Parliamentary Committees : केंद्र सरकार संसदीय स्थायी समितियों (Parliamentary Standing Committees) के कार्यकाल में बड़ा बदलाव करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। अब तक इन समितियों का कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता है, लेकिन सरकार इसे बढ़ाकर दो वर्ष करने पर विचार कर रही है। यदि यह प्रस्ताव मंजूर होता है, तो मौजूदा सत्र से ही समितियों का कार्यकाल दो साल का हो जाएगा।
सरकार का मानना है कि यह कदम संसदीय कामकाज की निरंतरता बनाए रखने और विधेयकों व नीतिगत रिपोर्टों की गहन जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। वर्तमान प्रणाली में हर साल पुनर्गठन की वजह से कई महत्वपूर्ण विषयों पर अध्ययन अधूरा रह जाता है। यही कारण है कि इस बार स्थायी समितियों की अवधि बढ़ाने की मांग पर गंभीर चर्चा चल रही है।
मौजूदा स्थिति और चुनौतियां : वर्तमान संसदीय स्थायी समितियां लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सांसदों से मिलकर बनती हैं। इनका काम मंत्रालयों से जुड़े विधेयकों और नीतियों की जांच करना होता है। फिलहाल इनका कार्यकाल केवल एक वर्ष का है, जिसके बाद पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में इस प्रस्ताव पर चर्चा चल रही है। हालांकि, कुछ व्यावहारिक चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। उदाहरण के लिए, राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह (कांग्रेस), जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं, अगले साल जून में सेवानिवृत्त होंगे। वहीं, बीजेपी के भुवनेश्वर कालिता और समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव भी आने वाले वर्षों में रिटायर होंगे। इन परिस्थितियों के बावजूद, सरकार इस सुधार को लागू करने के पक्ष में है।
शशि थरूर को बड़ा फायदा : इस बदलाव से सबसे अधिक लाभ कांग्रेस सांसद शशि थरूर को मिल सकता है। वे वर्तमान में विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति (Standing Committee on External Affairs) के अध्यक्ष हैं। यह जिम्मेदारी उन्हें सितंबर 2024 में मिली थी। उल्लेखनीय है कि यह पिछले पांच वर्षों में कांग्रेस को मिली पहली बड़ी विदेश नीति समिति की अध्यक्षता है।
थरूर पहले भी 2014 से 2019 के बीच इसी समिति की कमान संभाल चुके हैं। हाल के महीनों में कांग्रेस नेतृत्व के साथ मतभेदों के बावजूद, केंद्र सरकार ने उनकी भूमिका में कोई बदलाव नहीं किया। मई 2025 में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल के लिए कांग्रेस द्वारा नाम न सुझाने पर भी सरकार ने उन्हें ही नेतृत्व सौंपा। यह घटना उनके महत्व और विश्वसनीयता को और मजबूत करती है।
थरूर ने इस प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि यह कदम संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करेगा और विदेश नीति जैसे अहम मामलों पर गहन कार्य करने का अवसर देगा।
मामले की पृष्ठभूमि : संसदीय स्थायी समितियां भारतीय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन्हें 1993 में विधायी प्रक्रियाओं को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इन समितियों का काम केवल विधेयकों की समीक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि मंत्रालयों की नीतियों और कामकाज पर गहराई से नजर रखना भी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हर साल होने वाला पुनर्गठन समितियों के कामकाज को प्रभावित करता है, जिससे कई अहम रिपोर्ट अधूरी रह जाती हैं। यही वजह है कि अब दो साल का कार्यकाल अधिक व्यावहारिक और प्रभावी माना जा रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
-
केंद्र सरकार संसदीय स्थायी समितियों का कार्यकाल एक से बढ़ाकर दो साल करने की तैयारी कर रही है।
-
मौजूदा कार्यकाल 26 सितंबर को समाप्त हो रहा है, इस बार विस्तार का प्रस्ताव लागू हो सकता है।
-
शशि थरूर को विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष पद पर स्थिरता और लाभ मिलेगा।
-
सुधार से समितियों के कामकाज में निरंतरता आएगी और गहन जांच आसान होगी।






