सवालों का दबाव
यह विश्लेषण करना जरूरी है कि राहुल गांधी ने इस दौर में संघ को लेकर जो सवाल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाए हैं उनका दबाव है या फिर संघ की वैचारिक परिस्थितियां इतनी नाजुक हो चली हैं। जब अपने ही प्रचारक सत्ता में हो तो सामान्य तौर पर मुश्किल नहीं होनी चाहिए लेकिन अपने ही प्रचारक से दूर होकर संघ को समझाने की कोशिश शहर दर शहर घूमकर सरसंघचालक कर रहे हैं। राहुल गांधी ने तीन मुख्य सवाल खड़े किए हैं कि संघ संविधान को नहीं मानता, ताकत को मानता है सच को नहीं और हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना संवैधानिक सेकुलर व्यवस्था से अलग है।
संघ की रक्षात्मक मुद्रा
पहली बार आरएसएस ऐसे सुरक्षात्मक कवच के दायरे में खड़ी दिख रही है जो गौर करने लायक है। किसी ने नहीं कहा कि संघ कहीं हमला करेगी लेकिन सरसंघचालक ने खुद यह स्पष्टीकरण दिया कि संघ का मकसद हिंदू समाज को संगठित करना है और यह किसी के खिलाफ नहीं है। उन्होंने गणवेश यानी व्यायाम के बारे में भी सफाई दी कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि किसी पर हमला करने की योजना है बल्कि बस खुद को फिट रखते हैं योगा की तर्ज पर। यह बात कहने की जरूरत क्यों पड़ी यह अपने आप में बड़ा सवाल है।
गर्व से कहो हम हिंदू हैं नारे पर सवाल
सरसंघचालक ने एक और चौंकाने वाली बात कही जब उन्होंने कहा कि जो कहते हैं गर्व से कहो हम हिंदू हैं यह नारा लगाने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि उन्हें समझना होगा और बताना होगा कि उन्होंने देश के लिए क्या किया क्योंकि यह नारा अपने आप में कोई मायने नहीं रखता। यह नारा मंडल कमंडल की लड़ाई के बाद से इस देश में राजनीतिक नारे के तौर पर बीजेपी ने आत्मसात किया था और अब संघ प्रमुख खुद इस पर सवाल उठा रहे हैं।
महात्मा गांधी के चरखे पर टिप्पणी
मोहन भागवत ने महात्मा गांधी के चरखे का भी जिक्र किया और पहली बार खुले तौर पर कहा कि चरखे के जरिए स्वराज नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि चरखा तो अपनी जिंदगी जीने के तरीके और देश के साथ जुड़ने का तरीका हो सकता है लेकिन इसके जरिए स्वराज की कल्पना नहीं कीजिए। यह बयान गांधी की विचारधारा पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।
संघ और मोदी सरकार के बीच वैचारिक टकराव
विश्लेषण से साफ है कि संघ और मोदी सरकार के बीच वैचारिक टकराव चरम पर है। प्रचारक जिन नीतियों के आश्रय चलना चाहते हैं संघ वैचारिक तौर पर उससे दूर हो चला है। बीजेपी का अध्यक्ष कौन होगा और संगठन कौन संभालेगा इसको लेकर पहले से अंतर्द्वंद था लेकिन अब यह खुलकर सामने आ गया है। स्वदेशी गायब है लेकिन नारा है, लोकल फॉर वोकल है लेकिन प्रोडक्शन खत्म हो चला है, असमानता चरम पर है और कॉर्पोरेट के साथ सत्ता खड़ी है।
बांग्लादेश पर मोदी सरकार से नाराजगी
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर भी मोहन भागवत ने चिंता जताई और भारत सरकार से आग्रह किया कि कुछ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हो सकता है सरकार कुछ कर रही हो जो उनकी जानकारी में नहीं है लेकिन पार्लियामेंट के भीतर और बाहर बांग्लादेश में जो हो रहा है उसमें सरकार का कोई वक्तव्य सामने नहीं आया। यह टिप्पणी मोदी सरकार की विदेश नीति पर सीधा सवाल है।
हेडगेवार से भागवत तक का सफर
संघ के 100 साल के इतिहास में हेडगेवार, गुरु गोलवलकर, देवरस, रज्जू भैया, कुप्प सुदर्शन और अब मोहन भागवत तक का सफर तय हुआ है। इस पूरे सफर में सबसे बड़ी वैचारिक चुनौती अब महात्मा गांधी की विचारधारा से टकराव की है और आरएसएस अपनी वैचारिक परिस्थितियों के जरिए इसे खारिज नहीं कर सकती है। इसके लिए राजनीतिक सत्ता प्रचारक की चाहिए और दूसरी तरफ उस सत्ता से भी अंतर्विरोध है।
क्या है पृष्ठभूमि
आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी और तब से लेकर अब तक संघ ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। नेहरू और इंदिरा गांधी के दौर में प्रतिबंध लगे, जेपी आंदोलन में संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में गुजरात का राजनीतिक प्रयोग सामने आया। लेकिन मौजूदा दौर में जब संघ का अपना प्रचारक ही प्रधानमंत्री है तब संघ को अपने अस्तित्व को लेकर सफाई देनी पड़ रही है और यह 100 साल के इतिहास में पहली बार हो रहा है। राहुल गांधी द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संघ पर उठाए गए सवालों ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है।
मुख्य बातें (Key Points)
- मोहन भागवत ने कोलकाता में कहा कि बीजेपी के चश्मे से संघ को समझना बहुत बड़ी गलती होगी और संघ को समझना है तो संघ को ही देखना और अनुभव करना पड़ेगा।
- संविधान में हिंदू राष्ट्र जोड़ें या न जोड़ें इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि संघ खुद को पहले से ही हिंदू राष्ट्र मानता है और यह बयान मोदी सरकार से खुद को अलग करने जैसा है।
- गर्व से कहो हम हिंदू हैं नारे पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ नारे से काम नहीं चलेगा और देश के लिए क्या किया यह बताना होगा।
- 100 साल के इतिहास में पहली बार संघ रक्षात्मक मुद्रा में है और अपने ही प्रचारक की सरकार से वैचारिक दूरी बना रहा है जो बताता है कि आंतरिक संकट गहरा है।






