Phosphorus Kidney Disease : किडनी हमारे शरीर का एक बेहद जरूरी अंग है जो खून को साफ करती है, लेकिन क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) के मरीजों के लिए फॉस्फोरस नाम का मिनरल ‘साइलेंट किलर’ बन सकता है। यह चुपचाप जमा होकर हड्डियों और दिल को भारी नुकसान पहुंचाता है।
क्या है फॉस्फोरस का काम?
वैसे तो फॉस्फोरस शरीर के लिए एक जरूरी मिनरल है। यह हड्डियों को मजबूत रखता है, कोशिकाओं में एनर्जी पैदा करता है और DNA की रक्षा करता है। यह ज्यादातर मांस, दूध, नट्स, दालों और पैकेज्ड फूड्स से मिलता है।
ज्यादा फॉस्फोरस का खतरनाक असर
एक स्वस्थ किडनी फालतू फॉस्फोरस को पेशाब के रास्ते आसानी से बाहर निकाल देती है। लेकिन CKD की स्थिति में किडनी यह काम नहीं कर पाती और फॉस्फोरस खून में बढ़ने लगता है।
जब खून में फॉस्फोरस ज्यादा हो जाता है, तो यह हड्डियों से कैल्शियम खींचना शुरू कर देता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और दर्द होने लगता है।
दिल के लिए सबसे बड़ा खतरा
इससे भी बड़ा खतरा दिल को होता है। यह अतिरिक्त कैल्शियम और फॉस्फोरस मिलकर क्रिस्टल बन जाते हैं और धमनियों (Arteries) में जम जाते हैं। इससे धमनियां कठोर हो जाती हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ता है और हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
फॉस्फोरस को कंट्रोल कैसे करें?
इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट पर ध्यान देना सबसे जरूरी है। पैकेज्ड फूड्स से बचें और घर का खाना खाएं। डॉक्टर की सलाह पर ‘फॉस्फेट बाइंडर्स’ नाम की दवाएं दी जाती हैं, जो खाने के साथ ली जाती हैं। ये दवाएं फॉस्फोरस को आंत में ही रोक देती हैं ताकि वह खून में न मिल सके।
जो मरीज डायलिसिस पर हैं, उनका फॉस्फोरस काफी हद तक निकल जाता है, लेकिन सिर्फ डायलिसिस काफी नहीं है। इसलिए डाइट और बाइंडर्स दोनों जरूरी हैं।
क्या है क्रॉनिक किडनी डिजीज?
किडनी हमारे शरीर का फिल्टर हैं, जो खून को साफ करने के साथ-साथ नमक और पानी का संतुलन भी बनाती हैं। क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) एक ऐसी स्थिति है जिसमें किडनी धीरे-धीरे अपनी फिल्टर करने की ताकत खो देती है। यह बीमारी अचानक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे बढ़ती है और फॉस्फोरस का बढ़ना इसी बीमारी का एक खतरनाक लक्षण है, जिसके शुरुआत में कोई लक्षण नहीं दिखते।
मुख्य बातें (Key Points):
- क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) के मरीजों के लिए हाई फॉस्फोरस ‘साइलेंट किलर’ है।
- यह हड्डियों से कैल्शियम खींचकर उन्हें कमजोर करता है और धमनियों में जमकर हार्ट अटैक का खतरा बढ़ाता है।
- इसके शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते, इसलिए इसे ‘साइलेंट किलर’ कहते हैं।
- इसे डाइट, फॉस्फेट बाइंडर्स (दवा) और डायलिसिस से कंट्रोल किया जाता है।






