नई दिल्ली (The News Air): मानवता के सच्चे हितैषी, सामाजिक समरसता के द्योतक यदि किसी को माना जाए तो वे थे संत गाडगे। आधुनिक भारत के महापुरुषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें से एक राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा (Gadge Maharaj Birth Anniversary) है। आज गाडगे बाबा की 146 वीं जयंती है। वे कहते थे कहते थे कि शिक्षा बड़ी चीज है। संत गाडगे महाराज ने अंधविश्वास से बर्बाद हुए समाज को सार्वजनिक शिक्षा और ज्ञान प्रदान किया।
संत गाडगे महाराज का कहना था कि ‘पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरत के लिए कम दाम के कपड़े खरीदो, टूटे-फूटे मकान में रहो पर बच्चों को शिक्षा दिए बिना न रहो।’ उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। उन्होंने सभी को पढाई करने के लिए प्रोत्साहित किया।
जन्म
बाबा गाडगे का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक धोबी परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था। वह एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे। गाडगेबाबा सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर और पैरों में फटी हुई चप्पल पहनकर पैदल ही यात्रा किया करते थे। और यही उनकी पहचान थी।
शैक्षणिक संस्थानों सहित कई सामाजिक कार्य
गाडगे बाबा स्वैच्छिक गरीबी में रहते थे और अपने समय के दौरान सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और विशेष रूप से स्वच्छता से संबंधित सुधारों की शुरुआत करने वाले विभिन्न गांवों में घूमते रहे। गांव में प्रवेश करते ही वह तुरंत नाले और सड़कों की सफाई शुरू कर देते थे। उसके काम के लिए, ग्रामीण उसे पैसे देते थे। जिनका इस्तेमाल वे शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, धर्मशालाओं और पशु आश्रयों के निर्माण के लिए करते थे।
गाडगे महाराज ने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख मांग-मांग कर बनवाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई। गाडगे महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायी थे। गाडगे बाबा ने पंढरपुर में अपने छात्रावास का भवन भी पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी को दान कर दिया था, जिसकी स्थापना डॉ आंबेडकर ने की थी।
पशु बलि बंद करने का आह्वान
उन्होंने लोगों से पशु बलि बंद करने का आह्वान किया और शराब के सेवन के खिलाफ अभियान चलाया। वे कहा करते थे कि तीर्थों में पंडे, पुजारी सब भ्रष्टाचारी रहते हैं। यही नहीं, नशाखोरी, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों तथा मजदूरों व किसानों के शोषण के भी वे प्रबल विरोधी थे। संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी प्रचलित है, पर संत गाडगे इसके प्रबल विरोधी थे।
मृत्यु
मानवता के महान उपासक संत गाडगे बाबा 20 दिसंबर 1956 में ब्रह्मलीन हुए। उन्हें प्रसिद्ध संत तुकडोजी महाराज ने श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी एक पुस्तक की भूमिका में उन्हें मानवता के मूर्तिमान आदर्श के रूप में निरूपित कर उनकी वंदना की। संत गाडगे द्वारा स्थापित ‘गाडगे महाराज मिशन’ आज भी समाज सेवा में रत है।