फसल कटाई के बाद के कार्यों में पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी (पीपीपी) का अर्थ है पिछले दरवाजे से किसान विरोधी 3 कृषि कानूनों का प्रवेश
वित्त मंत्री का “विदेशी साझेदारों” का उल्लेख देश की संप्रभुता को कमजोर करता है
उधार कम करने की घोषणा देश की आर्थिक कमज़ोरी का संकेत
16 फरवरी 2024 के ग्रामीण बंद और औद्योगिक/क्षेत्रीय हड़ताल को सफल बनायें
नई दिल्ली, 1 फरवरी (The News Air) वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा रखे गए प्रस्ताव कृषि, रोजगार सृजन और लोगों के समग्र विकास के लिए खतरनाक हैं। बजट में कृषि क्षेत्र में उल्लेखित “एकत्रीकरण, आधुनिक भंडारण, कुशल आपूर्ति श्रृंखला, प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण और विपणन और ब्रांडिंग सहित फसल कटाई के बाद की विविध गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने” का प्रस्ताव कृषि क्षेत्र को घरेलू और विदेशी कॉर्पोरेट घराने को एक थाली में परोसने के अलावा और कुछ नहीं है। आजादी के बाद से अब तक भारत सरकार ने मुनाफाखोरी के लिए कृषि को विदेशी और भारतीय इजारेदार पूंजी के लिए न खोलने की नीति अपनाई है और इससे देश की आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिली है।
सार्वजनिक क्षेत्र, सहकारी समितियों और एमएसएमई को मजबूत करने के बजाय, कॉर्पोरेट एकाधिकार घरानों को फसल कटाई के बाद के कार्यों को अपने हाथ में लेने की अनुमति देना एक नीतिगत बदलाव है और यह उन 3 काले कृषि कानूनों की पिछले दरवाजे से प्रवेश के समान है, जिन्हें मोदी सरकार को दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष के दबाव के कारण रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। एसकेएम इस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करेगा और सुनिश्चित करेगा कि इस प्रस्ताव को लागू नहीं किया जाएगा।
बजट प्रस्ताव में कहा गया है : “2024-25 के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से सकल और शुद्ध बाजार उधार क्रमशः 14.13 लाख करोड़ रुपए और 11.75 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। ये दोनों वर्ष 2023-24 से कम होंगे।” केंद्र सरकार द्वारा कम उधारी – अर्थव्यवस्था की गंभीर कमजोरी का संकेत देती है, विशेष रूप से आईएमएफ की हालिया चेतावनी के संदर्भ में कि यदि उधारी की यही दर जारी रही, तो भारत 100% ऋण-जीडीपी अनुपात को पार कर जाएगा। वर्ष 2014-15 में भारत की शुद्ध देनदारी 56 लाख करोड़ रुपए थी, जो वर्ष 2022-23 में 161 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यह पिछले दस वर्षों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के घोर कुप्रबंधन को दर्शाता है। हालांकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है, इसके बावजूद मोदी सरकार अमीरों और अति अमीरों पर कर लगाने के लिए तैयार नहीं है और उसने मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट कर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत और कुछ नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 15 प्रतिशत कर दिया है।
वित्त मंत्री ने तर्क दिया है कि “निरंतर विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए, हम ‘पहले भारत विकसित करें’ की भावना के साथ अपने विदेशी भागीदारों के साथ द्विपक्षीय निवेश संधियों पर बातचीत कर रहे हैं। इस प्रस्ताव के अनुसार, कोई भी विदेशी निवेशक भारत में निवेश कर सकता है, विकास कर सकता है और फिर मुनाफा कमाने के लिए काम कर सकता है, अगर वह “एफडीआई” – फर्स्ट डेवलप इंडिया की धारणा को स्वीकार करने के लिए तैयार है। यह एक परेशान करने वाला संदर्भ है, जो एक संप्रभु देश के रूप में भारत की स्थिति को कमजोर करता है, जिसका कोई “विदेशी भागीदार” नहीं है। वित्त मंत्री को यह बताना होगा कि ये “विदेशी साझेदार” कौन हैं और उन्हें इसे बजट भाषण से हटाना होगा।
हालाँकि मोदी सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को एमएसपी@सी2+50% लागू करने का लिखित आश्वासन दिया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है और इस बजट में भी इसकी घोषणा नहीं की गई है। यह किसानों और आम जनता के साथ घोर विश्वासघात है। यद्यपि रोज़गार बहुत गंभीर मुद्दा बन गया है, बजट में रोज़गार सृजन, न्यूनतम वेतन और न्यूनतम समर्थन मूल्य का आश्वासन, ऋण माफी और मूल्य वृद्धि को कम करने के लिए कोई पर्याप्त आबंटन नहीं है। इसमें मनरेगा के लिए उच्च आबंटन करने, 200 कार्य दिवस देने और 600 रुपये दैनिक वेतन निर्धारित करने का कोई उल्लेख तक नहीं है।
इस संदर्भ में, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी बजट के खिलाफ, एसकेएम सभी किसानों से 3 फरवरी 2024 को ग्राम स्तर पर कॉर्पोरेट समर्थक बजट की प्रतियां जलाने की अपील करता है और देश भर के लोगों से 16 फरवरी 2024 को ग्रामीण बंद एवं औद्योगिक/सेक्टोरल हड़ताल सफल बनाने का आग्रह करता है।