कैप्टन के एक चेहरे को छुपाने के लिए कांग्रेस के दिल्ली दरबार से पंजाब में पांच चेहरे उतार कैप्टन के चेहरे पर जो पंच मारा है वह चोट चेहरे से ज्यादा दिल पर लगी मालूम होती है। एक चेहरे को पीछे करने के लिए पांच चेहरे वाले प्रधान ने दल बल सहित पंजाब की कमान भले ही विधिवत संभाल ली हो पर रूठते मनाते समझते समझाते चेहरों के बीच कैसे जगह बना पाएंगे यह वक्त का आईना ही बता पाएगा?
दिल्ली दरबार का दिल जीत पंजाब कांग्रेसियों के घर-घर घूमते मौजूद प्रधान सबको अपने छाते तले खड़ा करने का जो प्रयास कर रहे हैं, उसमें उन्हें कामयाबी मिलेगी या नहीं यह राजनीति के पंडित भी स्पष्ट नहीं कह पा रहे। द्वारे द्वारे बांह पसारे सिद्धू का प्रेम मिलन कांग्रेस परिवार को एक कर पाएगा या नहीं? जितने दरवाजे पर गए प्रधान उतने ही पद बांटने का वायदा ये खुशी है या मजबूरी लाजमी है। जिस दरवाजे कैप्टन विरोधी स्वर निकले वहां पहुंच सिद्धू सुर में सुर मिला उस आवाज को अंजाम तक पहुंचाने की ललकार भरी। किसी को अपनी बनने वाली सरकार में पहला मंत्री बनाने की बात कही तो किसी को अध्यक्ष पद देने का भरोसा।
उधर पांच नदियों वाले पंजाब में पांच मुंह वाले प्रधानों की सेना के सेनापति बने सिद्धू के लिए चुनाव मैदान में हाथ को मजबूत कर सियासी समर जीत पाएंगे या झाड़ू के मुकाबले तिनका तिनका बिखरा देंगे। कैप्टन को दिल्ली दरबार से हार भले ही मिली हो पर कैप्टन को हारा हुआ कोई मानने को तैयार नहीं। कैप्टन के तरकस में छुपे तीर धारदार हैं और वार करने को बेताब भी, खाका बनाया जा रहा है। कैप्टन बनाम सिद्धू का रण कारण कुर्सी कब्जाने से खत्म नहीं हुआ, बल्कि और उग्र हो गया है। कांग्रेसी जुबानी जंग अब निर्णायक रंग लेकर सामने आएगी, जहां नए प्रधान साथियों के साथ हाथ से हाथ मिला पंजे की उंगलियों को मजबूत बना चुनावी वैतरणी पार करने की चाल चल रहे हैं, वहीं कैप्टन की कांग्रेसी सेना सिद्धू को मझधार में रोके रखने का मंसूबा बनाए हुए हैं। “ये युद्ध नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए” कांग्रेस कांग्रेस से लड़कर जब फैसला कर लेगी तो आगामी चुनाव की तैयारी में जुट जाएगी वैसे चुनाव की तैयारी कांग्रेसियों से ज्यादा पीके भरोसे है। कुर्सी जो मिली है उसे कुछ पास से कुछ दूर से निहार रहे हैं तो कुछ रोड़ा बन खड़े हैं। कांग्रेसी संग्राम में “कब्जा कुर्सी का” सबसे पहले हैं।
कुर्सी किसकी होगी यह सवाल जब साफ तो सत्ता किसकी होगी यह सवाल हवा में तैरने लगा है। चुनाव में अभी वक्त है कैप्टन अभी सत्ता का शीर्ष है। सत्ता और संगठन के बीच खिंची तलवारों से पंजाब का मुद्दा, पंजाब का विकास, पंजाब की उम्मीद घायल है। जो सवाल ठोकते रहे सिद्धू वो इतिहास की बात हो गई नई बात तो यह है कि दिल्ली के दम पर कैप्टन को चारों खाने चित कर प्रधान बनने वाले सिद्धू क्या कांग्रेस की डूबती नाव के खेवनहार बन पाएंगे या नाव में छेद करने वाले साबित हो मझधार में छोड़ जाएंगे? पंजाब की नजरें दोनो कुर्सीबाजों पर आ टिकी हैं आखिरी फैसला आखिर जनता को ही करना है और ये पब्लिक है ये सब जानती है।