SEBI ने ब्रोकरेज फर्मों को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। उसने उन्हें खुद की बैंक गारंटी (BG) के लिए क्लाइंट्स के फंड्स का इस्तेमाल करने से रोक दिया है। एनालिस्ट्स का कहना है कि मार्केट रेगुलेटर के इस फैसले का नियर टर्म में असर पड़ेगा। उनका कहना है कि इसका ज्यादा असर उन ब्रोकरेज फर्मों पर पड़ेगा जो अपने फायदे के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करती है। केयर रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर संजय अग्रवाल ने कहा कि इसका असर बैंक गांरटी पर पड़ेगा। लेकिन, इंडिया में बैंकिंग सिस्टम के आकार को देखते हुए यह असर मामूली होगा।
एक्सपर्ट्स की राय
IDBI Bank के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर सुरेश किशनचंद खंतहार ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर में जारी होने वाले कुल बैंक गारंटी में स्टॉक ब्रोकर्स की गांरटी की हिस्सेदारी बहुत कम है। इसलिए बैंकिंग सेक्टर पर इसका असर मामूली पड़ने की उम्मीद है। बैंक गारंटी में बैंक डेटर (Debtor) के ऑब्लिगेशन (कर्ज) को समय पर चुकाने की गारंटी देता है। इसका मतलब यह है कि अगर बॉरोअर (Borrower) अपना कर्ज चुकाने में नाकाम रहता है तो बैंक उस कर्ज को चुकाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मार्केट में इश्यू होने वाले कुल बैंक गारंटी में स्टॉक ब्रोकर्स और क्लियरिंग मेंबर्स को इश्यू होने वाली गारंटी की हिस्सेदारी सिर्फ 2.5 फीसदी है।
सेबी के सर्कुलर में क्या है?
सेबी ने अपने सर्कुलर में कहा है कि मई से स्टॉक ब्रोकर्स और क्लियरिंग मेंबर्स (CMs) बैंक गारंटी के लिए क्लाइंट के फंड्स का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। दूसरा, क्लाइंट्स के पैसे के इस्तेमाल से अभी जो बैंक गांरटी जारी की गई है, वह इस 30 सितबंर तक खत्म हो जाएगी। मार्केट रेगुलेटर ने यह भी साफ किया है कि इस फ्रेमवर्क के प्रोविजंस किसी सेगमेंट में स्टॉक ब्रोकर्स और सीएम के प्रॉपरायटरी फंड्स पर लागू नहीं होगा। सीएम के पास बतौर एक क्लाइंट डिपॉजिट किया गया स्टॉक ब्रोकर का प्रॉपरायटरी फंड पर भी इस सर्कुलर के प्रोविजंस लागू नहीं होंगे।
ब्रोकर्स पर कितना पड़ेगा असर?
अब स्टॉक एक्सचेंजों और क्लियरिंग कॉर्पोरेशंस (CCs) को भी अतिरिक्त मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी निभानी होगी। एक्सचेंजों और सीसी को कोलैटरल डेटा सब्मिट करना होगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सेबी के इस कदम से स्टॉक ब्रोकर्स के वर्किंग कैपिटल की जरूरत बढ़ जाएगी। इस वजह से उन्हें मदद के लिए बैंकों के पास जाना पड़ सकता है। लेकिन, कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे ब्रोकर्स जो पूरी तरह से क्लाइंट के फंड्स पर निर्भर हैं, उन पर ज्यादा असर पड़ेगा। अब उन्हें आंतरिक और बाहरी स्रोतों से पूंजी जुटानी होगी।