New Rural Employment Scheme and Village Development : केंद्र सरकार ने गांव और गरीब की तकदीर बदलने के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कर दिया है कि अब सरकारी रोजगार की गारंटी 100 दिन की नहीं, बल्कि सवा सौ (125) दिन की होगी। अब फैसलों के लिए दिल्ली की तरफ नहीं देखना होगा, बल्कि गांव की पंचायत खुद तय करेगी कि विकास की गंगा किस गली से बहेगी।
भारत के गांवों में रोजगार की परिभाषा अब बदलने वाली है। ‘विकसित भारत’ के सपने को पूरा करने के लिए सरकार ने पुरानी बेड़ियों को तोड़ते हुए एक नई और मजबूत व्यवस्था की नींव रखी है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘VB-G RAM G’ बिल (विकसित भारत ग्रामीण रोजगार गारंटी) पर चर्चा करते हुए स्पष्ट किया कि पुरानी मनरेगा योजना में सिर्फ 100 दिन के रोजगार की सीमा थी, लेकिन प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अब इसे बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है। यानी अब मजदूर के हाथ को ज्यादा काम और जेब में ज्यादा दाम की गारंटी मिलेगी।
मिट्टी खोदना नहीं, अब संपत्ति बनाना लक्ष्य
शिवराज सिंह चौहान ने अपने खास अंदाज में कहा कि अब सरकारी पैसा पानी में नहीं जाएगा। पहले की योजनाओं में अक्सर यह शिकायत रहती थी कि “यहां की मिट्टी खोदी और वहां डाल दी”, जिससे कोई ठोस निर्माण नहीं होता था। लेकिन अब सरकार ने नियम बदल दिए हैं। इस योजना में प्रस्तावित 1,51,282 करोड़ रुपये (एक साल का अनुमानित प्रावधान) का इस्तेमाल गांव में पक्की संपत्तियां बनाने में होगा। आने वाले 5 सालों में लगभग 7 लाख करोड़ रुपये सिर्फ गांवों के विकास पर खर्च किए जाएंगे, ताकि गांव की सूरत पूरी तरह बदल सके।
पंचायत राज: अब ‘हाथ फैलाने’ की जरूरत नहीं
सरकार ने सबसे बड़ा बदलाव प्रशासनिक स्तर पर किया है। अब गांव के विकास के लिए सरपंच या पंचायत को अधिकारियों के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मंत्री जी ने उदाहरण देते हुए समझाया कि अगर “रामलाल के घर से श्यामलाल के घर तक” सड़क बनानी है, तो यह फैसला सीधे गांव की चौपाल पर बैठकर पंचायत लेगी। नाली निर्माण हो, आंगनवाड़ी का भवन बनाना हो या स्कूल की बिल्डिंग खड़ी करनी हो—यह सब अधिकार अब स्थानीय पंचायत के पास होगा। सरकार का मानना है कि जब पैसा सीधे गांव की जरूरतों पर लगेगा, तो विकास की रफ्तार दोगुनी हो जाएगी।
आपदा से सुरक्षा और आजीविका को बल
नई योजना का दायरा सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है। इसमें जल संरक्षण, प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए ‘रिटेनिंग वॉल’ बनाना और पानी की निकासी की व्यवस्था करना भी शामिल है। इसके अलावा, गांव की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आजीविका मिशन (SHG) के तहत शेड बनाना, एफपीओ (FPO) और पैक्स (PACS) की जरूरतों के हिसाब से निर्माण कार्य करने की छूट भी दी गई है। मकसद साफ है—गांव में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना जो सालों-साल चले।
वरिष्ठ संपादक का विश्लेषण (Analysis)
एक अनुभवी पत्रकार के नजरिए से देखें तो यह योजना केवल रोजगार बढ़ाने की कवायद नहीं है, बल्कि यह ‘ग्रामीण अर्थशास्त्र’ (Rural Economics) में एक बड़ा स्ट्रक्चरल रिफॉर्म है। 100 से 125 दिन की बढ़ोतरी सीधे तौर पर ग्रामीण क्रय शक्ति (Purchasing Power) को बढ़ाएगी। सबसे महत्वपूर्ण पहलू ‘एसेट क्रिएशन’ (Asset Creation) पर जोर देना है। जब सरकारी पैसा गड्ढे भरने के बजाय स्कूल, रोड और जल संरक्षण पर लगेगा, तो इससे गांव की जीडीपी में स्थाई सुधार होगा। पंचायतों को वित्तीय स्वायत्तता देना ‘ग्राम स्वराज’ की दिशा में एक प्रभावी कदम साबित हो सकता है, बशर्ते इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता बनी रहे।
आम आदमी के जीवन पर असर
इस फैसले का सीधा असर गांव के उस मजदूर पर पड़ेगा जो काम की तलाश में शहर भागता था। अब उसे अपने घर के पास ही साल में 25 दिन का अतिरिक्त रोजगार मिलेगा। साथ ही, गांव में पक्की सड़कें और स्कूल बनने से वहां रहने वाले हर परिवार का जीवन स्तर सुधरेगा।
जानें पूरा मामला
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत अब तक ग्रामीण परिवारों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी दी जाती थी। लेकिन बदलते वक्त और विकसित भारत के लक्ष्य को देखते हुए सरकार ने इसे अपग्रेड करने और ‘VB-G RAM G’ के रूप में और अधिक प्रभावी बनाने का निर्णय लिया है, ताकि गांवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
मुख्य बातें (Key Points)
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रोजगार गारंटी 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन कर दी गई है।
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5 सालों में गांवों के विकास पर 7 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे।
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पंचायतों को सड़क, स्कूल और नाली निर्माण के फैसले लेने का अधिकार मिला।
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योजना का फोकस अब केवल मजदूरी नहीं, बल्कि स्थाई संपत्ति निर्माण पर है।






