Delhi High Court on abortion for rape victims – दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें राजधानी दिल्ली (Delhi) के अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों को निर्देश दिया गया है कि वे बलात्कार (Rape) की पीड़िताओं, खासकर नाबालिगों (Minor Girls), से गर्भपात (Abortion) के लिए पहचान पत्र (ID Proof) मांगने से बचें। अदालत ने कहा कि ऐसी पीड़िताएं पहले ही अत्यधिक मानसिक और भावनात्मक दबाव में होती हैं, और उनसे पहचान पत्र की मांग करके उनकी स्थिति को और कठिन न बनाया जाए।
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा (Justice Swarana Kanta Sharma) की एकल पीठ ने यह टिप्पणी 29 मई के अपने आदेश में दी। कोर्ट ने कहा कि यौन हिंसा (Sexual Violence) की शिकार महिलाओं और लड़कियों से जुड़े मामलों में अस्पतालों को अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होना चाहिए। अदालत ने कहा कि पहचान पत्र की अनिवार्यता, मेडिकल जांच जैसे अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) में देरी, और अस्पष्ट प्रक्रियाएं पीड़िता की परेशानी को और बढ़ा देती हैं।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पीड़िता जांच अधिकारी (Investigating Officer) के साथ आती है या अदालत अथवा बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee – CWC) के निर्देश पर लाई जाती है, तो अस्पतालों द्वारा अल्ट्रासाउंड या अन्य आवश्यक मेडिकल जांच के लिए पीड़िता का ID प्रूफ नहीं मांगा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में जांच अधिकारी की पहचान ही पर्याप्त मानी जाएगी।
अदालत एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने चिकित्सीय गर्भपात की मांग की थी। इस सुनवाई के दौरान अदालत ने सभी हितधारकों को निर्देश दिए कि यौन उत्पीड़न के मामलों में, जहां पीड़िता गर्भवती हो, वहां प्रक्रिया में स्पष्टता और समानता होनी चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि सभी मामलों में संबंधित डॉक्टर और अस्पताल बिना किसी देरी के व्यापक मेडिकल जांच करें। साथ ही, जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी हो कि वह पीड़िता की पहचान सुनिश्चित करे और जब पीड़िता को डॉक्टर, अस्पताल या मेडिकल बोर्ड (Medical Board) के सामने पेश किया जाए, तब आवश्यक दस्तावेज और केस फाइल साथ हों।
इस आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि जब बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो, तो मेडिकल बोर्ड का गठन तत्काल किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड को बिना किसी विशेष निर्देश का इंतजार किए आवश्यक जांच करनी चाहिए और शीघ्र ही रिपोर्ट तैयार कर उचित अधिकारियों को सौंपनी चाहिए।
अंत में कोर्ट ने निर्देश दिया कि गर्भपात के लिए सहमति पीड़िता या उसके अभिभावक से उनकी स्थानीय भाषा (Local Language) में ली जाए, जिससे वे प्रक्रिया को पूरी तरह समझ सकें। अदालत ने इस पूरे मामले को संवेदनशीलता, व्यावहारिकता और कानूनी जिम्मेदारी से जोड़ते हुए एक मिसाल पेश की है, जो भविष्य में इस तरह के मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है।