Aravali Mining Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली की परिभाषा से बाहर रखा जा सकता है और इस फैसले के बाद पर्यावरणविदों तथा जनता में हाहाकार मच गया है क्योंकि उनका मानना है कि इससे अरावली रेंज का बड़ा हिस्सा खनन से लेकर रियल एस्टेट तक के लिए खुल जाएगा। पहले से ही अवैध खनन का शिकार रही अरावली को बचाने के लिए जनता सड़कों पर उतर रही है और इसे देखते हुए कांग्रेस ने 26 दिसंबर को आंदोलन का एलान किया है जबकि दूसरी तरफ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा बयान दे रहे हैं कि अरावली पूरी तरह सुरक्षित है।
क्या है अरावली और क्यों है महत्वपूर्ण
अरावली की पर्वत श्रृंखला चार राज्यों से गुजरती है जिसमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात शामिल हैं और यह अहमदाबाद के पास जाकर खत्म होती है। माउंट आबू में 1722 मीटर का शिखर इसका सबसे ऊंचा शिखर माना जाता है और अरावली अपनी ऊंचाई के कारण नहीं बल्कि अपने निरंतर विस्तार के कारण एक जरूरी पर्वत श्रृंखला के रूप में जानी जाती है। 3 अरब साल पहले से अरावली बनने लगी थी और माना जाता है कि यह 2 अरब साल से मौजूद है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या कहता है
मई 2024 में तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई ने तय किया कि अरावली में खनन और खनन की याचिकाओं को मिलाकर इस मामले को एक साथ सुना जाए। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई जिसमें वन मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, राज्यों के वन मंत्रालय, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी को शामिल किया गया। 21 नवंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एनवी अंजारिया और जस्टिस के विनोद चंद्रन ने अरावली की परिभाषा पर कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली।
नई परिभाषा क्या है
नई परिभाषा के अनुसार अरावली जिलों में भूमि का वह स्वरूप है जिसकी ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक होगी उसे अरावली की पहाड़ी माना जाएगा। 500 मीटर की दूरी पर दो या दो से अधिक अरावली की पहाड़ियां होंगी तो उसे अरावली रेंज कहा जाएगा।
पर्यावरण मंत्री का दावा
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मात्र 0.19 प्रतिशत हिस्से में ही खनन हो सकती है और बाकी अरावली पूरी तरह सुरक्षित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 100 मीटर का अर्थ टॉप से 100 मीटर नहीं है बल्कि जो पर्वत का बेस स्ट्रक्चर है अगर वो जमीन के अंदर भी 20 मीटर है वहां से लेकर 100 मीटर तक प्रोटेक्शन है। उनके अनुसार टोटल अरावली का एरिया 147000 स्क्वायर किलोमीटर है और केवल 27 वर्ग किलोमीटर यानी 2 प्रतिशत में ही माइनिंग हो सकती है। दिल्ली में कोई भी माइनिंग अलाउड नहीं है और 20 से ज्यादा फॉरेस्ट रिजर्व प्रोटेक्टेड एरिया जस का तस रहेंगे।
विशेषज्ञों की चिंता
एक्सपर्ट भूपेंद्र यादव की इस बात से सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जो नई परिभाषा तय हुई उससे अरावली का बड़ा हिस्सा खनन के लिए खुल जाता है। इंडियन एक्सप्रेस के जय मजूमदार ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़ों का विश्लेषण किया है जिसके अनुसार 15 जिलों में 1 लाख से अधिक पहाड़ियों की ऊंचाई 20 मीटर से नीचे है, 20 से 60 मीटर के बीच करीब 20000 से कुछ अधिक पहाड़ियां हैं और 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों की संख्या केवल 1048 है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट
दैनिक भास्कर ने अरावली के इलाके में काम करने वाले पर्यावरणविदों से बात की है और अरावली का दो तिहाई हिस्सा राजस्थान से गुजरता है जहां 1 हजार पहाड़ियां हैं। इनका कहना है कि 25 प्रतिशत अरावली पहले ही तबाह हो चुकी है और 90 प्रतिशत पहाड़ियां नई परिभाषाओं से बाहर हो सकती हैं यानी जहां खुलकर खनन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर विवाद
अफसोस की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पूरी तरह बैन लगा देंगे तो अवैध रूप से खनन होने लग जाएगा और इससे भूमाफिया खनन माफिया पैदा हो जाएंगे तथा अपराध बढ़ जाएगा। इस बात के लिए कोर्ट की आलोचना हो रही है क्योंकि अवैध खनन नहीं रुक सकता तो खनन की इजाजत दे दी जाए यह तर्क उचित नहीं लगता।
अवैध खनन का भयावह इतिहास
अरावली में अवैध खनन का इतिहास बहुत पुराना है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने पाया कि 50 वर्षों के भीतर अरावली की 128 में से 31 पहाड़ियां हमेशा के लिए खत्म हो गई हैं। अवैध खनन और डायनामाइट के इस्तेमाल से इन पहाड़ियों का नामोनिशान मिटा दिया गया और इनकी जगह दिल्ली की रिज में खाली गैप पैदा हो गए जहां से थार के रेगिस्तान की मिट्टी दूसरी तरफ आने लगी।
पीपल फॉर अरावली की रिपोर्ट
इसी साल मई के महीने में पीपल फॉर अरावली नाम के संगठन ने हरियाणा सरकार और पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें बताया गया कि लाइसेंस प्राप्त खनन ने सात में से दो जिलों में अरावली को समाप्त कर दिया है। चरखी दादरी और भिवानी में लाइसेंस प्राप्त खनन से यह हालत हुई है और 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने से पहले गुरुग्राम, नूह और फरीदाबाद के इलाकों में अवैध खनन ने अरावली को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
राजस्थान में अवैध खनन के आंकड़े
2020 से लेकर अब तक अकेले राजस्थान में अरावली में अवैध खनन को लेकर 2096 मामले पकड़े जा चुके हैं और यह सवाल उठ रहा है कि क्या माफियाओं के आगे सरकारी सिस्टम इतना लाचार हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बयान जारी किया है कि 2010 में 16 फरवरी को एफिडेविट दिया गया था और तीन दिन में ही 19 तारीख को 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर की रेंज को खारिज कर दिया था। उनका सवाल है कि 2024 में उसी परिभाषा को जो खारिज हो चुकी थी भाजपा की स्टेट गवर्नमेंट की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए ले गई और दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट ने उसको एक्सेप्ट कर लिया।
डीपी युद्ध छिड़ा
अशोक गहलोत ने ट्विटर पर अपनी तस्वीर हटाकर सेव अरावली का स्टीकर लगा दिया और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी जवाब में अरावली सेफ नाम से स्टीकर लगा दिया। गहलोत ने कहा कि सिर्फ सेव अरावली डीपी बदलने से काम नहीं चलता काम चलता है दृढ़ इच्छाशक्ति से।
वरिष्ठ वकील का विरोध
सुप्रीम कोर्ट की मदद कर रहे वरिष्ठ वकील के परमेश्वर ने अरावली की नई परिभाषा का विरोध किया और उनका कहना था कि 2010 में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने तीन आधार पर अरावली की परिभाषा तय की थी उसे ही मानना चाहिए। उनके अनुसार पहाड़ का स्लोप यानी ढलान 3 डिग्री से अधिक होना चाहिए, पहाड़ी के आसपास 100 मीटर का बफर इलाका होना चाहिए और घाटी की चौड़ाई 500 मीटर होनी चाहिए।
सरकारी चालाकी का खुलासा
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार किसी भी जिले में अरावली उसके छोटे से हिस्से से निकलती है और बाकी सारा जिला तो सपाट मैदान ही होता है। इस वजह से जिले की औसत ढलान 3 डिग्री से कम हो जाती है और इलाका पहाड़ी घोषित होने के पैमाने में फिट नहीं होता। ऊंचाई के हिसाब से नापने का तरीका भी बदल दिया गया है क्योंकि अगर कोई पहाड़ी 190 मीटर ऊंची है और समुद्र तल से जिले की ऊंचाई 100 मीटर है तो पहाड़ी को 90 मीटर का माना जाएगा जबकि पहाड़ी को उसके आसपास की जमीन से नापा जाता है।
अडानी मामले में जज का तबादला
स्क्रोल की रिपोर्ट के अनुसार जयपुर कमर्शियल कोर्ट के जज दिनेश कुमार गुप्ता ने फैसला दिया कि अडानी की कंपनी ने सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर राजस्थान सरकार से 1400 करोड़ की कीमत वसूल ली जो गलत वसूली गई। 2007 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को छत्तीसगढ़ के हसदेव के जंगलों में कोयले के खनन के लिए एक ब्लॉक आवंटित किया गया था और इस निगम ने अडानी ग्रुप के साथ साझेदारी की। अडानी समूह को खदान से लेकर मेन रेलवे लाइन तक की एक कनेक्टिंग लाइन बनानी थी जो कई साल तक नहीं बनाई गई। जज ने अडानी की कंपनी पर 50 लाख का जुर्माना लगाया और डील के सीएजी द्वारा ऑडिट के आदेश दिए। जिस दिन जज ने यह फैसला सुनाया उसी दिन हाईकोर्ट ने उनका तबादला कर दिया और दो हफ्ते बाद हाईकोर्ट ने जज दिनेश कुमार गुप्ता के इस फैसले पर रोक लगा दी।
नूह में सफारी पार्क विवाद
2022 से हरियाणा के नूह में सफारी पार्क बन रहा है जिसे लेकर 30 से अधिक वन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी और पर्यावरण मंत्री को भी पत्र लिखा है।
अखिलेश यादव का पत्र
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दिल्ली की जनता के नाम पत्र लिखा है जिसमें कहा है कि अरावली को बचाना दिल्ली के भविष्य को बचाना है नहीं तो एक-एक सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे दिल्ली वासी स्मोग जैसे जानलेवा हालात से कभी बाहर नहीं आ पाएंगे। आज एनसीआर के बुजुर्ग, बीमार और बच्चों पर प्रदूषण का सबसे खराब और खतरनाक असर पड़ रहा है और यहां का विश्व प्रसिद्ध हॉस्पिटल और मेडिकल सर्विस सेक्टर तक बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
रियल एस्टेट का नया खतरा
अरावली के जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए नया क्षेत्रीय प्लान बन रहा है और नई परिभाषा का इस्तेमाल अरावली की कीमत पर रियल एस्टेट का नया धंधा खड़ा करने में होगा। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सेवानिवृत्त वन संरक्षक आरपी बलवान का कहना है कि गुरुग्राम और फरीदाबाद के 90 से 95 प्रतिशत क्षेत्र इस परिभाषा के कारण खुल जाएंगे और पहाड़ियों को काटा जाने लगेगा।
हरियाणा के सेवानिवृत्त वन अधिकारी का बयान
हरियाणा के एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी एमडी सिन्हा का बयान अखबार में छपा है कि ऊंचाई से अरावली को तय करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह तार्किक भी नहीं है। उनका कहना है कि इसी सुप्रीम कोर्ट ने पहले परिभाषित करने से इंकार कर दिया था और इसकी निरंतरता को ही अरावली का लक्षण माना था जो दिल्ली से लेकर गुजरात तक फैली हुई है।
आम जनता पर असर
इस फैसले का सीधा असर दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों पर पड़ेगा क्योंकि अरावली थार के रेगिस्तान की धूल और गर्म हवाओं को रोकने का काम करती है। अगर अरावली की पहाड़ियां कटती रहीं तो प्रदूषण और भी बढ़ेगा, भूजल स्तर और गिरेगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और तीव्र होंगे।
क्या है पृष्ठभूमि
अरावली को लेकर दशकों से कानूनी लड़ाईयां चल रही हैं और सुप्रीम कोर्ट से ही अरावली को संरक्षण मिला है। अरावली के लिए लड़ने वालों ने दशकों कानूनी लड़ाईयां लड़ी तब जाकर यह संरक्षण हासिल हुआ था। अब सुप्रीम कोर्ट के इसी नए आदेश से खतरा लगने लगा है। जब सारे कानून थे तब भी सब सरकारों और जांच एजेंसियों की आंखों के सामने अरावली का खनन करके उसे अधमरा कर दिया गया और अब अगर 100 मीटर की परिभाषा लागू होगी तो अरावली को कानून के सहारे मिटा दिया जाएगा।
मुख्य बातें (Key Points)
- सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली की परिभाषा से बाहर रखने का फैसला दिया है जिससे 90 प्रतिशत पहाड़ियां खनन के लिए खुल सकती हैं।
- पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आरोप है कि यही परिभाषा 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी लेकिन 2024 में भाजपा सरकार की सिफारिश पर स्वीकार कर ली गई।
- 50 वर्षों में अरावली की 128 में से 31 पहाड़ियां पहले ही खत्म हो चुकी हैं और 2020 से अब तक राजस्थान में अवैध खनन के 2096 मामले पकड़े गए हैं।
- कांग्रेस ने 26 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का एलान किया है जबकि पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का दावा है कि अरावली पूरी तरह सुरक्षित है और केवल 2 प्रतिशत क्षेत्र में खनन हो सकती है।






