मोन किलिंग मामले से जुड़े दो पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग बेंच में सुनवाई,

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मोन किलिंग

नई दिल्ली, 31 जुलाई (The News Air): 2021 मोन नरसंहार मामले से जुड़े दो अलग-अलग पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग बेंच में सुनवाई होगी। पूरा मामला नागालैंड में दिसंबर 2021 में सामने आया था। इसमें सेना के कथित असफल अभियान के दो पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग पीठ सुनवाई कर रही। यह मामला काफी पेचीदा हो गया है। पहली पीठ राज्य पुलिस की ओर से सेना के जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को चुनौती दे रही याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। दूसरी पीठ केंद्र की ओर से आरोपियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने को चुनौती देने वाली राज्य की याचिका पर सुनवाई कर रही है।

क्या है पूरा मामला

जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ इस ऑपरेशन में शामिल सेना के जवानों की पत्नियों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें नागालैंड पुलिस की ओर से एफआईआर दर्ज करने को चुनौती दी गई थी। जुलाई 2022 में पीठ ने 21 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) की अल्फा टीम के जवानों के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि एफआईआर केंद्र की सहमति के बाद ही दर्ज की जानी चाहिए थी।

6 अगस्त तक सुनवाई स्थगित

जस्टिस विक्रम नाथ मंगलवार को इस दलील से सहमत नहीं हुए कि उनकी पीठ को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। नागालैंड के महाधिवक्ता केएन बालगोपाल ने यह कहते हुए सुनवाई स्थगित करने की मांग की कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। अचानक हुई इस घटना से पीठ नाराज हो गई। पीठ ने कहा कि राज्य के महाधिवक्ता को सुनवाई शुरू होने पर ही अपनी अस्वस्थता के बारे में अदालत को सूचित करना चाहिए था। हालांकि, पीठ सुनवाई 6 अगस्त तक के लिए स्थगित करने को तैयार हो गई।

4 दिसंबर 2021 को मोन जिले का मामला

15 जुलाई को CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने नागालैंड की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। इस याचिका में 4 दिसंबर, 2021 को मोन जिले में उग्रवादियों पर घात लगाने के एक असफल अभियान में 13 नागरिकों की हत्या के लिए राज्य पुलिस की ओर से दर्ज की गई एफआईआर में नामित 30 सैन्यकर्मियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने को चुनौती दी गई थी।

दो अलग-अलग मामलों के लिए दो बेंच

जब जस्टिस नाथ के नेतृत्व वाली पीठ ने एफआईआर दर्ज करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, तो बालगोपाल ने कहा कि दोनों पीठों में से केवल एक को ही दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करनी चाहिए, क्योंकि ये एक ही घटना से संबंधित हैं। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि अभियोजन के लिए मंजूरी देने से इनकार करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली नागालैंड की रिट याचिका में एक ऐसे मुद्दे का जिक्र है जो इस पीठ के समक्ष विचाराधीन मामले से बिल्कुल अलग है। अहमदी ने कहा कि हम एफआईआर दर्ज करके अभियोजन शुरू करने के तरीके पर ही सवाल उठा रहे हैं।

इस पीठ ने पिछली सुनवाई के दौरान अपनी प्रथम दृष्टया राय व्यक्त की थी कि एफआईआर को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि इसके रजिस्ट्रेशन के लिए कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी। अहमदी ने नागालैंड पर CJI के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष रिट याचिका में तथ्यों को छिपाने का भी आरोप लगाया। इस याचिका में अभियोजन के लिए मंजूरी देने से इनकार करने के केंद्र सरकार के एक साल से भी अधिक पुराने फैसले को चुनौती दी गई थी। उन्होंने कहा, ‘इस पीठ की ओर से पारित किसी भी अंतरिम आदेश को रिट याचिका के साथ संलग्न नहीं किया गया था, जिसमें एफआईआर और सेना के जवानों के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक लगाने वाला आदेश भी शामिल है, जबकि जमाकर्ता को घटनाक्रम की पूरी जानकारी थी।’

जस्टिस नाथ ने कहा कि भले ही पीठ एफआईआर रद्द कर दे, लेकिन अगर नागालैंड सरकार CJI के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष सफल हो जाती है तो ऐसे में नए सिरे से मुकदमा चलाया जा सकता है। हालातों को अपने पक्ष में नहीं पाकर नागालैंड के महाधिवक्ता केएन बालगोपाल ने यह कहते हुए सुनवाई स्थगित करने की मांग की कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है।

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