Kashmir Issue Diplomacy – जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की पाकिस्तान (Pakistan) की रणनीति को भारत (India) ने कूटनीतिक जवाब देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। पाकिस्तान हर बार संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश करता है और तुर्की (Turkey), ईरान (Iran) और मलेशिया (Malaysia) जैसे इस्लामिक देशों का समर्थन लेने की कोशिश करता है। अब भारत ने इस रणनीति को विफल करने के लिए ईरान को साधने की योजना बनाई है।
बीते सप्ताह ईरान के सुप्रीम काउंसिल फॉर कल्चरल रिवॉल्यूशन (Supreme Council for Cultural Revolution) के सेक्रेटरी अब्दुल हुसैन खोसरो पाना (Abdol Hossein Khosrow Panah) भारत के दौरे पर रहे। उन्होंने कई भारतीय अधिकारियों और सांस्कृतिक संगठनों से मुलाकात की। इस दौरे को भारत की एक सोची-समझी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य ईरान की राय को कश्मीर मुद्दे पर तटस्थ बनाना है।
ईरान के शीर्ष नेता के करीबी का भारत दौरा क्यों अहम?
अब्दुल हुसैन खोसरो पाना को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई (Ayatollah Ali Khamenei) का करीबी माना जाता है। खामेनेई ने पिछले साल कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति को लेकर बयान दिया था, जिससे भारत असहज हो गया था। अब उनके करीबी नेता का भारत में एक सप्ताह तक रुकना एक बड़े कूटनीतिक प्रयास का संकेत है।
सूत्रों का कहना है कि अब्दुल हुसैन के माध्यम से भारत ईरान के शीर्ष नेतृत्व तक यह संदेश पहुंचाना चाहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत के लिए ईरान का समर्थन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इस्लामिक दुनिया में प्रभावशाली भूमिका निभाता है।
भारत को क्यों चाहिए ईरान का समर्थन?
बीते वर्षों में तुर्की और मलेशिया कई बार संयुक्त राष्ट्र (UN) के मंच पर कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन जब ईरान जैसे भारत के मित्र देश के सर्वोच्च नेता ने भी इस पर टिप्पणी की, तो यह भारत के लिए एक नई चुनौती बन गई। माना जा रहा है कि भारत ने इसी को ध्यान में रखते हुए यह रणनीति अपनाई है ताकि ईरान इस मसले पर तटस्थ रहे और पाकिस्तान के पक्ष में बयान न दे।
क्या इस दौरे से बदलेगा ईरान का रुख?
अब्दुल हुसैन खोसरो पाना के भारत दौरे का एक बड़ा उद्देश्य यही था कि ईरान की सरकार को कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के प्रभाव से दूर रखा जाए। भारत ने उन्हें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया, साथ ही उन्होंने ताजमहल (Taj Mahal) और राजघाट (Rajghat) का भी दौरा किया। यह दौरा सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए था, लेकिन इसके पीछे असली रणनीति कश्मीर पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करना था।
भारत ने खामेनेई के बयान पर जताई थी आपत्ति
सितंबर 2023 में अयातुल्लाह खामेनेई ने कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता जताई थी, जिससे भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। भारत ने स्पष्ट किया था कि खामेनेई को गलत जानकारी दी गई है और उनकी टिप्पणी अस्वीकार्य है। भारत ने तब भी कहा था कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है और इसमें किसी अन्य देश के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
क्या पाकिस्तान की लॉबिंग होगी फेल?
अगर ईरान कश्मीर के मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाता है और पाकिस्तान के समर्थन से पीछे हटता है, तो यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मसले को उठाने में और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
भारत का यह कूटनीतिक प्रयास पाकिस्तान की लॉबिंग को कमजोर करने के लिए एक अहम कदम है। अगर ईरान का रुख बदला तो तुर्की और मलेशिया जैसे देशों पर भी असर पड़ सकता है। अब देखना यह होगा कि ईरान इस पर क्या रुख अपनाता है और क्या भारत की यह रणनीति सफल होती है।