The News Air (नई दिल्ली)कांग्रेस लीडरशिप पर तीखे कमेंट करने वाले प्रशांत किशोर के पास 2024 में भाजपा को हराने का फॉर्मूला है। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस की रिकवरी के लिए कुछ ज़रूरी बदलाव भी बताए हैं। प्रशांत किशोर ने कहा कि पूरे विपक्ष का मतलब कांग्रेस नहीं है, इसमें दूसरी पार्टियां भी हैं। ऐसे में सभी को मिलकर तय करना चाहिए कि लीडर कौन होना चाहिए। प्रशांत किशोर ने ये बातें इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में कहीं। पढ़िए इसके ख़ास अंश..
भाजपा को हराने का फॉर्मूला
प्रशांत किशोर ने कहा कि मौजूदा भाजपा के ख़िलाफ़ केवल बहुत सारी पार्टियों का एकसाथ आ जाना ही काफ़ी नहीं है। असम में महा गठबंधन बना और उसे हार मिली। 2017 में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और अन्य पार्टियां साथ आईं, लेकिन हार गईं। अतीत को देखना होगा और उससे सीखना होगा। यह वह फॉर्मूला नहीं है, जिससे भाजपा हार जाएगी। इसके लिए सबको एक करने वाला चेहरा चाहिए, एक विचार होना चाहिए, इसके बाद नंबर आता है आंकड़ों का और फिर मशीनरी का।
उन्होंने कहा कि कोई भी पार्टी भाजपा को अकेले चैलेंज नहीं कर सकती है, जब तक वह उस जगह को नहीं हासिल कर लेती है, जो आज कांग्रेस की है। अगर आपके पास सही मुद्दे हैं और उनके इर्द-गिर्द आप विचार और नज़रिया खड़ा कर सकते हैं तो लीडरशिप करनेवाला वो चेहरा भी नज़र आ जाएगा। 2 साल का वक़्त कम नहीं होता है। 7 से 10 साल की योजना आपके पास होनी चाहिए। साथ रहना होगा, लड़ना होगा और उन चार चीज़ों (चेहरा, विचार, आंकड़ा और मशीनरी) पर लगातार काम करना होगा।
अपोजिशन लीडर पर
अपोजिशन को लेकर आज सारी बहस यही है कि क्या यह कांग्रेस के साथ प्रभावी है या इसके बिना। इस देश में प्रभावी विपक्ष के लिए कांग्रेस ज़रूरी है, लेकिन इस पार्टी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए नहीं। मौजूदा कांग्रेस लीडरशिप के साथ कांग्रेस ने कुछ अच्छा नहीं किया है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विपक्ष का नेता कौन हो, पर कांग्रेस पार्टी अकेले ही पूरा विपक्ष नहीं है। इसमें और भी बहुत सारी पार्टियां हैं। इन सबको मिलकर यह तय करना चाहिए कि विपक्ष की अगुआई कौन करे। यह नहीं होना चाहिए कि कोई कह दे कि कोई XYZ प्रेसिडेंट होगा और उसे वह ज़िम्मा सौंप दिया जाए।
कांग्रेस लीडरशिप पर
एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस का जो स्ट्रक्चर है, उसे बदलना चाहिए। जिस तरह से यह चलती है और जिस तरह से फ़ैसले लिए जाते हैं। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी 3 साल से अंतरिम अध्यक्ष के साथ चल रही है, क्या यह सही क़दम है। इसके लिए आपको किसी प्रशांत किशोर या किसी और की सलाह की ज़रूरत नहीं है। आप जिसे भी चुनें वह फुलटाइम प्रेसिडेंट होना चाहिए। जब आप जीतते हैं तो इसका क्रेडिट लेते हैं, हार पर आपको किनारे हट जाना चाहिए और दूसरे को लीडरशिप करने देनी चाहिए।
मैं राहुल गांधी की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उस लीडरशिप के बारे में बात कर रहा हूं जिसकी अगुआई में पिछले 10 साल से कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। इस दौरान 90% चुनाव पार्टी हारी है। 1984 के बाद एक भी चुनाव ये पार्टी अकेले नहीं जीत पाई है। लीडरशिप मसले के अलावा फ़ैसले लेने में भी तेज़ी आनी चाहिए। फ़ैसले लेने की सभी शक्तियां केवल दिल्ली में बैठे कुछ लोगों तक नहीं सीमित होनी चाहिए। यह पार्टी पहले बहुत मज़बूत थी, क्योंकि इसके पास बहुत ताक़तवर क्षेत्रीय नेता थे।
ममता के UPA ख़त्म वाले बयान पर
केवल ममता बनर्जी ही बता सकती हैं कि उन्होंने ऐसी बात क्यों कही। हाँ, मैं यह जरुर कहता हूं कि 2004 में जो UPA थी, वो आज नहीं है। 2004 में UPA सरकार चलाने के लिए बनी थी इसलिए नहीं कि सत्ता में न रहने पर भी साथ रहे। अगर यह दोनों स्थितियों के लिए था, तो आपको एक बार UPA की तरफ़ देखना चाहिए। जो लोग पहले UPA का हिस्सा थे, वे अब नहीं हैं। कई बाहर गए और कई साथ आए। स्थितियां बदल गई हैं।
भाजपा और मोदी पर
आप भाजपा को आप ख़त्म नहीं कर सकते। आपको यह जरुर देखना चाहिए कि आज वह यहां कैसे पहुँची। संगठन के तौर पर पीढ़ियों ने पिछले 50-60 साल तक काम किया। जनसंघ और उससे पहले भी यह शुरू हो गया था। अब 60-70 साल के बाद वे केंद्र में 30-35% वोटों के साथ सत्ता में आए हैं।
मैं यह नहीं कहता कि वह 30-40 साल तक सत्ता में रहेगी। हाँ, वो अगले 30-40 साल तक भारतीय राजनीति के केंद्र में रहेगी, भले इलेक्शन जीते या हारे। ऐसा ही कांग्रेस के साथ हुआ है। 1967 के बाद वो कई चुनाव हारी, लेकिन पूरे देश में उसके पास 30-35% वोट थे तो राजनीति भी उसके इर्द-गिर्द घूमती रही। जहां तक बात नरेंद्र मोदी की है, तो वे लोगों की बात सुनते हैं और उनकी सबसे बड़ी ताक़त यही है। मोदी यह भी जानते हैं कि लोगों की ज़रूरत क्या है।