Oxidative Stress Health Risks : आज के भागदौड़ भरे जीवन में हम जाने-अनजाने अपने शरीर को एक ऐसे खतरे की तरफ धकेल रहे हैं जिसका नाम है ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस। यह एक ऐसी स्थिति है जो धीरे-धीरे शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है और कैंसर, डायबिटीज, दिल की बीमारियों और किडनी की समस्याओं की वजह बनती है। मुंबई के ज़ायनोवा शाल्बी हॉस्पिटल की इंटरनल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. उर्वी माहेश्वरी ने इस खतरनाक स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
क्या है ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस? समझें आसान भाषा में
इसे समझने के लिए अपने शरीर को एक शहर की तरह सोचिए जहां बहुत सारे हेल्पर रहते हैं जो सफाई, रक्षा और निर्माण का काम करते हैं और ये हेल्पर हैं हमारी कोशिकाएं यानी सेल्स। लेकिन काम करते-करते ये सेल्स कुछ ऐसी चीजें भी बनाती हैं जो शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं और इन्हें कहते हैं फ्री रेडिकल्स जो शरीर के असली बदमाश हैं। ये फ्री रेडिकल्स बाहरी कारणों से भी शरीर में बनते हैं, जैसे प्रदूषण।
शरीर की पुलिस हैं एंटीऑक्सीडेंट्स
अच्छी बात यह है कि शरीर में कुछ सुपर हीरो भी रहते हैं जिन्हें एंटीऑक्सीडेंट्स कहते हैं और ये शरीर की पुलिस हैं जिनका काम है बदमाश फ्री रेडिकल्स को पकड़ना ताकि शरीर सुरक्षित रहे। लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब फ्री रेडिकल्स की तादाद बढ़ जाती है और एंटीऑक्सीडेंट्स की संख्या घट जाती है यानी दुश्मन ज्यादा और रक्षक कम। जब ऐसा होता है तो शरीर कमजोर पड़ने लगता है और बीमारियों की चपेट में आने लगता है और इसी स्थिति को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कहते हैं।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के कारण क्या हैं?
डॉ. उर्वी माहेश्वरी के मुताबिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कई कारणों से होता है जैसे नींद पूरी न होना, समय पर खाना न खाना, पौष्टिक भोजन की जगह जंक फूड खाना, पानी कम पीना, सिगरेट पीना और ज्यादा शराब पीना, व्यायाम न करना तथा प्रदूषण और धुएं के संपर्क में रहना। इन सभी कारणों से शरीर की नसों, मांसपेशियों, टिश्यू और कोशिकाओं में सूजन आने लगती है जो आगे चलकर गंभीर बीमारियों का कारण बनती है।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं?
यह स्थिति कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है जिनमें डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, पैरालिसिस या स्ट्रोक, किडनी की खराबी, फेफड़ों की कमजोरी और प्रीमेच्योर एजिंग यानी समय से पहले बुढ़ापा शामिल हैं। आम पाठक के लिए यह जानना जरूरी है कि अगर आप लगातार थकान, कमजोरी या बार-बार बीमार पड़ने की समस्या से जूझ रहे हैं तो यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का संकेत हो सकता है।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से कैसे बचें?
डॉ. उर्वी ने कुछ जरूरी नियम बताए हैं जो हर किसी को अपनी जिंदगी में अपनाने चाहिए। सबसे पहले समय पर सोएं और उठें क्योंकि रात को टीवी, मोबाइल, YouTube और Instagram में वक्त बर्बाद करने से बचना चाहिए और अच्छी नींद से हॉर्मोंस और मेटाबॉलिज्म ठीक रहता है। दूसरा पौष्टिक भोजन करें और खाने में एंटीऑक्सीडेंट्स की मात्रा बढ़ाएं जैसे फल, सलाद और ड्राई फ्रूट्स ज्यादा खाएं। तीसरा दिन में कम से कम 3 से 4 लीटर पानी जरूर पिएं। चौथा किसी भी तरह का व्यसन खासकर स्मोकिंग बिल्कुल बंद करें और पांचवां प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल करें और अपने आसपास का वातावरण साफ रखें।
एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाद्य पदार्थ
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचने के लिए आंवला, अनार, अमरूद, पालक, टमाटर, गाजर, बंद गोभी, पत्ता गोभी, हल्दी, दालचीनी, जीरा, धनिया, अदरक, अखरोट, बादाम, फ्लैक्स सीड्स, राजमा, बेरीज, डार्क चॉकलेट और ग्रीन टी को अपनी डाइट में शामिल करें क्योंकि इन सभी में एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं।
सर्दी-जुकाम से जुड़े 5 मिथकों का भंडाफोड़
मणिपाल हॉस्पिटल गाजियाबाद के इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. अमन कुमार ने सर्दी-जुकाम से जुड़े कुछ आम मिथकों की सच्चाई बताई है जिन्हें जानना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है।
मिथक 1: ठंड लगने से जुकाम होता है
सच्चाई यह है कि ठंड लगने से जुकाम नहीं होता बल्कि जुकाम हमेशा वायरस की वजह से होता है खासकर राइनो वायरस से। सर्दियों में लोग ज्यादातर घर के अंदर रहते हैं और खिड़की-दरवाजे बंद होने से हवा का बहाव कम होता है जिससे वायरस एक से दूसरे इंसान में जल्दी फैलता है। इसीलिए सर्दियों में जुकाम ज्यादा होता है न कि ठंड लगने से।
मिथक 2: गीले बालों में बाहर जाने से सर्दी होती है
यह भी एक मिथक है क्योंकि गीले बालों में बाहर जाने से सीधे जुकाम नहीं होता। होता यह है कि ठंड की वजह से शरीर का तापमान थोड़ा घटता है जिससे इम्यून सिस्टम कुछ देर के लिए कमजोर हो जाता है और अगर उस वक्त वायरस आसपास मौजूद है तो वह शरीर में प्रवेश कर जाता है। ठंड वायरस को बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल देती है इसलिए जुकाम होता है।
मिथक 3: फ्लू में एंटीबायोटिक्स खानी चाहिए
यह बहुत बड़ा मिथक है क्योंकि फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है जो इनफ्लुएंजा ए, इनफ्लुएंजा बी और पैराइनफ्लुएंजा वायरस से होता है और इसे ठीक करने के लिए एंटीवायरल दवाएं काम आती हैं एंटीबायोटिक्स नहीं। एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया पर असर करती हैं वायरस पर नहीं और फ्लू में एंटीबायोटिक्स लेने से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ जाता है। द लैंसेट जर्नल की एक स्टडी के मुताबिक हर साल करीब 50 लाख लोग एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह से मारे जाते हैं इसलिए फ्लू होने पर डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक्स कभी न खाएं।
मिथक 4: विटामिन सी खाने से कभी जुकाम नहीं होगा
यह आधा सच है क्योंकि विटामिन सी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और अमरूद, संतरा, नींबू, चकोतरा और ब्रोकली जैसी चीजें खाने से जुकाम होने का खतरा कम होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जुकाम कभी होगा ही नहीं बल्कि अगर जुकाम होगा भी तो विटामिन सी की वजह से लक्षण हल्के होंगे और जल्दी ठीक होंगे।
मिथक 5: गर्म चीजें पीने से वायरस मर जाता है
यह भी एक मिथक है क्योंकि गर्म पानी, अदरक वाली चाय, काढ़ा, ब्लैक कॉफी और सूप पीने से वायरस नहीं मरता। वायरस शरीर की कोशिकाओं के अंदर होता है और इतनी गर्म चीज पीना संभव नहीं है जो वायरस को मार सके। हां गर्म चीजें गले को आराम देती हैं, कफ बाहर निकलता है, खांसी से राहत मिलती है और बंद नाक खुलती है लेकिन ये सब सिर्फ लक्षण कम करने में मदद करते हैं इलाज नहीं हैं।
वेस्ट टू हाइट रेशियो: बीमारियों का रिस्क जांचने का नया फॉर्मूला
फरीदाबाद के यथार्थ हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के डायरेक्टर डॉ. राजीव चौधरी ने एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। अक्सर हम सोचते हैं कि वजन या BMI से पता चल जाता है कि हम फिट हैं या नहीं लेकिन यह तरीका पूरी तरह भरोसेमंद नहीं है। हो सकता है किसी का वजन तो ठीक हो लेकिन उसके शरीर में छुपा हुआ फैट हो और उसे डायबिटीज होने वाली हो।
भारतीयों के लिए क्यों खास है यह फॉर्मूला?
डॉ. राजीव बताते हैं कि भारतीयों में पेट की चर्बी जल्दी बढ़ती है और दुबले-पतले दिखने वाले लोगों के पेट के आसपास भी फैट जमा हो सकता है जिसे विसरल फैट (Visceral Fat) कहते हैं। यह बहुत खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह लिवर, आंतों और दिल के आसपास जमा हो जाता है जिसकी वजह से डायबिटीज, हृदय रोग, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, फैटी लिवर, हाइपरटेंशन और कुछ तरह के कैंसर भी हो सकते हैं। व्यक्ति बाहर से फिट दिखता है लेकिन अंदर ही अंदर यह विसरल फैट उसे बीमार बना रहा होता है।
वेस्ट टू हाइट रेशियो कैसे नापें?
इसे घर पर आसानी से नाप सकते हैं और किसी मशीन की जरूरत नहीं है। पहले अपनी लंबाई सेंटीमीटर में नापें फुट या इंच में नहीं और मान लीजिए आपकी लंबाई 160 सें.मी. है। फिर नाभि के लेवल पर अपनी कमर नापें और मान लीजिए यह 80 सें.मी. है। अब कमर को लंबाई से भाग दें यानी 80 ÷ 160 = 0.5 आएगा। अगर नंबर 0.5 या उससे कम है तो मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारियों का रिस्क कम है लेकिन अगर नंबर 0.5 से ज्यादा है तो बीमारियों का रिस्क ज्यादा है।
रस्सी से नापने का आसान तरीका
न्यूट्रिशनिस्ट पूजा मखीजा ने एक और आसान तरीका बताया है जिसमें अपनी लंबाई जितनी एक रस्सी लेनी है और इसे आधा कर लेना है। अगर यह आधी रस्सी आपकी कमर के चारों ओर आराम से फिट नहीं आती है तो इसका मतलब है आपके पेट पर खतरनाक विसरल फैट जमा है और आपको तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए।
विसरल फैट कैसे घटाएं?
अगर आपका वेस्ट टू हाइट रेशियो 0.5 से ज्यादा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं और खाने में चीनी और नमक कम करें, कम तेल वाला खाना खाएं, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड जैसे बिस्किट, नमकीन, ब्रेड, चिप्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स बंद करें, रोज करीब 45 मिनट व्यायाम करें और खाने में प्रोटीन और फाइबर बढ़ाएं ताकि पेट देर तक भरा रहे। साथ ही अच्छी नींद लेना और स्ट्रेस कम करना भी जरूरी है।
मेटाबॉलिज्म से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियां हैं?
वेस्ट टू हाइट रेशियो से टाइप 2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, फैटी लिवर, डिसलिपिडीमिया और पीसीओएस यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम जैसी बीमारियों के रिस्क का पता लगाया जा सकता है।
विश्लेषण: क्यों महत्वपूर्ण है यह जानकारी?
आज के समय में जब लाइफस्टाइल बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं ऐसे में ये तीनों जानकारियां बेहद महत्वपूर्ण हैं। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस एक साइलेंट किलर है जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाता है और इसके बारे में जागरूकता से हम समय रहते सावधान हो सकते हैं। सर्दी-जुकाम के मिथकों को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि गलत जानकारी से लोग अक्सर एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग करते हैं जो आगे चलकर जानलेवा साबित हो सकता है। वेस्ट टू हाइट रेशियो एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका है जिससे हर कोई घर बैठे अपने स्वास्थ्य जोखिम का अंदाजा लगा सकता है।
मुख्य बातें (Key Points)
- ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस तब होता है जब शरीर में फ्री रेडिकल्स बढ़ जाते हैं और एंटीऑक्सीडेंट्स कम हो जाते हैं जिससे कैंसर, डायबिटीज और हृदय रोग का खतरा बढ़ता है।
- ठंड लगने या गीले बालों में बाहर जाने से सीधे जुकाम नहीं होता यह वायरस से होता है और फ्लू में एंटीबायोटिक्स कारगर नहीं हैं।
- वेस्ट टू हाइट रेशियो 0.5 से ज्यादा होने पर मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर भोजन, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद और प्रदूषण से बचाव इन सभी समस्याओं से निपटने के कारगर उपाय हैं।






