HDFC Bank में HDFC का मर्जर होने जा रहा है। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने सोमवार को इसका ऐलान किया। उन्होंने इसे दो बराबर कंपनियों का मर्जर करार दिया। मर्जर के बाद एचडीएफसी बैंक का बाजार पूंजीकरण (Market Cap of HDFC Bank) 12.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होगा। इसकी बैलेंस शीट 17.9 लाख करोड़ रुपये होगी। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने मनीकंट्रोल से खास बातचीत में मर्जर के बारे में कई अहम बातें बताईं। यहां पेश है इंटरव्यू की मुख्य बातें।
मर्जर पूरा होने के बाद क्या एचडीएफसी बैंक को कस्टमर्स को लेकर एप्रोच में बदलाव करना पड़ेगा?
हमें दोनों कंपनियों के कल्चर को मर्ज करना पड़ेगा। अब हमारे सभी कर्मचारी एचडीएफसी बैंक के हिस्सा बन जाएंगे। इस दौरान थोड़ी कठिनाई आएगी। अब एचडीएफसी बैंक को हाउसिंग लोन बिजनेस भी संभालना होगा, जो बहुत इमोशनल, पर्सनल और पारिवारिक होता है। इसलिए हमें अपने कस्टमर्स को लेकर बहुत केयरफुल रहना होगा।
यह कितना मुश्किल होगा?
अब अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को पर्सनल लोन देते हैं, जो सट्टेबाजी करता है और जिसे लॉस हो जाता है तो हमें ऐसे कस्टमर्स को लेकर सख्त रहना होगा। अगर कोई कार लोन लेता है और कार लेकर भाग जाता है तो हमें कार पकड़नी होगी। इसलिए बैंक के बिजनेस और मॉर्टगेज फाइनेंस से अलग-अलग तरह की भावनाएं जुड़ी होती है। बैंक को सख्त रुख अपनाना पड़ता है।
आखिर आपने मर्जर का फैसला क्यों किया?
ग्रोथ को देखते हुए हमें ज्यादा रिसोर्सेज की जरूरत थी। अभी तक इंडियन डेट मार्केट विकसित नहीं हो पाया है। एनबीएफसी के लिए पैसे जुटाना आसान नहीं है। इधर, होम लोने की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। इसलिए हमें भी सावधान रहने की जरूरत है।
हमें पांच साल बाद डिस्बर्समेंट के लिए आज ही पूंजी जुटाने की जरूरत है। आज बहुत अच्छी स्थिति में हैं। कल भी हम बहुत अच्छी स्थिति में होंगे। दो साल बाद भी हमारी स्थिति अच्छी होगी। लेकिन, उसके बाद क्या होगा, क्योंकि हमारा बिजनेस तो तेजी से बढ़ रहा है। अगले 50 साल तक इंडिया में हाउसिंग डिमांड खत्म नहीं होने जा रही है।
आरबीआई चाहता है कि एनबीएफसी बैंक बन जाएं, आपकी क्या सोच है?
आरबीआई ने ऐसी पॉलिसी बनाई है, जिसमें बैंकों से एनबीएफसी बनने को कहा जा रहा है। उसने एनबीएफसी के लिए तीन लेयर्स बनाए हैं। पहला यानी अपर लेयर ऐसे बैंकों का है, जिसका एसेट बेस 50,000 करोड़ रुपये है। हमारे पास पांच लाख करोड़ रुपये हैं। हम अपर लेयर में सबसे ऊपर हैं। आरबीआई ने यह भी कहा है कि अपर लेयर एनबीएफसी की निगरानी होगी।
अगर किसी कस्टमर का 4 महीने का ईएमआई बकाया है, लेकिन वह दो इंस्टॉलमेंट का पेमेंट कर देता है तो एनएचबी के तहत हम उसे एनपीए से बाहर कर देते हैं। इसकी वजह यह है कि उसका बकाया 90 दिन से कम का है। बैंकिंग के नियमों के तहत अगर किसी कस्टमर का 4 महीने का ईएमआई बकाया है औ वह 3 महीने का बकाया चुका देता हैं तो भी उसके अकाउं को एनपीए माना जाएगा। हमारा एसेट्स सिक्योरिटी के रूप में होता है।
तो क्या इसका मतलब यह है कि एनबीएफसी के नए नियमों के बाद एचडीएफसी के लिए मर्जर के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था?
ऐसा नहीं है। हम रास्ता निकाल सकते थे। लेकिन, मर्जर के पीछे कई वजहें हैं। इनमें से एक वजह एनबीएफसी के नए नियम भी थे।