Dyslipidemia: भारत में 81.2% आबादी हाई कोलेस्ट्रॉल यानी डिस्लिपिडेमिया की गंभीर समस्या से जूझ रही है। ICMR-INDIAB के ताजा आंकड़े बताते हैं कि यह साइलेंट किलर चुपके से दिल को घेर रहा है। लखनऊ के मेदांता हार्ट इंस्टीट्यूट, इंदौर के विशेष जुपिटर हॉस्पिटल और पटना के फोर्ड हॉस्पिटल के तीन वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट ने इस खतरनाक बीमारी पर विस्तार से जानकारी दी है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 87.3% मरीज अपनी कोलेस्ट्रॉल की दवाएं बीच में ही रोक देते हैं, जो उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
आखिर क्या है डिस्लिपिडेमिया?
डॉ. अनिरुद्ध व्यास ने बताया कि हमारे शरीर में लाइपोप्रोटीन्स अलग-अलग तरह के होते हैं। इनमें LDL (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन), HDL (हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन) और VLDL (वेरी लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन) शामिल हैं।
जब इन लाइपोप्रोटीन्स का लेवल अत्यधिक बढ़ जाए या कम हो जाए, तो इसे मेडिकल भाषा में डिस्लिपिडेमिया कहते हैं।
डॉ. व्यास ने साफ किया कि यह हार्ट अटैक का रिस्क फैक्टर है, कारण नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि जिसे डिस्लिपिडेमिया है उसे हार्ट अटैक होगा ही।
भारतीयों में जेनेटिक कारणों से ज्यादा खतरा
एशिया पैसिफिक रीजन और खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में जेनेटिक फैक्टर्स की वजह से डिस्लिपिडेमिया पश्चिमी देशों की तुलना में ज्यादा देखने को मिलता है।
इंटर हार्ट और इनकम हार्ट जैसी अंतरराष्ट्रीय स्टडीज में पाया गया है कि जिन लोगों का LDL बढ़ा हुआ रहता है, उनमें हार्ट अटैक का रिस्क कहीं ज्यादा होता है।
दुबले लोग भी हो सकते हैं शिकार
डॉ. सुशांत कुमार पाठक ने एक बड़ी गलतफहमी दूर की। उन्होंने बताया कि यह सोचना गलत है कि सिर्फ मोटे लोगों को ही डिस्लिपिडेमिया होता है।
अगर आप पतले हैं लेकिन आपकी लाइफस्टाइल खराब है, आप एक्टिव नहीं हैं, स्मोकिंग या अल्कोहल की आदत है, या फैमिली हिस्ट्री है, तो आप भी इसके शिकार हो सकते हैं।
विसरल फैट (पेट के अंदर की चर्बी) का डिस्लिपिडेमिया से मोटापे की तुलना में ज्यादा गहरा संबंध है।
कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों में दो तरह की प्रतिक्रिया
डॉ. अनिरुद्ध व्यास ने बताया कि मरीज दो स्पेक्ट्रम में आते हैं।
पहला वर्ग: वे लोग जो बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को बिल्कुल गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें लगता है कि हम फिट हैं, मैराथन दौड़ते हैं, तो दवाई की क्या जरूरत।
दूसरा वर्ग: वे लोग जो बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं। रात को दो बजे ऑनलाइन ऑयली फूड मंगाते हैं, कोई एक्सरसाइज नहीं करते, लेकिन डॉक्टर से कहते हैं कि कोई दवाई दे दो जिससे जल्दी कोलेस्ट्रॉल कम हो जाए।
समझिए कोलेस्ट्रॉल की असली मेकेनिज्म
डॉ. व्यास ने एक महत्वपूर्ण जानकारी दी कि जो कोलेस्ट्रॉल ब्लड में है, वह सीधे आर्टरीज में जाकर डिपॉजिट नहीं होता।
लिवर कोलेस्ट्रॉल बनाता है और आर्टरीज खुद अलग से कोलेस्ट्रॉल बनाती हैं जिससे ब्लॉकेज होता है।
जिनका लिवर ज्यादा कोलेस्ट्रॉल बनाता है, उनकी ब्लड वेसल्स भी ज्यादा कोलेस्ट्रॉल बनाने की संभावना रखती हैं।
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल के तीन स्तंभ
डॉ. प्रवीण गोयल ने बताया कि कोलेस्ट्रॉल का रिस्क सिर्फ लेवल पर नहीं, बल्कि “कितना कोलेस्ट्रॉल × कितने साल” इस कॉम्बिनेशन पर निर्भर करता है।
पहला: हेल्दी डाइट – प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट और ट्रांस फैट कम से कम हो।
दूसरा: रेगुलर एक्सरसाइज – रोजाना 45 मिनट से 1 घंटा।
तीसरा: जरूरत पड़ने पर दवाइयां और नियमित फॉलो-अप।
कितना होना चाहिए कोलेस्ट्रॉल लेवल?
डॉ. सुशांत ने स्पष्ट आंकड़े बताए:
सामान्य व्यक्ति के लिए: LDL 100 mg/dL से कम होना चाहिए।
हार्ट अटैक या स्टेंट वाले मरीजों के लिए: LDL 70 mg/dL से कम होना चाहिए।
बहुत हाई रिस्क वाले मरीजों के लिए: LDL 45-50 mg/dL से भी नीचे लाया जा सकता है।
ट्राइग्लिसराइड अगर 350-400 से ऊपर है, तो यह हाई रिस्क की निशानी है।
डाइट में क्या खाएं, क्या नहीं
डॉ. अनिरुद्ध व्यास ने एक दिलचस्प तथ्य बताया। उन्होंने कहा कि सभी प्राइमेट्स (बंदर की प्रजाति) में सिर्फ इंसानों को ही हार्ट अटैक होता है। इसकी वजह है हमारा डाइट।
क्या नहीं खाना चाहिए:
- प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट – चीनी, मैदा, गुड़, मिठाई, आइसक्रीम, वाइट ब्रेड
- सैचुरेटेड फैट – बटर, मेयोनीज, चीज
- जंक फूड जो आज की युवा पीढ़ी रोजाना खाती है
क्या खाना चाहिए:
- ताजे फल और सब्जियां
- फाइबर युक्त भोजन
- कम प्रोसेस्ड खाना
87.3% मरीज क्यों छोड़ देते हैं दवाएं?
डॉ. प्रवीण गोयल ने बताया कि स्टैटिन जैसी दवाएं बहुत असरदार हैं। तीन हफ्ते में कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है।
जब लेवल कम हो जाता है, तो मरीजों को लगता है कि अब तो ठीक हो गया, दवा बंद कर देते हैं।
यह एक मेटाबॉलिक प्रॉब्लम है। दवा बंद करने पर कोलेस्ट्रॉल वापस उसी लेवल पर आ जाएगा।
सिर्फ 2-5% लोगों को दवाओं से साइड इफेक्ट होता है, जैसे मसल पेन।
दवा बीच में छोड़ने का खतरनाक अंजाम
डॉ. सुशांत ने बताया कि कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमता है और ब्लॉकेज बनाता है।
दिल में जमे तो हार्ट अटैक, दिमाग में जमे तो स्ट्रोक, पैर की नसों में जमे तो कालापन या चलने में दर्द।
दवाई से जो अनस्टेबल प्लाक्स स्टेबलाइज होते हैं, दवाई बंद करने पर वे फिर से अनस्टेबल हो जाते हैं।
LDL की वेरिएबिलिटी (ऊपर-नीचे होना) बहुत खतरनाक है। अगर 50 से 70-80 पर गया तो स्टेबल प्लाक्स रप्चर हो सकते हैं।
डायबिटीज और हाई BP के साथ मिलकर बनता है जानलेवा कॉम्बो
डॉ. अनिरुद्ध व्यास ने बताया कि अगर किसी को तीनों बीमारियां एक साथ हैं तो क्यूमुलेटिव रिस्क बढ़ जाता है।
इसे मेडिकल भाषा में मेटाबॉलिक सिंड्रोम या सिंड्रोम X कहते हैं।
ये बीमारियां अनुवांशिक होती हैं और फैमिली में चलती हैं। इसलिए घर में हेल्दी वातावरण बनाना जरूरी है।
बच्चों को शुरू से ही सलाद, फल और स्वस्थ खाने की आदत डालनी चाहिए।
लाइफस्टाइल में ये बदलाव हैं जरूरी
डॉ. प्रवीण गोयल ने बताया कि कोलेस्ट्रॉल मुख्य रूप से एनिमल प्रोडक्ट्स से आता है, प्लांट प्रोडक्ट्स में नहीं होता।
जरूरी बदलाव:
- नॉन वेजिटेरियन फूड कम करें
- तली हुई और रिफ्राइड चीजें बिल्कुल नहीं
- फ्री शुगर (चीनी, आलू, चावल, स्टार्च) कम करें – ये ट्राइग्लिसराइड में बदलते हैं
- हाई साल्ट इंटेक नहीं
- ताजे फल और सब्जियां ज्यादा खाएं – फाइबर से कोलेस्ट्रॉल कम होता है
डॉक्टर्स की फाइनल सलाह
डॉ. सुशांत ने आखिरी टिप्स दीं:
- रोजाना 30-60 मिनट मॉडरेट एक्सरसाइज करें, बीच-बीच में फास्ट वॉकिंग
- योगा को अपने शेड्यूल में शामिल करें
- प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड, चिप्स से बचें
- ग्रीन लीफी वेजिटेबल्स और फ्रेश फ्रूट्स खाएं
- 6-8 घंटे की अच्छी नींद लें
- तनाव कम करें
- अगर हाइपोथायरॉइडिज्म, डायबिटीज या हाइपरटेंशन है तो उसका इलाज करवाएं
क्या है पृष्ठभूमि
भारत को डिस्लिपिडेमिया की राजधानी कहा जाता है। यहां के लोगों में ट्राइग्लिसराइड और LDL (बैड कोलेस्ट्रॉल) का लेवल दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा पाया जाता है। इसकी वजह जेनेटिक फैक्टर्स के साथ-साथ बदलती लाइफस्टाइल, जंक फूड की बढ़ती आदत और फिजिकल एक्टिविटी में कमी है। यह बीमारी चुपचाप आती है और धीरे-धीरे दिल की नसों में ब्लॉकेज बनाती है, जो आगे चलकर हार्ट अटैक का कारण बनती है।
मुख्य बातें (Key Points)
- 81.2% भारतीय हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से ग्रस्त हैं, जो हार्ट अटैक का बड़ा रिस्क फैक्टर है।
- 87.3% मरीज अपनी कोलेस्ट्रॉल की दवाएं बीच में ही रोक देते हैं, जिससे स्टेबल प्लाक्स अनस्टेबल होकर रप्चर हो सकते हैं।
- दुबले लोगों को भी डिस्लिपिडेमिया हो सकता है – खराब लाइफस्टाइल, स्मोकिंग, अल्कोहल और जेनेटिक कारण जिम्मेदार होते हैं।
- कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल के तीन स्तंभ: हेल्दी डाइट, रोजाना 45-60 मिनट एक्सरसाइज, और जरूरत पड़ने पर नियमित दवाएं।






