– इस बिल से मुख्य चुनाव आयुक्त समेत दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्त केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगी और वो अपनी मर्जी से किसी को भी नियुक्त कर सकती है- राघव चड्ढा
– देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग महत्वपूर्ण संस्था है, जो तय करता है कि कब चुनाव होंगे और कौन सी ईवीएम कहां भेजी जाएंगी- राघव चड्ढा
– ये बिल सुप्रीम कोर्ट का अपमान करता है, संवैधानिक पीठ ने चयन समिति में मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का फैसला दिया था, जिसे पलटकर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है- राघव चड्ढा
– यह बिल भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी का भी अपमान करता है, उन्होंने पीएम, नेता विपक्ष, कानून मंत्री और लोकसभा-राज्यसभा के नेता विपक्ष की पांच सदस्यीय समिति बनाने की वकालत की थी- राघव चड्ढा
– इससे पहले भाजपा की केंद्र सरकार ने दिल्ली सर्विसेज बिल लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा था, जिसके तहत सर्विसेज दिल्ली सरकार के पास आ गया था – राघव चड्ढा
– ये बिल देश के मुख्य न्यायाधीश का अपमान करता है, भाजपा को मुख्य न्यायाधीश से इतना परहेज है कि वो केवल उनको हटाने के लिए यह बिल ला रही है – राघव चड्ढा
– भाजपा की केंद्र सरकार ने इस बिल के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूलभूत भावना को चोट पहुंचाई है- राघव चड्ढा
– इस बिल के जरिए भाजपा देश के लोकतंत्र को हाईजैक करना चाहती है, केंद्र सरकार को यह बिल वापस ले लेना चाहिए- राघव चड्ढा
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (The News Air) आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने मंगलवार को सदन के अंदर मुख्य चुनाव आयुक्त समेत अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादित बिल का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि भाजपा यह बिल लाकर चुनाव आयोग पर कब्जा करना चाहती है। इसके पास होने से मुख्य चुनाव आयुक्त समेत दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगी और वो अपनी मर्जी से किसी का भी चयन कर सकते हैं। राघव चड्ढा ने देश के लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव आयोग की अहमियत बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग ही तय करता है कि देश में कब और कहां चुनाव होंगे, ईवीएम के रख-रखाव और कहां भेजी जाएंगी। उन्होंने कहा, यह बिल सुप्रीम कोर्ट व देश के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी का भी अपमान करता है। आडवानी जी ने भी मुख्य चुनाव आयुक्त की चयन समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, कानून मंत्री और लोकसभा-राज्यसभा के नेता विपक्ष की पांच सदस्यीय समिति बनाने की वकालत की थी। मेरी मांग है कि सरकार को ये बिल वापस ले लेना चाहिए।
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादास्पद बिल का आम आदमी पार्टी के पंजाब से राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने पुरजोर विरोध किया। उन्होंने भाजपा से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या भाजपा देश में निष्पक्ष चुनाव खत्म करना चाहती है? क्या भाजपा की सरकार लोकतंत्र की कोई अहमियत नहीं समझती है? क्या भाजपा के लिए संवैधानिक संस्थाओं की कोई अहमियत नहीं है, क्या भाजपा हर संवैधानिक संस्थान को अपनी कठपुतली बनाना चाहती है? क्या भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं करती है या उसकी कोई अहमियत नहीं समझती है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो यह बिल पढ़ने के बाद खड़े हो रहे हैं। क्योंकि इस बिल के माध्यम से यह सरकार चुनाव आयोग को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। इसपर अपना पूर्ण कब्जा चाहती है। चुनाव आयोग के तीन सदस्यों में से मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त का चयन और नियुक्ति इस बिल के माध्यम से सरकार के हाथों में आ जाएगी और वो जिसको चाहें उसे अपनी मर्जी से चुनाव आयुक्त बना सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे देश के चुनावों में चुनाव आयोग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। किसका वो वोट बनेगा या कटेगा, किस तारीख को और कितने चरण में चुनाव होगा, यह चुनाव आयोग तय करता है। ईवीएम मशीन कहां-कहां भेजी जाएंगी, उसका नियंत्रण, मैनेजमेंट, योग और प्रयोग सब कुछ चुनाव आयोग तय करता है। यह आयोग इस देश में निष्पक्षता से चुनाव कराने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है। यह बिल देश में चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र संस्थान को खत्म कर देगा, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव खतरे में आ जाएगा।
सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि यह बिल तीन व्यक्ति या संस्थान का अपमान करता है। इससे पहला अपमान सुप्रीम कोर्ट का होता है। क्योंकि इसी साल 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग की नियुक्ति में किसी भी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। साथ ही हस्तक्षेप को खत्म करने के लिए एक समिति का गठन किया था। सरकार उस समिति में मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को डालकर उसका संतुलन बिगाड़ रही है। यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश है जिससे ये जिसे चाहें उसे मुख्य चुनाव आयुक्त बना सकते हैं। इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसी साल संवैधानिक पीठ द्वारा सर्वसम्मति से दिए गए दो फैसलों को सरकार ने सदन में बिल लाकर बदल दिया है। पहला दिल्ली सेवा बिल था, जिसे आठ दिन के अंदर ऑर्डिनेंस लाकर और फिर सदन में बिल लाकर बदला गया। इसके बाद अब यह बिल जो सुप्रीम कोर्ट के इस साल के 2 मार्च को दिए गए फैसले को पलटता है। यह सरकार इस बिल के जरिए सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती दे रही है कि आप जो भी फैसला दें, अगर हमें पसंद नहीं आएगा तो हम बिल लाकर उस फैसले को बदल देंगे।
उन्होंने कहा कि इस बिल से दूसरा अपमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला चयन समिति में तीन सदस्यों के होने की बात कहता है। जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और तीसरे खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होंगे। इस बिल के माध्यय से सरकार ने चीफ जस्टिस को हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को चयन समिति का हिस्सा बना दिया गया है। इससे यह साफ होता है कि यह बिल सीधे-सीधे चीफ जस्टिस को समिति से बाहर करने के लिए लाया गया है। इस देश में समय-समय पर चुनाव सुधार के लिए समितियां बनी हैं। जिसमें अधिकांश समितियों ने चाहें वो तारकोंडे कमेटी, दिनेश गोस्वामी कमेटी, वोहरा कमेटी, इंद्रजीत गुप्ता कमेटी, जीवन रेड्डी कमेटी या फिर इसी सरकार की लॉ कमीशन की रिपोर्ट हो, सबने यही निष्कर्ष दिया है कि चीफ जस्टिस को चयन समिति का सदस्य जरूर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बिल के जरिए भाजपा सरकार खुद अपनी पार्टी के संस्थापक सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी का भी अपमान कर रही है। 2 जून 2012 को लाल कृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि देश के चुनावों में चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसकी नियुक्ती पर एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। उसकी नियुक्ति सरकार के हाथों में नहीं होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा था कि यह चयन समिति पांच सदस्यों की होनी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा औ राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और कानून मंत्री होने चाहिए। इससे साफ पता चलता है कि लाल कृष्ण आडवाणी भी चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे, लेकिन इन लोगों ने उनके अधिकार की बात नहीं दी। आज मैं इस सदन में दूसरी बार लाल कृष्ण आडवाणी की बात रखने के लिए खड़ा हुआ हूं। पहला जब उन्होंने जब दिल्ली सेवा बिल पर कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए और आज जब उन्होंने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति स्वतंत्र और निष्पक्ष हो।
सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि आज मुख्यतः तीन कारणों से पूरा विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहा है। पहला कारण है कि यह बिल पूरी तरह से गैरकानूनी है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार को नजरअंदाज करते हुए उसे पलटा नहीं जा सकता है। इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूलभूत भावना को इस बिल के जरिए चोट पहुंचाई है और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को भंग किया है। दूसरा कारण, यह बिल संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात कही गई है। अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं होगा तो चुनाव के नतीजे भी प्रभावित होंगे। इस बिल से पूरी तरह से सरकार के हाथों में चुनाव आयोग का नियंत्रण आ जाएगा। चयन समिति से चीफ जस्टिस को हटाकर कैबिनेट मंत्री को शामिल किए जाने से आयोग में सरकार के दो प्रतिनिधि हो जाएंगे। जिससे 2-1 के बहुमत से सरकार सारे फैसले अपने पक्ष में करा सकती है। इससे एक ऐसी व्यवस्था बनती है, जिससे कि आगे चलकर किसी पार्टी का व्यक्ति भी चुनाव आयुक्त बन सकता है। वो दिन भी दूर नहीं जब भाजपा संबित पात्रा को मुख्य चुनाव आयुक्त बना दे। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का पैरा 9 कहता है कि चयन की यह पूरी प्रक्रिया देश में निष्पक्ष चुनाव की दशा तय करता है। साथ ही पैरा 186 में यह कहता है कि केवल निष्पक्ष चयन होना ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह निष्पक्ष चयन जनता को नजर आना भी जरूरी है।
राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि इस बिल के विरोध का तीसरा कारण यह है कि चयन समिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि सारे फैसले सरकार के पक्ष में होंगे, नेता प्रतिपक्ष को केवल नाम के लिए इसमें जगह दी गई है। यह बिल स्वतंत्रता, निषपक्षता और संवैधानिकता की तीन मुख्य कसौटियों पर फेल होता है। अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं होगा तो चुनाव निष्पक्ष नहीं होगें और इस देश की अस्था इस लोकतंत्र से डगमगा जाएगी।
उन्होंने अंत में कहा कि अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटना चाहती है तो मैं तीन सुझाव देता हूं, अगर सरकार इनमें से किसी एक को भी मान ले तो सारा सदन एक आवाज में आपका समर्थन करेगा। पहला, चुनाव आयोग का गठन दो सदस्यों की समिति करे, जिसमें केवल प्रधामनंत्री और नेता प्रतिपक्ष हों। यह दो सदस्य सर्वसम्मति से फैसला करें। दूसरा, सरकार लाल कृष्ण आडवाणी की पांच सदस्यों की समिति की बात मान सकती है। जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, कानून मंत्री, लोकसभा-राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होंगे। तीसरा, संवैधानिक सभा में प्रो.शिबनलाल सक्सेना का सुझाव है जिसमें उन्होंने कहा था कि चयन समिति जिसे भी चुनेगी, उसे लोकसभा और राज्यसभा से दो तिहाई बहुमत से पास कराना जरूरी होगा। यह बिल इस देश के लोकतंत्र की दिन दहाड़े चोरी है। यह सरकार लोकतंत्र को हाईजैक करना चाहती है। सरकार को इस बिल को वापस लेना चाहिए।