Mohan Bhagwat on Live in Relationship: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या, परिवार और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे संवेदनशील मुद्दों पर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जनसंख्या केवल एक बोझ नहीं बल्कि देश की संपत्ति (Asset) भी है। साथ ही, उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए युवाओं को जिम्मेदारी लेने की नसीहत दी है।
मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या को लेकर हमें 50 साल आगे का विजन रखना होगा। देश के पर्यावरण, इंफ्रास्ट्रक्चर और महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर एक ठोस जनसंख्या नीति (Population Policy) बनानी चाहिए, जिसे सभी पर समान रूप से लागू किया जाए। उनका मानना है कि आज हमारे पास युवाओं की बड़ी आबादी (Demographic Dividend) है, लेकिन 30 साल बाद जब वे बूढ़े होंगे, तो उन्हें संभालने के लिए नई पीढ़ी की आवश्यकता होगी।
‘लिव-इन रिलेशनशिप जिम्मेदारी से भागना है’
भागवत ने लिव-इन रिलेशनशिप पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि यह जिम्मेदारी न लेने का बहाना है। उन्होंने कहा, “विवाह केवल शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं है, बल्कि समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है। परिवार ही हमें समाज में रहने का प्रशिक्षण देता है और संस्कृति व संस्कारों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाता है।”
उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि अगर आप सन्यासी बनना चाहते हैं, तो विवाह न करें, लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं, तो जिम्मेदारी लेनी होगी। बिना दायित्व लिए साथ रहना समाज के ढांचे को कमजोर करता है।
‘तीन संतान होने से स्वास्थ्य और समाज बेहतर’
संतानों की संख्या को लेकर भी भागवत ने डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों की राय का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि 19 से 25 साल की उम्र में शादी और तीन संतान होने से माता-पिता और बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, तीन भाई-बहन होने से बच्चों में ‘ईगो मैनेजमेंट’ (अहंकार प्रबंधन) की समझ विकसित होती है।
उन्होंने जनसंख्या शास्त्रियों का हवाला देते हुए कहा कि प्रजनन दर (Fertility Rate) अगर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह समाज के लिए खतरा है। फिलहाल देश की औसत दर 2.1 के करीब है, लेकिन इसमें बिहार जैसे राज्यों का बड़ा योगदान है। भागवत ने मजाकिया लहजे में कहा कि “2.1 का मतलब 3 होता है, क्योंकि .1 बच्चा तो नहीं हो सकता।”
हमारा विश्लेषण: पारंपरिक मूल्यों की वकालत (Analysis)
मोहन भागवत का यह बयान आधुनिकता और परंपरा के बीच चल रहे द्वंद्व में पारंपरिक मूल्यों की वकालत करता है। लिव-इन रिलेशनशिप को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बताकर उन्होंने परोक्ष रूप से पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव पर कटाक्ष किया है। वहीं, जनसंख्या नीति पर ‘समान रूप से लागू’ होने की बात कहकर उन्होंने एक बार फिर समान नागरिक संहिता (UCC) और जनसंख्या नियंत्रण कानून की बहस को हवा दे दी है। तीन संतानों की वकालत करना घटती जनसंख्या दर वाले समुदायों के लिए एक संदेश भी हो सकता है।
‘जानें पूरा मामला’
एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत से बढ़ती जनसंख्या और घटती प्रजनन दर को लेकर सवाल पूछा गया था। इसी के जवाब में उन्होंने परिवार, विवाह और जनसंख्या नीति पर अपने विचार रखे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे खुद अविवाहित प्रचारक हैं, लेकिन विशेषज्ञों की राय के आधार पर यह जानकारी साझा कर रहे हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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मोहन भागवत ने लिव-इन रिलेशनशिप को जिम्मेदारी से भागने वाला कदम बताया।
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50 साल की जरूरतों को देखते हुए समान जनसंख्या नीति बनाने की वकालत की।
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डॉक्टरों के हवाले से कहा- 19-25 की उम्र में शादी और 3 बच्चे स्वास्थ्य के लिए अच्छे।
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प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाने को समाज के लिए खतरनाक बताया।






